स्‍वदेश विशेष: संविधान तुझे नमन…

Update: 2025-01-26 00:49 GMT

प्रो. कन्हैया त्रिपाठी। आज भारतीय गणतंत्र का वह पर्व है जिसे हम ऐतिहासिक रूप से स्मरण कर सकते हैं। 26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ। आज हम उस महत्त्वपूर्ण पल के 75 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं।

26 जनवरी की भोर हमें हमारे अतीत का स्मरण दिला रहा है जिसमें हमारी अस्मिता और विश्वास के कानून प्रतिबिंबित थे। सच में, संविधान ने भारत को बहुत कुछ दिया। स्वतंत्रता, बंधुता और गरिमा के साथ जीने का सुअवसर संविधान से हमें प्राप्त हुआ।

आज़ादी से पूर्व जिस बात के लिए हमारी डर थी, कि आज़ादी के बाद भी वंचित और शोषित वर्ग के लोग क्या समान गरिमा के साथ जी सकेंगे, वह भ्रम भी 75 वर्ष बाद बिलकुल दूर हो चुका है। आज़ तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और सबका प्रयास के साथ हम भारत के लोग आगे बढ़ने को तत्पर है।

हमारे आज़ादी के स्वर्ण काल में संविधान के इस स्वर्णिम अवसर पर भारत यह कहने की स्थिति में है कि हमारा संविधान भारत की आन-बान-शान है, और इसके माध्यम से हम विकास के नए-नए अध्याय लिखने में सक्षम हैं।

संविधान की शक्ति से भारत न्यायप्रिय देश के रूप में आज अपनी जगह बना चुका है। हमारे साथ मिली अनेक देशों की आज़ादी, और उनके द्वारा अपनाए गए स्वतंत्रता व बंधुता के मूल्य बिखर गए। लेकिन, भारत ने सदैव लोकतंत्र की रक्षा करते हुए अपने नागरिकों को संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करने का प्रयास किया, और उसमें वह सफल भी हुआ है।

इस संविधान का ज़िक्र मन की बात की 118वीं कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। उन्होंने राजेंद्र बाबू के कथन को स्मरण किया था, जिसमें डॉ। राजेंद्र प्रसाद यह कहते हैं कि हमारा इतिहास बताता है और हमारी संस्कृति सिखाती है कि हम शांति प्रिय हैं, और रहे हैं।

हमारा साम्राज्य और हमारी फतह दूसरी तरह की रही है, हमने दूसरो को जंजीरो से, चाहे वो लोहे की हो या सोने की, कभी नहीं बांधने की कोशिश की है।

हमने दूसरों को अपने साथ, लोहे की जंजीर से भी ज्यादा मजबूत मगर सुंदर और सुखद रेशम के धागे से बांध रखा है और वो बंधन धर्म का है, संस्कृति का है, ज्ञान का है। हम अब भी उसी रास्ते पर चलते रहेंगे और हमारी एक ही इच्छा और अभिलाषा है, वो अभिलाषा ये है कि हम संसार में सुख और शांति कायम करने में मदद पहुंचा सकें और संसार के हाथों में सत्य और अहिंसा के वो अचूक हथियार दे सकें जिसने हमें आज आज़ादी तक पहुंचाया है।

हमारी जिंदगी और संस्कृति में कुछ ऐसा है जिसने हमें समय के थपेड़ों के बावजूद जिंदा रहने की शक्ति दी है। अगर हम अपने आदर्शों को सामने रखे रहेंगे तो हम संसार की बड़ी सेवा कर पाएंगे। सबसे अहम् बात यह है कि संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में भारतीय मंशा जो डॉ। राजेंद्र प्रसाद ने अभिव्यक्त की थी, वह 75 वर्ष बाद भी हमारी चेतना का हिस्सा है, जिसे प्रधान मंत्री ने दुहराया है।

आज़ हमारे गणतांत्रिक व्यवस्था में संविधान के माध्यम से सभी अधिकार सुरक्षित करने की क्षमता है, जिसे भारतीय नागरिक अपने आनंद का हिस्सा बना सकते हैं। गरीब, वंचित, श्रमिक वर्ग हो या स्त्रियाँ, बच्चे, बूढ़े, निःशक्त या फिर दलित, आदिवासी, एलजीबीटीक्यू समाज के लोग सभी के लिए संविधान ने अपार उपलब्धियां और क्षमताएं प्रदान की है।

हमारे संविधान में समय-समय पर हुए बदलाव से भी न केवल हमने अपने नागरिकों के प्रति विश्वास पैदा किया है अपितु धारा 370 जैसे बदलाव के माध्यम से हमने अपनी संप्रभुता को भी सशक्त बनाने में कामयाबी हासिल की है।

ज्ञान, शांति व प्रगति की इस पुस्तक को आज नमन करने का समय है। इस पुस्तक को सदैव सभी नागरिकों में गीता की भांति प्रचारित-प्रसारित करने की आवश्यकता है जो अब भी संविधान के ककहरे से अनभिज्ञ हैं। यद्यपि वे इसी संविधान से पूरे भारत को विकास व विस्तार में अपना योगदान दिए हैं फिर भी विशेषज्ञों व प्रेक्षकों का यह मानना है कि संविधान को बहर के ग्रामीण, आदिवासी इलाके के लोग नहीं जानते।

ऐसे लोगों के बीच एक सघन जानकारी यदि सरकार, समाज व सेवाभावी संगठन प्रदान करें तो निश्चय ही भारत में अभिनव क्रांति आएगी और देश को मजबूती प्राप्त होगी।

आज जो चुनौतियाँ सम्पूर्ण पृथ्वी को अस्थिरता, अविश्वास और आत्मशक्ति को कमजोर करने की कोशिश करने लगी हैं, उससे हमारा संविधान ही बचाएगा इसलिए आज यह ऐतिहासिक समय हमें यह तय करने का भी दिन है कि हम हमारी संवैधानिक अभिरुचि, निष्ठा व कर्त्तव्यबोध के लिए सुनिश्चित हों। यह अवसर है भारत को गरिमामाय बनाये रखने हेतु संकल्प भी।

हमारे संविधान सभा के लोगों ने अपना दिमाग व सर्वस्व समर्पित करके इस महनीय पुस्तक को हमें समर्पित किया था। इसमें हमारी महिला नेत्रियों का भी असीम सहयोग रहा है, इसे न भूलने का भी यह दिवस है।

हमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. आंबेडकर, सी. राजगोपालाचारी, अयंगर और हंसा मेहता समेत उन सभी भारत के लिए स्वप्नदर्शियों के सपनों का भारत बनाना है, इसे हमें स्मरण रखना ज़रूरी है। 

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