"रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता" - योगी आदित्यनाथ

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥

Update: 2023-12-06 12:18 GMT

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥

सकल आस्था के प्रतिमान रघुनंदन प्रभु श्री राम की जन्मस्थली धर्म नगरी श्री अयोध्या जी की पावन भूमि पर श्री रामलला के भव्य और दिव्य मंदिर निर्माण अंतिम दौर में है। पांच शताब्दियों की भक्‍तपिपासु प्रतीक्षा, संघर्ष और तप के उपरांत, कोटि-कोटि सनातनी बंधु-बांधवों के स्वप्न को साकार करते हुए 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर-कमलों से श्री रामलला के चिरअभिलाषित भव्य-दिव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी है।

उल्लास,आह्लाद, गौरव एवं आत्म संतोष का क्षण

नि:संदेह यह अवसर उल्लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्म संतोष का है, सत्यजीत करुणा का है। हम भाग्यशाली हैं कि प्रभु श्रीराम ने हमें इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी होने का सकल आशीष प्रदान किया है। भाव-विभोर कर देने वाली इस वेला की प्रतीक्षा में लगभग पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं, दर्जनों पीढियां अपने आराध्य का मंदिर बनाने की अधूरी कामना लिए भावपूर्ण सजल नेत्रों के साथ ही, इस धरा-धाम से परमधाम में लीन हो गईं, किन्‍तु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा हैं।

मेरे लिए भावुक पल हैं

श्री राम जन्मभूमि मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बहुप्रतीक्षित अवसर पर सहज ही दादा गुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज का पुण्य स्मरण हो रहा है। मैं अत्यंत भावुक हूँ कि हुतात्मा द्वय भौतिक शरीर से इस अलौकिक सुख देने वाले अवसर के साक्षी नहीं बन पा रहे किंतु आत्मिक दृष्टि से आज उन्हें असीम संतोष और हर्षातिरेक की अनुभूति अवश्‍य हो रही होगी।ब्रितानी परतंत्रता काल में श्री राम मंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने किया था।

सन् 1934 से 1949 के दौरान उन्‍होंने राम मंदिर निर्माण हेतु सतत संघर्ष किया। 22-23 सितम्बर 1949 को जब कथित विवादित ढांचे में श्रीरामलला का प्रकटीकरण हुआ, उस दौरान वहां तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर, गोरक्षपीठ महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज कुछ साधु-संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे। 28 सितंबर 1969 को उनके ब्रह्मलीन होने के उपरांत अपने गुरुदेव के संकल्प को महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपना बना लिया, जिसके बाद श्री राम मंदिर निर्माण आंदोलन के निर्णायक संघर्ष की नवयात्रा का सूत्रपात हुआ।

समरसता की सुधा सरिता के प्रवाह की नव प्रेरणा 

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के मार्गदर्शन, पूज्य संतों का नेतृत्व एवं विश्‍व हिन्‍दू परिषद की अगुवाई में आजादी के बाद चले सबसे बड़े सांस्कृतिक आंदोलन ने न केवल प्रत्येक भारतीय के मन में संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति आस्था का भाव जागृत किया अपितु भारत की राजनीति की धारा को भी परिवर्तित किया। 21 जुलाई, 1984 को जब अयोध्या के वाल्मीकि भवन में श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ था तो सर्वसम्मति से पूज्य गुरुदेव गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज को अध्यक्ष चुना गया। तब से आजीवन श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष रहे। पूज्य संतों की तपस्या के परिणामस्वरूप राष्‍ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा सांप्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया।

वर्ष 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्‍मक भूमिपूजन हुआ तो भूमि की खुदाई के लिए पहला फावड़ा स्वयं पूज्य गुरुदेव महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज एवं पूज्य संत परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज ने चलाया था। इन पूज्य संतों की पहल, श्रद्धेय अशोक सिंघल जी के कारण पहली शिला रखने का अवसर श्री कामेश्वर चौपाल जी को मिला। आज श्री कामेश्वर जी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य होने का सौभाग्य धारण कर रहे हैं। जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बड़ा और कड़ा संघर्ष हुआ है। न्याय और सत्य के संयुक्त विजय का यह उल्लास अतीत की कटु स्मृतियों को विस्मृत कर, नए कथानक रचने, और समाज में समरसता की सुधा सरिता के प्रवाह की नव प्रेरणा दे रहा है।

सनातन संस्कृति के प्राण प्रभु श्री राम की जन्मस्थली हमारे शास्त्रों में मोक्षदायिनी कही गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सरकार इस पावन नगरी को पुन: इसी गौरव से विभूषित करने हेतु संकल्पबद्ध है। श्री अयोध्या जी वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में अंकित हो और इस धर्म धरा में रामराज्य की संकल्पना मूर्त भाव से अवतरित हो इस हेतु हम नियोजित नीति के साथ निरंतर कार्य कर रहे हैं। वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा के भंवर जाल में उलझी रही अवधपुरी, आध्यात्मिक और आधुनिक संस्कृति का नया प्रतिमान बनकर उभरेगी। यहां रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। विगत 7 वर्षों में विश्व ने अयोध्‍या की भव्य दीपावली देखी है, अब यहां धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी।

सवा सौ करोड़ आकांक्षाओं की प्राण प्रतिष्ठा

निश्चित रूप से 22 जनवरी, 2024 को श्री अयोध्या जी में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सहभागिता हेतु प्रभु श्रीराम के असंख्य अनन्य भक्त परम इच्‍छुक होंगे, किन्तु, अन्यान्य कारणों से यह संभव नहीं हो पा रहा। इसे प्रभु इच्छा मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। प्रधानमंत्री जी सवा सौ करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब हैं, वह स्वयं प्राण प्रतिष्ठा करेंगे यह प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव का क्षण होगा। प्रधानमंत्री जी के कारण ही देश और दुनिया पांच शताब्‍दी बाद इस शुभ मुहूर्त का अहसास कर पा रहा है। 22 जनवरी, 2024 को प्राण प्रतिष्ठा न केवल मंदिर का है वरन, एक नए युग का भी है। यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है। यह युग मानव कल्‍याण का है। यह युग लोक कल्‍याण हेतु तपोमय सेवा का है। यह युग रामराज्य का है।

आइए।

श्रीराम का स्‍तवन करें। प्रभु श्रीराम का आशीष हम सभी पर बना रहेगा। श्री राम जय राम जय जय राम!

(लेखक, गोरक्षनाथ पीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।)

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