भारत के बासमती चावल को PGI टैग मिलने से किसानों की बदलेगी किस्मत, ये होंगे फायदे, पाकिस्तान में विरोध शुरू
भारत के बासमती चावल का वैश्विक निर्यात - यूरोपीय यूनियन पीजीआई टैग से खास उत्पाद के साथ क्वालिटी खुद ही जुड़ जाती है
भारत एक गांव प्रधान व किसान प्रधान देश है भारत की मिट्टी ऐसी ओजस्वी है कि हीरे मोती रूपी खूबसूरत, सामर्थ, स्वास्थ्य और अपनी महक को विदेशों तक पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों वस्तुओं का जनन इस भारत माता की मिट्टी से होता है। न केवल इस मिट्टी से भारत में जन्मे व्यक्तित्व में निखार, संस्कार ओजस्वी तेज, आता है बल्कि इस मिट्टी के खेत खलियानों से उत्पन्न खाद्य वस्तुओं में भी गजब की महक व मिठास होती है।...बात अगर हम भारत की मिट्टी में उगे बासमती चावल की करें तो वाह!!! क्या बात है!!! भारतीय बासमती चावल का नाम सुनने से ही दूर दूर तक महक महसूस होने लगती है। भारत और पड़ोसी मुल्क के दायरे में हिमायल के कुछ खास भौगोलिक निचले क्षेत्रों में ही बासमती पैदा होती है। इस भौगोलिक क्षेत्र की जलवायु ही इसे एक अनूठा स्वाद - सुगंध और आकार देती है, जिसकी अच्छी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में है। कई ऐसे चावल अब दुनिया भर में पैदा होते हैं जो लंबे दाने वाले होते हैं, लेकिन उनमें कोई विशेष सुगंध नहीं होती है। इसलिए बासमती का महत्व अब भी बना हुआ है और भारत से चीन अमेरिका खाड़ी देशों सहित दुनिया के करीब 125 देशों में बासमती चावल का निर्यात किया जाता है। इससे जहां किसानों को आर्थिक फायदा हो रहा है, वहीं बासमती धान की बुआई का क्षेत्रफल भी देश में बढ़ता जा रहा है।
इस समय देश में किसान बासमती चावल की लगभग 32 प्रजातियों की बुआई कर रहे हैं। एक अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक भारत से 30 हजार करोड़ रुपये मूल्य का 46.30 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल विदेशों को निर्यात किया गया। किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए पीजीआई टैग दिया जाता है, ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके। भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ भागों में बासमती को पीजीआई टैग दिया था। जानकारों का कहना है कि किसी भी देश को दूसरे देश में जीआई के रूप में रजिस्टर्ड कराने के लिए उसे सबसे पहले अपने देश में जीआई रजिस्ट्रेशन लेना होगा। बता दें कि 2015 में भारत ने अपने देश में बासमती चावल का जीआई रजिस्ट्रेशन करा लिया था। वहीं दूसरी ओर पड़ोसी मुल्क ने ऐसा कोईभी कदम नहीं उठाया और वह बगैर जीआई टैग के ही बासमती चावल की बिक्री करता रहा, जिसकी वजह से दूसरे देशों में भारतीय बासमती चावल के मुकाबले पड़ोसी मुल्क के बासमती को कारोबार के मोर्चे पर काफी नुकसान उठाना पड़ा।
जानकार कहते हैं कि इन सब वजहों से मध्यपूर्व के ज्यादातर मुस्लिम देश भी भारत की बासमती चावल को ही पसंद करते हैं, सके बाद भारत ने यूरोपियन यूनियन में भारत के बासमती चावल के पीजीआई टेक के लिए आवेदन किया आधिकारिक ईयू जर्नल में बताया गया है कि 11 सितंबर, 2020 को भारत ने अपने यहां पैदा होने वाली बासमती के लिए विशेष भौगोलिक पहचान (एक्सकलूसिव ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) के लिए आवेदन किया था। भारत ने अपने बासमती की अहमियत बनाए रखने के लिए यूरोपियन यूनियन में पड़ोसी मुल्क से अलग होकर ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग की मांग की थी।वहीं, बासमती का जीआई पंजीकरण न होने के कारण भारत के इस आवेदन के बाद पड़ोसी मुल्क को यह चिंता सताने लगी थी कि जीआई टैग के बिना उसका बासमती कहींअंतरराष्ट्रीय बाजार में पूरी तरह से बाहर न हो जाए, क्योंकि 2006 में ईयू की अनुमति के बाद भी पड़ोसी मुल्क ने अब तक अपने बासमती को जीआई टैग में पंजीकृत नहीं किया था। उनका जीआई कानून बीते दो दशक से लंबित था। पड़ोसी मुल्क, भारत के इस कदम को अपने लक्षित बाजारों में से एक को हड़पने के तौर पर देखता है और यही वजह है कि उसने यूरोपीय संघ से संरक्षित भौगोलिक संकेत (PGI) लेने के लिए भारत की ओर से उठाए गए कदम का तुरंत विरोध किया।
PGI का दर्जा ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान करता है जहां उत्पादन, प्रसंस्करण या तैयारी का कम से कम एक चरण होता है। भारतीय दार्जिलिंग चाय, कोलंबिया की कॉफी और कई फ्रेंच हैम PGI स्टैटस वाले लोकप्रिय उत्पादों में से हैं। क्या होता है पीजीआई का दर्जा ?? पीजीई यानि प्रोटेक्टेड ज्योग्राफिकल इंडिकेशन का दर्जा भौगोलिक उत्पादों को लेकर इंटलेक्च्वल प्रॉपर्टी का अधिकार मुहैया कराता है। भारत के दार्जिलिंग चाय, कोलंबिया कॉफी और कई फ्रांसीसी उत्पादों को पीजीआई का टैग मिला हुआ है और अब भारत चाहता है कि बासमती चावल को लेकर भी उसे पीजीआई का टैग मिले। इसके लिए भारत की तरफ से यूरोपीय यूनियन में आवेदन दिया गया है। जिन उत्पादों को पीजीआई का टैग मिल जाता है, उनके नकल को लेकर सिक्योरिटी मिली हुई होती है, यानि उसका नकल कोई और देश नहीं कर सकता है और पीजीआई टैग मिलने के बाद उस उत्पाद का बाजार में कीमत और ज्यादा बढ़ जाता है। अगर भारत को पीजीआई का टैग मिल गया तो पड़ोसी मुल्क के लिए ये एक बड़ा झटका होगा। इस आर्टिकल में प्रयुक्त सारी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनल में बताई गई जानकारी और आंकड़ों के आधार पर लेखाकन किया गया है। बासमती चावल पर अब भारत और पड़ोसी मुल्क आमने-सामने हो गए हैं।
दरअसल, भारत ने बासमती चावल के विशेष ट्रे़डमार्क के लिए यूरोपीयन यूनियन में आवेदन दिया है, ताकि भारत को बासमती चावल के टाइटल का मालिकाना हक प्राप्त हो जाए। लेकिन जैसे भी मालिकाना हक के लिए भारत यूरोपीयन यूनियन पहुंचा, ठीक वैसे ही पीछे पीछे पड़ोसी मुल्क भी भारत के दावे का विरोध करने के लिए पहुंच गया। यूरोपीयन यूनियन में पड़ोसी मुल्क ने भारत के मालिकाना हक मांगने का विरोध किया है। उसका कहना है कि अगर भारत को बासमती चावल के मालिकाना हक का टाइटल मिल जाता है तो उससे हमको काफी नुकसान होगा। अतः उपरोक्त पूरे मामले का अगर हम अध्ययनकर उसका विश्लेषण करें तो भारत के बासमती चावल के पीजीआई के लिए रजिस्ट्रेशन के लिए यूरोपीय यूनियन में आवेदन पर पड़ोसी मुल्क द्वारा विरोध अनुचित है। इससे हमारे देश के किसानों का भारी नुकसान होगा। क्योंकि पीजीआई टैग मंजूर होने से किसानों को बासमती चावल का भाव विदेशों में अपेक्षाकृत बहुत अधिक मिलेगा और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।