राष्ट्रीय पर्व पर दिल्ली में "तथाकथित किसानों" द्वारा मचाया उपद्रव क्षमा योग्य नहीं
कुलिन्दर सिंह यादव
देश की राजधानी के दृश्य लोकतंत्र की गरिमा को चोट पहुंचाने वाले
संविधान की मान्यता के पर्व पर देश की राजधानी के दृश्य लोकतंत्र की गरिमा को चोट पहुंचाने वाले हैं | जिस प्रकार से गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर देश की राजधानी में तथाकथित किसानों द्वारा उपद्रव मचाया गया निश्चित रूप से यह क्षमा योग्य नहीं है | दिल्ली के कई क्षेत्रों से ऐसी वीडियो सामने आई है जहां पर किसानों द्वारा ट्रैक्टर से दिल्ली पुलिस के जवानों को कुचलने का प्रयास किया गया | ऐसे उपद्रवी किसानों को यह याद रखना होगा कि यदि देश का सम्मान है तो आप हैं | हिंसा लोकतंत्र की जड़ों में दीमक के समान है | जो लोग मर्यादा के बाहर जा रहे हैं वह अपने आंदोलन व अपनी मांग की वैधता व संघर्ष को खत्म कर रहे हैं | यदि इसी प्रकार से आप ऐसा करते रहते हैं तो निश्चित रूप से आप अपनी बात रखने की सुचिता व स्वीकार्यता समाप्त कर लेंगे | जिस प्रकार का दृश्य गणतंत्र दिवस के पर्व समूचे राजधानी क्षेत्र विशेषकर लाल किले से देखने को मिला है | यह निश्चित रूप से भारत की प्रतिष्ठा पर चोट करता है | गणतंत्र दिवस के इस पर्व पर जब पूरे विश्व की निगाहें भारत पर टिकी हो और ऐसे में इस तरह की अव्यवस्था यदि राजधानी क्षेत्र में बनती है तो इससे भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल होती है | विभिन्न संगठनों को यह याद रखने की जरूरत है कि उनके संगठन और उनके धर्म से पहले भारतीय तिरंगे का स्थान है | ऐसे में जिस तरह से लाल किले की प्राचीर पर विभिन्न संगठनों के और विभिन्न धर्मों के झंडे फहराए गए वह सर्वथा अनुचित है |
आंदोलन का उद्देश्य ?
किसी भी आंदोलन की सफलता के लिए कुछ मूलभूत बातें आवश्यक होती हैं | जिनमें आंदोलन का उद्देश्य क्या है ? आंदोलन में सम्मिलित हर व्यक्ति को पता होना चाहिए | इसके साथ-साथ किसी भी आंदोलन की सफलता के लिए एक नेतृत्व की भी आवश्यकता होती है और जरूरी यह होता है कि नेतृत्व करने वाले समूह में सभी सदस्य सर्वसम्मति से चुने गए हो | किसी भी आंदोलन के सफल होने के लिए सबसे अहम शर्त यह होती है कि वह आंदोलन किसी भी हाल में देश विरोधी ना होने पाए और कभी भी राष्ट्रीय संपत्ति और राष्ट्रीय मनोबल पर चोट उस आंदोलन के द्वारा ना पहुंचाया जाए | वर्तमान समय में यदि हम देखें तो किसानों का आंदोलन पिछले दो माह से शांतिपूर्वक चल रहा था और देश का हर वर्ग इनके समर्थन में खड़ा था | लेकिन जिस प्रकार से गणतंत्र दिवस के अवसर पर यह आंदोलन हिंसक हुआ है उससे निश्चित तौर पर अब इस आंदोलन को जन स्वीकार्यता मिलना मुश्किल हो जाएगा | यह आंदोलन पूरी तरह से अब अपने उद्देश्यों से भटका हुआ दिखाई देता है | ऐसे में आवश्यक है कि गृह मंत्रालय आवश्यक कार्रवाईयों के माध्यम से इसको हिंसक होने से रोकने का प्रयास करें |
किसान नेताओं के हाथ से निकला आंदोलन, अब चुप्पी
मौजूदा समय में आंदोलन के हिंसक होने के बाद से लगातार किसान नेताओं द्वारा यह कहा जा रहा है कि हिंसक भीड़ उनके आंदोलन का हिस्सा नहीं है | कुछ किसान नेताओं का यह भी कहना है कि यह भीड़ दिल्ली पुलिस की अव्यवस्था के कारण हिंसक हो चली है | कारण चाहे जो भी हो लेकिन यदि कोई आंदोलन हिंसक होता है तो उसको किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता | जब दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच में एक समझौते के बाद किसानों के मार्च के लिए रूट निश्चित किए गए थे तो आखिर किसानों ने इनका उल्लंघन क्यों किया ? इसकी जिम्मेदारी तो अंततः किसानों के नेताओं को लेनी ही होगी | देश की प्रतिष्ठा और सम्मान के लिए अब किसानों को बलपूर्वक कार्रवाईयों के माध्यम से दिल्ली से बाहर करना सरकार की आवश्यकता से अधिक विवशता हो चली है | किसानों को भी यह समझने की जरूरत है कि यदि वह अपने उद्देश्य से भटकते हैं तो सरकार को उनके आंदोलन को दबाने में समय नहीं लगेगा | मौजूदा समय में दिल्ली में देशभर से लाखों की संख्या में किसान एकत्रित हो गए हैं | ऐसे में यदि इनको समय पूर्व आवश्यक कार्रवाईयों के माध्यम से दिल्ली से बाहर इनके पूर्व के स्थान पर नहीं भेजा जाता है तो इससे दिल्लीवासियों के साथ-साथ सरकार की भी समस्याएं बढ़ना तय है |