क्या कहते हैं पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के परिणाम

अनुभव चक

Update: 2021-05-03 09:37 GMT

यूं तो देश के 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आज आने थे,पर देशवासियों की नजर जिस राज्य के चुनावी नतीजों की ओर टिकी हुई थीं वो राज्य था पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में पिछले दो बार से मुख्यमंत्री पद को संभाल रहीं सुश्री ममता बनर्जी को चुनावी शिकस्त देने के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी,गृहमंत्री श्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। एकतरफ जहां इन विधानसभा चुनावी नतीजों में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही,वहीं भाजपा भी ये सोचकर संतोष कर सकती है कि वो पिछले विधानसभा चुनाव(2016) में मिली 3 सीट के सफर को वहां से 75 सीटों के लगभग पहुंचाने में सफल रही। इन चुनावी नतीजों को गहनता से विश्लेषित करने हेतु पूर्व में हुए विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के परिणाम और विभिन्न दलों को मिले मत प्रतिशत के आंकड़ों पर भी नजर डालना बेहद जरूरी है। 2006 में हुए पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में लेफ्ट फ्रंट-233 सीट के प्रचंड बहुमत के साथ साथ हासिल करने में कामयाब रहा और

तत्कालीन एनडीए गठबंधन (जिसमें ममता बनर्जी भी शामिल थीं)31 सीट और यूपीए-26सीट जीतने में कामयाब रहा। इसी दौरान नंदीग्राम और सिंगूर में भूमिअधिग्रहण को लेकर किसानों में राज्य सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश पनपा और ममता बनर्जी इस मौके पर पूरे दमखम के साथ नंदीग्राम और सिंगूर में हो रहे आंदोलन का नेतृत्व करने हेतु कूद पड़ीं। इस संघर्ष के सुखद परिणाम हेतु ममता बनर्जी को ज्यादा रुकना नहीं पड़ा और 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में टीएमसी(19सीट)जीतकर 2006 के विधानसभा चुनावों में 233 सीट जीत कर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाले लेफ्ट फ्रंट (15 सीट) को पछाडक़र राज्य का सबसे बड़ा दल बनने में कामयाब रही। यही वो चुनाव था जहां से ममता को यकीं होने लगा कि 1974 के बाद से पश्चिम बंगाल में अजेय रहे लेटफ्रंट को हराया भी जा सकता है। राजनीति की माहिर खिलाड़ी ममता का आंकलन एकदम सही साबित हुआ और 2011 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में टीएमसी 184 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। 

इन चुनावों में लेटफ्रंट को 60 और ममता की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी कांग्रेस पार्टी को 42 सीट प्राप्त हुईं। 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में मोदी रूपी सुनामी चली उस वक्त भी ममता ने पश्चिम बंगाल के मतदाताओं पर अपनी मजबूत पकड़ को चुनावी नतीजों के जरिये साबित किया और कुल 42 सीटों में से 34 सीट जीतने में कामयाब रहीं। इन चुनावों में कांग्रेस को 4,लेट फ्रंट और भाजपा को 2-2 सीट जीतने में सफलता मिली। 2016 में भी राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में सुश्री ममता बनर्जी 211 सीट जीतकर अपना जादू बरकरार रखने में कामयाब रहीं। इस चुनाव में कांग्रेस को 44,लेट फ्रंट को 32 और भाजपा को मात्र 3 सीट जीतने में सफलता मिली। 2019 में हुये लोकसभा चुनावों में पहली बार ऐसा हुआ कि भाजपा ने ममता बनर्जी को न सिर्फ कड़ी टकर दी,बल्कि 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीट जीतकर टीएमसी-22 के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा दल बनने में कामयाब रही। यही वो चुनाव था जहां से भाजपा के रणनीतिकारों को ये लगने लगा कि ममता बनर्जी अजेय नहीं हैं,बल्कि उनको परास्त किया जा सकता है। 2021 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जब अबकी बार 200 पार का नारा दे रहा था तो वो हवा में नहीं दे रहा था। बल्कि उसके पीछे ठोस वजह 2019 के लोकसभा चुनावी नतीजे ही थे,जिनको यदि विधानसभा सीटों में परिवर्तित किया जाता तो वो आंकड़ा लगभग 120 सीटों के आसपास हो रहा था। भाजपा के रणनीतिकारों को विश्वास था कि यदि रणनीति बनाकर पूरी ताकत इन चुनावों में झोंक दी जाए तो कोई कारण नहीं कि सरकार बनाने से कोई हमें रोक सके। सोच के साथ भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय पूरी तरह से पश्चिम बंगाल में ही डेरा डाले रहे और टीएमसी के दिग्गज नेताओं सहित फिल्मस्टार मिथुन चक्रवर्ती को पार्टी में शामिल कराया गया।

प्रारंभिक चरणों के चुनाव प्रचार और मतदान में मतदाताओं के बीच भाजपा की रणनीति काम करते भी दिखी। लेकिन जैसे-2 चुनाव आगे बढ़ता गया और कोरोनारूपी महामारी विकराल रूप धारण करती गयी,वैसे-2 मतदाताओं का ध्यान रणनीति और अन्य मुद्दों से हटकर सोशल मीडिया और मीडिया पर दिखाई जाने वाली ऑक्सीजन की कमी,जलती चिताओं की तस्वीरों,दवाओं की कालाबाजारी,महामारी के दौरान हो रहे कुप्रबंधन जैसी खबरों की ओर केंद्रित होने लगा। मतदाताओं को टीएमसी भृमित करने में कामयाब रही कि इस भीषण महामारी के दौरान भी राज्य में चुनाव करवाकर और भीड़भरी रैलियां और रोड शो कर के भाजपा सरकार पश्चिम बंगाल की जनता को मौत के मुंह धकेलने का काम कर रही है। मोदी जी और उनके मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री कोरोना की रोकथाम के उपाय करने की जगह पश्चिम बंगाल को जीतने की लड़ाई लडऩे में व्यस्त हैं। अन्य सभी आंकड़ों पर तो पर्दा डाला जा सकता है,पर अपने आसपास हो रही मौतों,जलती चिताओं और ऑसीजन की कमी के कारण मचे हाहाकार को कौन झुठला सकता था? नतीजा ये हुआ कि अंतिम चरणों में हुए मतदान में इसका जबर्दस्त प्रभाव पड़ा और एक समय संख्या से दूर होती दिख रही ममता बनर्जी फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में वापसी करने में कामयाब रहीं। इसके साथ-2 टीएमसी से आये हुए नेताओं को भाजपा ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर तरजीह दी,जिनको कभी लोकल भाजपा नेता चोर कहते थे और उनसे संघर्ष करते थे। ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता और नेता जिनकी मेहनत की दम पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीट जीतने में सफलता पाई थी,उनको हासिये पर डालने से उपजे रोष ने भी कुछ हद तक ही सही पर चुनावी नतीजों पर असर जरूर डाला है। (लेखक राजनैतिक विश्लेषक व मीडिया पैनलिस्ट हैं)

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