राजनीति के बारे में कहा यही जाता है किवह शब्दों से खेलती है, शब्दों के आडम्बर से एक काल्पनिक संसार बनाती है और उस काल्पनिक संसार को सच में बदलने के लिए फिर अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से जतन करती है। वस्तुत: यही परिदृष्य राफेल लड़ाकू विमार को लेकर कांग्रेस द्वारा रचे जूठे शब्दों के सच दिखते आडम्बर के रूप में आज प्रत्यक्ष होता दिख रहा है। कांग्रेस और वामपंथी राफेल को एक मुद्दा बनाकर मोदी सरकार के विरोध में वाक् अस्त्र के रूप में ले उड़े हैं। समझ नहीं आ रहा कि जिस मोदी सरकार के 4 वर्षीय कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा और अब जिस तरह से राफेल में भ्रष्टाचार सामने आ रहा है, वह कितना सच है, क्या उन पर विश्वास करना चाहिए?
राफेल से जुड़े सच को सभी जानना चाहते हैं, यह जानना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अपने को राष्ट्र के लिए पूर्ण समर्पित मानती है और उसके कार्यकर्ता यही कहते हैं कि उनके लिए जीवन से भी बढ़कर सबसे पहले उनका देश है तो क्या उनकी पार्टी ने केंद्र की सत्ता में रहते हुए राफेल का भ्रष्टाचार किया है, वास्तव में यह बहुत बड़ा प्रश्न आज इस पार्टी की राष्ट्रभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है।
कांग्रेस का आरोप है कि हमारे समय में जितने रुपए में यह सौदा तय हुआ था उसकी तुलना में मोदी सरकार कई ग़ुना भुगतान कर रही है। यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, किंतु मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। अभी एक प्लेन की कीमत 1555 करोड़ रुपये है, जबकि कांग्रेस 428 करोड़ में रुपये में खरीद रही थी। भाजपा सरकार के सौदे में "मेक इन इंडिया" का कोई प्रावधान नहीं है। यूपीए के सौदे में इन विमानों के भारत में एसेंबलिंग करने के लिए हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को शामिल करने की बात थी लेकिन अभी एचएएल को बाहर कर दिया गया है और यह सब अंबानी की कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।
वस्तुत: देखने, सुनने और समझने में यह आंकड़े एकदम से सच प्रतीत होते हैं, किंतु हकीकत में क्या यह सही आंकड़े राफेल डील को लेकर कांग्रेस ने प्रस्तुत किए हैं? स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इसे लेकर कितने भ्रमित हैं, यह उनकी समय-समय पर सोशल मीडिया पर दी गई सूचनाओं से सहज ही समझा आता है। 16 मार्च 2018 को उन्होंने कहा कि दसां ने रक्षा मंत्री के झूठ का पर्दाफाश कर दिया है और अपनी रिपोर्ट में राफेल की कीमत बताई है, जिसमें कतर को 1319 करोड़, मोदी सरकार को 1670 करोड़ और मनमोहन सिंह सरकार को 570 करोड़ रुपये में देने की बात है। राहुल यहां कहना चाह रहे हैं कि मोदी सरकार ने हर राफेल पर 1100 करोड़ रुपया ज्यादा दिया है। इसके बाद राहुल आरोप लगाते हैं, राफेल सौदे की वजह से सरकारी खजाने को चालीस हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कुछ दिनों बाद उन्होंने इसे 58 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया, फिर अभी उन्होंने इसमें एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये के घोटाले की बात कही है। यानी कि वक्त गुजरने के साथ वे घोटाले की कीमत बढ़ाते जा रहे हैं। किंतु इन आंकड़ों के विपरीत इस सौदे की सच्चाई कुछ इस तरह से सामने आ रही है।
सबसे बड़ी बात कि यूपीए के वक्त राफेल का कोई सौदा हुआ ही नहीं था, सिर्फ चर्चा चल रही थी, उसमें भी आज की तरह के विमान में कोई भी मारक हथियार, रडार या दूसरे आयुध सिस्टम नहीं लगे थे, सिर्फ हवा में उड़ने लायक लड़ाकू विमान की कीमत की बात हो रही थी। वर्तमान परिदृष्य में यूरो के बदले रुपये के बदलते मूल्य को लेकर यह आंकड़े देखे तो सबसे पहले यूपीए-एक के समय रफाल के सौदों पर चर्चा शुरू हुई जिसमें अकेले विमान की कीमत 538 करोड़ रुपये थी जोकि मई 2015 में यदि कांग्रेस की सरकार होती तो कीमत 737 करोड़ रुपये प्रति विमान होती। किंतु इसके ठीक विपरीत मोदी सरकार ने 670 करोड़ रुपये में यह सौदा किया है। इसी प्रकार से सितंबर 2019 में पहला विमान भारत आता तब यदि कांग्रेस सरकार में रहती तो कीमत 938 करोड़ रुपये आती, जबकि मोदी सरकार ने तो इसमें 794 करोड़ रुपये प्रति विमान देना ही तय किया है। कुल मिलाकर इसका निष्कर्ष है, अकेले हवा में उड़ने लायक विमान को मोदी सरकार में कांग्रेस की तुलना में 20 फीसदी कम दामों पर खरीदा है।
कांग्रेस दूसरा बड़ा भ्रम फैला रही है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा करते समय भारत की अपनी सरकारी कंपनी एचएएल को नजरअंदाज किया गया है। किंतु इसकी जो वास्तविकता आज सामने आ रही है, वह यही है कि दसां एविएशन और एचएएल के बीच टेक्नॉलाजी ट्रांसफर को लेकर बात नहीं बनी। कांग्रेस की बात में कोई दम इसलिए भी नहीं दिख रहा क्योंकि उसके समय इस कंपनी को हर साल दस हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले और वर्तमान में प्रतिवर्ष 22 हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर मिल रहे हैं।
वस्तुत: यहां वायुसेना के उप प्रमुख रघुनाथ नांबियार की बातों की गंभीरता भी समझना चाहिए। वे कह रहे हैं, लड़ाकू विमान के करार को लेकर लोगों को गलत जानकारी दी जा रही है, मौजूदा सौदा पहले किए जा रहे समझौते से काफी बेहतर है। आज उनका यह कहना इसीलिए भी मायने रखता है क्योंकि उन्होंने फ्रांस में राफेल विमान को प्रायोगिक आधार पर उड़ाया है।
जहां तक मोदी सरकार पर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस इंड्रस्ट्रीज की मदद करने का आरोप लगाया जा रहा है तो उसे लेकर भी सभी को यह मालूम होना ही चाहिए कि दसां एविएशन और रिलायंस के बीच का करार कोई मोदी सरकार के आने के बाद नहीं हुआ। इन दोनों के साथ काम करने के अनुबंध तो कांग्रेस सरकार के समय के हैं, जब अंबानी बंधुओं का कार्य को लेकर आपसी विभाजन नहीं था । फिर दसां की कही इस बात पर सभी को प्रमुखता से गौर करना चाहिए कि 2016 के डीपीपी नियमों के तहत और मेक इन इंडिया नीति को लेकर ही उसने रिलायंस के साथ समझौता किया है।
वस्तुत: सच यही है कि मोदी सरकार ने यह सौदा कांग्रेस सरकार से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है, उसने देश के लगभग 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। नए समझौते में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ स्पेयर पार्ट और मेटोर मिसाइल जैसे हथियार भी मिल रहे हैं। मिसाइल की क्षमता 100 किमी दूर स्थित दुश्मन के विमान को भी मार गिराने की है, इतनी उन्नत तकनीक तो अभी हमारे पड़ौसी चीन और पाकिस्तान के पास भी नहीं है।
लेखक पत्रकार एवं फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य हैं।