कोरोना काल है। वर्क फ्रॉम होम का जमाना है। लगता है कि चुनाव परिणामों से जुड़ी सर्वेक्षण एजेंसियों ने भी इसी सुविधा का लाभ उठा लिया था। नतीजा, इन्होंने पूर्वानुमानों में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनवा दी। फिर क्या था, 'जंगलराज के युवराज' की ताजपोशी की तैयारियां होने लगीं। खबरिया चैनलों के भारी-भरकम विश्लेषणों ने भी उल्टी दिशा पकड़ ली। एनडीए की नीतियों पर सवाल दागे गए। यह तो होना ही था, की तर्ज पर पांडित्य उड़ेला गया।
अगले दिन चढ़ते सूरज के साथ युवराज जोड़ी के चेहरे उतरते गए और दोपहर होते-होते साफ हो गया कि बिहार में फिर से एनडीए की सरकार ही बनने जा रही है और अंतिम नतीजे सिर्फ यह तय करने वाले हैं कि जीत का अंतर क्या रहता है। इतना ही नहीं, इसके साथ ही 11 राज्यों की 58 सीटों पर हुए चुनावों में भी लोगों ने भाजपा की झोली में 40 सीटें डालकर बता दिया कि इस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों, उसकी दृष्टि और उसके इरादों के प्रति उनका भरोसा कैसा है। सियासी दलों के लिए हर चुनाव एक परीक्षा की तरह होता है। नतीजे बताते हैं कि जन के मन, उसकी उम्मीदों की कसौटी पर किसी पार्टी ने कैसा काम किया। बिहार विधानसभा और उसके साथ हुए उपचुनावों के नतीजे भी हर पार्टी के लिए खास संदेश लेकर आए हैं।
●भाजपा के लिएः नरेंद्र मोदी-अमित शाह के नेतृत्व पर लोगों का भरोसा बढ़ा है और वे आम तौर पर भाजपा की नीतियों का समर्थन करते हैं। भरोसा इतना कि सहयोगी दलों की कमजोरियों को भी नजरअंदाज कर दें।
●जदयू के लिएः पंद्रह साल से सरकार चलाने के बाद किसी चूक के लिए आपके पास कोई दलील नहीं रह जाती। बदलते समय के साथ लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं और उनपर खरा उतरना ही होगा। साथी मजबूत हो तो वह आपको भी मुसीबत से उबार सकता है। यानी, नीतीश की नैय्या, भाजपा खेवैया।
● राजद के लिएः लालू ने एम-वाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के आधार पर लंबे समय तक राज किया। इस बार भी उसी फॉर्मूले को नई पैकेजिंग के साथ आजमाने की तैयारी की गई। युवाओं और महिलाओं को जोड़ने का जुगाड़ किया। पर युवा नौकरी और महिला वोटर अपराध मुक्त प्रशासन के झांसे को ऐन मौके पर भांप गए। तेजस्वी ने अच्छा रंग जमाया लेकिन कोरे जातिगत वोटो के सहारे जाम - 'हाथ तो आया, मुंह न लगा' वाली स्थिति हो गई।
● कांग्रेस के लिएः बुढ़िया पार्टी राज्यों में वेंटिलेटर पर है। सांस लेने के लिए विपक्षी सहारे की जरूरत होती है। सीख यही कि जबतक राति-नीति राष्ट्रहित के साथ कदमताल नहीं करेगी, आपकी उम्मीदों का दीया वर्तमान कुलदीपक के सहारे तो जलने से रहा।
● वामपंथी दलों और उनके दर्दमंदों के लिए: बिहार में वामपंथी दलों को इस बार चुनाव में 16 सीटें मिलीं हैं। इसे वामपंथ की जबरदस्त उछाल के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन मत प्रतिशत कहानी का मर्म बता जाता है। असलियत यह है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग के अगुआ कॉमरेड विभिन्न राज्यों में अन्य दलों के टुकड़ों पर पलते रहे हैं। तमिलनाडु में द्रमुक, आंध्र में जगन और बिहार में महागठबंधन की पीठ पर चढ़कर अपनी उंचाई ज्यादा बताने का करतब कॉमरेड पहले से ही करते रहे हैं। व्यवस्था के नाम पर अराजकता चाहने वाले कामरेडों का आधार उतना ही है जितना किसी भले लोगों के मोहल्ले में बदमाशों की संख्या हो सकती है। वैसे, 131 जनवादी साहित्यकारों ने मतदाताओं से न 'भटकने' की अपील की थी। नतीजे बता रहे हैं कि ऐसे स्वयंभू जन से कटे हुए और 'वाद' के खूंटे से बंधे हुए हैं।
●विपक्षी गठबंधन के लिएः कांग्रेस का साथ यानी पांव में पत्थर बांधकर इंग्लिश चैनल पार करने की चुनौती। खुद को आंकने में असफल राजद इस सहयोगी पर नाहक सीटें लुटा बैठा। राजद को बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव में 80 सीटें मिली थीं। तब कांग्रेस को 40 सीटें दी गईं जिनमें से उसे 27 पर जीत हासिल हुई। इस स्ट्राइक रेट ने उम्मीदों को कुछ ज्यादा ही हवा दे दी। लिहाजा, 70 सीटें दी गईं जिनमें सिर्फ 19 ही झोली में आ सकीं। यानी 'हाथ' अगर सिर पर रहे तो हाल वही होगा- हम तो डूबेंगे ही सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे।
भाजपा और उसके सहयोगियों दलों का साझा प्रदर्शन बताता है कि इनका विजयरथ भाषा और भूगोल की खांचेबंदी को तोड़कर लगातार बढ़ रहा है। अनु. 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन अधिनियम से लेकर लद्दाख और ताजा कृषि सुधारों तक देश के मानस को खलने वाली बात कहते हुए कांग्रेस अपनी जमीन खो चुकी है। इन परिणामों को राज्यों के राजनीतिक प्रदर्शन के अलावा केंद्र सरकार द्वारा वैश्विक संकटकाल में समाधान की तत्परता और इससे उपजे संतोष का प्रतिफल कहना गलत नहीं होगा।
बहरहाल, समाचार चैनल हवाई पूर्वानुमानों के बाद जमीनी विश्लेषण करने में हांफ रहे हैं। चुनावी कसरत के बाद राहुल गांधी छुट्टी मनाने जैसलमेर निकल गए हैं ....एफएम पर सगीना फ़िल्म का गाना बज रहा है-
आग लगी हमरी झोपड़िया मा हम गावें मल्हार,
देख भाई कितनी तमाशे की, ज़िंदगानी हमार!