... और जवाब का इंतजार करें
- रमेश पतंगे (अनुवादक: अपर्णा अजय पाटिल, संपादक यश पत्रिका)
नरेंद्र मोदी इस समय विरोधक और हितचिंतकों के कठोर टीका के ग्रास बने हुए हैं। उन्हीं पर फ़िल्म बनाने वाले ज्येष्ठ अभिनेता अनुपम खैर कहते हैं, " प्रतिमा बनाने से अच्छा जान बचाना जरूरी है.... सरकार को जो भी स्थिति बनती है उसका सामना करना चाहिए और जिन्होंने आपको चुन कर भेजा है उनके लिए काम करना चाहिए। ऐसे अनेक प्रकरण हैं जिसमें सरकार पर टीका करना जरूरी है। नदी में बहकर आने वाले मृतदेहों को देखकर जो विचलित नहीं होगा वह एखाद क्रूर ही होगा। हमें अपना गुस्सा व्यक्त करना आना चाहिए। और जो कुछ भी विपरीत हो रहा है इसके लिए सरकार को कटघरे में लेना जरूरी है।
पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बैनर्जी की जीत हुई। ममता दीदी को बधाईयां देते समय सभी का लक्ष्य नरेंद्र मोदीजी पर प्रहार करना था। ममता बैनर्जी की जीत के बाद कई भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं। पर नरेंद्र मोदी ने अभीतक इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। राजनैतिक विश्लेषकों ने यह भविष्यवाणी करने की शुरुआत कर दी है कि नरेंद्र मोदी की 2024 के चुनावों में हार निश्चित होगी। ममता बैनर्जी ने नरेंद्र मोदी को कईं चुनौतियाँ दी हैं। इसपर भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, वे मौन हैं।
कोरोना महामारी से संबंधित कई याचिकायें सुनवाई हेतु उच्च न्यायालय के समक्ष आती हैं। इसपर उच्च न्यायालय केंद्र सरकार को नसीहत देते हैं। जिसपर सोशल मीडिया में टीका टिप्पणियों की शुरूआत हो जाती हैं। रेमडिसिविर, ऑक्सिजन आदि की किल्लत पर मोदी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। पर वो कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, मौन रहते हैं। विदेशी समाचार पत्रों में मोदी पर कठोर टिपणियां की जाती हैं। भारत में कोरोना महामारी की स्थिति अत्याधिक भयावह है ऐसा इन समाचार पत्रों में दर्शाया जाता है। इसके लिए मोदी शासन जिम्मेदार है ऐसा कहा जाता है। विश्व के कई प्रमुख देशों ने अपने नागरिकों को भारत में जाने से प्रतिबंधित किया है। इस संबंध में समाचार प्रमुखता से छापे जाते हैं।
मोदीजी पर हमला करने में राहुल गांधी सबसे आगे रहते हैं। सोनिया गांधी भी पीछे नहीं रहती हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना प्रतिदिन कोई न कोई मोदी विरोधी बयान देती रहती है। ममता ने भाजपा को पराजित किया है इसका आनंद शिवसेना छिपा नहीं पा रही है। अरविंद केजरीवाल ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी के विरुद्ध प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक का प्रसारण किया है। मोदी यह सब घटित होता हुआ शान्ति से देख रहे हैं, वे मौन हैं।
नरेंद्र मोदी मौन क्यों हैं, वह इन सब का उत्तर क्यों नहीं दे रहे हैं, यह प्रश्न सभी के जहन में आ रहे हैं। मौन रहना यह मोदी का स्वभाव है, इस बात की जानकारी शायद अधिकांश लोगों को नहीं हैं। इसके कई उदाहरण प्रत्यक्ष हैं। उनके गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए गोधरा प्रकरण में मुसलमानों के खिलाफ बड़ी हिंसा हुई। हजारों मुस्लिम इस हिंसा में मारे गए। इस हिंसा का कारण मोदी को ठहराते हुए उनको हत्यारा घोषित करने के प्रयत्न किए गए। मोदी ने उस वक़्त भी उनपर लगे इन आरोपों का कोई उत्तर नहीं दिया था।
मोदी मुस्लिम विरोधी है उनकी यह छवि बनाने का योजनाबद्ध प्रयास किया गया। सोनिया गांधी ने उन्हें मौत का सौदागर तक कहा। जब मोदी केंद्रीय राजनीति में आये तब कुछ बुद्धिजीवीयों ने स्पष्ट घोषणा की थी कि यदि मोदी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वे देश छोड़ देंगे। मोदीने तब भी कोई उत्तर नहीं दिया, वे मौन रहें। मोदी के पास जवाब देने के लिए कुछ है ही नहीं ऐसा उनके विरोधियों को प्रतीत हुआ। पर यदि हम मोदी की राजनीतिक यात्रा को देखें तो उन्होंने अपने विरोधियों को अपने पुरुषार्थ से चारों खाने चित्त किया हैं।
आरोपों का जवाब देने के बजाय वे सकारात्मक कार्य करते रहे। विकास के मुद्दों को उन्होंने सर्वोच्च प्राथमिकता दी। गुजरात के विकास मॉडल के वो ही वास्तुविद हैं। अर्थशास्त्री उनके इन कार्यों की चर्चा करने लगे। गुजरात में चौबीस घंटे बिजली की आपूर्ति को उन्होंने सुनिश्चित किया। पूंजी निवेशकों को उन्होंने निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए अनेक योजनाएं बनाई। और उन्हें साकार भी किया। गुजरात को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए उन्होंने कड़े कदम उठाए। 'न तो खाऊंगा ना ही खाने दूंगा' इस ध्येय वाक्य को उन्होंने चरितार्थ किया।
मोदी संघ के स्वयंसेवक हैं। वे प्रचारक भी थे। स्वयंसेवकों के प्रेरणापुंज डॉ. हेगड़ेवार हैं। डॉ. हेगड़ेवार की यह सीख है कि किसी भी आलोचना का उत्तर नहीं देना चाहिए। तर्क वितर्क में समय व ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी चाहिए। अपनी सम्पूर्ण शक्ति व ऊर्जा अपने सद्कर्मों में लगानी चाहिए। कई लोगों का उद्देश्य सिर्फ ज्ञान बाँटना व चर्चाओं में बने रहना होता है। इससे ज्यादा वो कुछ नहीं कर सकते। प्रत्यक्ष रूप से समाजहित में काम करने हेतु यह कभी सामने नहीं आते। शांति से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहो डॉ. हेगड़ेवार के इस ध्येय वाक्य को अपने जीवन में जीने वाले देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं।
ऐसा ही एक प्रसंग अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन में आया था। देश में गृहयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। हजारों की संख्या में अमेरिकी सैनिक मारे जा रहे थे। करोड़ों रुपयों की राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान हो रहा था। ऐसे कठिन वक्त में उन्हें एक निकम्मा राष्ट्रपति कहा गया था, उनपर सलाहों की बौछार की गई। एक महानुभाव ने सलाह दी कि अनाज पर पैसा खर्च न करते हुए सैनिकों को भोजन मिले ऐसी एक योजना मैंने तैयार की है। उन्होंने अपनी यह योजना अब्राहम लिंकन के समक्ष रखी। उन्होंने कहा कि मेरी इस योजना को अमल में लाया जाये तो हमारे सैनिक हष्ट-पृष्ठ हो जाएंगे। लिंकन बोले, " यदि हमारे सैनिक मोटे हो गए तो तो वो युद्ध कैसे कर पाएंगे। हमें दुबले पतले व फुर्तीले सैनिकों की आवश्यकता हैं।" सलाह देनेवाले व्यक्तियों के प्रति लिंकन का यह मत था कि सभी सलाह देनेवालों को एकत्रित होकर यह विचार करना चाहिए कि दुश्मन का कैसे विनाश किया जाय। राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति को सलाहों का जितना कम शोर सुनाई दे यह उस देश के लिए हितकारी होता है। और हमेशा की तरह अब्राहम लिंकन ने एक कहानी सुनाई। तूफान में फसे हुए एक किसान ने ईश्वर से प्रार्थना की कि बादलों की कड़कड़ाहट की आवाज की अपेक्षा यदि मुझे बिजली का प्रकाश दिखा दो जिससे मुझे अपने रास्ते पर चलना आसान हो जाय। तो हे प्रभु तू, आवाज कम कर व रोशनी दिखा। " हमारे देश में विरोधियों की स्थिति ऐसी ही है। वो शोर ज्यादा करते हैं। पर समस्याओं के निराकरण के संबंध में कोई व्यवहारिक मार्ग नहीं दिखाते।
विपरीत परिस्थितियों में जो व्यक्ति शांत रहता है व मौन धारण कर लेता है, वो अंत में सबसे ज्यादा समर्थ सिद्ध होता है। भगवत गीता के दसवें अध्याय का 38 वा श्लोक कहता है,
'दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।'
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, 'दमन करनेवालों में दण्डनीति मैं हूँ और विजय चाहने वालों में विजयनीति भी मैं ही हूँ। गोपनीय भावों में मौन हूँ और ज्ञानवानों में ज्ञान भी मैं हूँ।' श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में जो कहा है वो नरेंद्र मोदी पर अक्षरशः चरितार्थ होता है। ऐसा मुझे प्रतीत होता है। मौन धारण करने वाले मोदी अपने कृतित्व से प्रत्येक आलोचना का जवाब देते हैं। यह कृतित्व पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकवादी ठिकानों पर हवाई हमले, भारतीय सीमा में घुसे चीनी सैनिकों को पीछे धकेलने में परिलक्षित होता है। मोदी बोलते नहीं हैं। वो कर्म में विश्वास रखते हैं। एक संस्कृत में सुविचार लिखने वाले कहते हैं, 'मुँह से बोलने वाले, गाने वाले पक्षी पिंजरे में कैद कर लिए जाते हैं जबकि कुछ न बोलने वाला बगुला कभी बंदी नहीं बनाया जाता। उसे कोई भी पिंजरे में लाकर नहीं रखता।'
पंचतंत्र में बातूनी कछुए की कथा है। इस कछुए को आकाश से दुनिया देखनी थी। दो राजहंस एक लकड़ी लेकर आते हैं। वो कछुए से कहते हैं कि अपने मुँह से इस लकड़ी को कसकर पकड़ ले पर अपना मुँह बिल्कुल मत खोलना। लकड़ी के दोनों सिरे अपनी चोंच में दबाकर राजहंस उड़ने लगते हैं। जब ये हंस आसमान में ऊंची उड़ान भरने लगते हैं तब लकड़ी में लटके इस कछुए को देखकर कुछ बच्चे शोर शराबा करने लगते हैं। कछुए को ये बात सहन नहीं होती। वो अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए मुँह खोलता है और नीचे गिरकर उसकी मौत हो जाती है। यह पंचतंत्र की कथा है। अनावश्यक रूप से असमय अपना मुँह न खोला जाय इसलिए मोदी शांत हैं।
इन सभी को मोदी का जवाब क्या होगा इसकी कल्पना करना अभी मुश्किल है। अफ़ज़ल खान के विरुद्ध छत्रपति की रणनीति क्या थी यह बात अफ़ज़ल खान का पेट फटने के बाद ही दुनिया के सामने उजागर हुई। अफ़ज़ल खान को क्या उत्तर दिया जाना है यह सिर्फ छत्रपति शिवाजी को ही पता था। आज इसी भूमिका में नरेंद्र मोदी हैं। आइए हम भी शांत व मौन रहें तथा मोदी जी के उत्तर की प्रतीक्षा करें।
*****
लेखक वरिष्ठ चिंतक एवम साप्ताहिक विवेक के पूर्व संपादक हैं।
अनुवादक: अपर्णा अजय पाटिल, संपादक यश पत्रिका