नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी से 'मध्य स्वदेश' की विशेष चर्चा

भाग्य नहीं, संगठन की कुशल रणनीति ने पहुंचाया संसद

Update: 2020-06-19 14:58 GMT

भोपालमैं भाग्य से कहीं अधिक कर्म पर विश्वास करता हँ। मेरे संगठन के श्रेष्ठ प्रबंधन और संगठन पदाधिकारियों की कुशल रणनीति, उनके अनुभव और प्रत्येक कार्यकर्ता की ध्येयनिष्ठ कार्यशैली जैसे अनेक चीजों को मिलाकर यह सब संभव हो पाया है कि आज राज्यसभा के माध्यम से मेरे लिए संसद का मार्ग प्रशस्त किया गया है। भाजपा एक मात्र राजनीतिक दल है जो एक छोटे से आदिवासी कार्यकर्ता को उठाकर राज्यसभा भेज देती है। ये कोई दूसरी पार्टी नहीं कर सकती, यह चमत्कार सिर्फ भारतीय जनता पार्टी में ही हो सकता है। इसलिए मेरा समाज गौरवांवित मेहसूस करता है और भाजपा का अनन्य भक्त है। मप्र के सभी आदिवासी भाईयों की ओर से भाजपा के केन्द्रीय और प्रदेश नेतृत्व का हृदय से आभार व्यक्त करता हँू। यह बात भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी ने शुक्रवार को 'मध्य स्वदेश' से विशेष चर्चा में कही।

राज्यसभा सांसद के रूप में अपनी प्राथमिकताएं बताते हुए श्री सोलंकी ने कहा कि मुझे संगठन के राष्ट्र और समाजहित के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम करना है। संगठन ने अब तक जो दायित्व सौंपे उन्हें निभाने का प्रयास किया और आगे भी संगठन जो दायित्व देगा उनका निर्वहन करना है। श्री सोलंकी ने कहा कि भारत सरकार की सभी योजनाओं और कामों को धरातल तक ले जाना मेरी प्राथमिकता होगी। साथ ही मेरे अपने मुख्यधारा से पिछड़े आदिवासी समाज में स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा का प्रसार करना है। वनीकरण तथा उनके पलायन को रोकना है। जल जंगल और जमीन, उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। श्री सोलंकी ने बताया कि मैंने अपने इस राज्यसभा कार्यकाल के लिए 16 बिन्दु तय किए हैं। इन बिन्दुओं पर काम करूंगा। उन्होंने बताया कि सांसद के रूप में सरकार से संबंधित कामों के अलावा किसानों के हित में खेती को लाभ का धंधा बनाने की दिशा में तथा किसानों के बेटे-बेटियों को अन्य शैक्षणिक योग्यताओं की बजाय कृषि के क्षेत्र में नवाचार एवं पढऩे के लिए प्रेरित करूंगा। उन्होंने बताया कि किसानों, गरीबों, दलितों, मजदूरों और उनके बच्चों के लिए उच्च शिक्षा, चिकित्सा, वनीकरण, पर्यावरण, स्वच्छता जैसे मुद्दों पर जनजागरुकता के लिए पहले भी काम करता आया हँू। और अब सरकार का हिस्सा होकर इन कामों की गति बढ़ाऊंगा।

सांसद के रूप में बढ़ा दायित्व का दायरा

डॉ.सोलंकी ने कहा कि शिक्षक और सांसद दोनों ही अपनी-अपनी जगह राष्ट्र निर्माण के दायित्व हैं। शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा भी जाता है। सांसद भी संवैधानिक पद है। मैं शिक्षक के रूप में जिस क्षेत्र में काम करता था, सांसद का दायित्व मिल जाने के बाद मेरे कार्यक्षेत्र का विस्तार हो गया है। मैं बड़े क्षेत्र में संवैधानिक पद पर रहते हुए अधिकार पूर्वक मप्र सरकार और भारत सरकार के विभिन्न योजनाओं और सरकार के सपनों को निचले स्तर तक अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करूंगा।

आदिवासी समाज का दर्द मेरे मन में है

डॉ. सोलंकी ने कहा कि मैं आदिवासी परिवार से हँू। मेरे आदिवासी समाज, गरीब, मजदूर और किसानों का दर्द मैं समझाता हँू। यह दर्द मेरे मन में हैं, उसी दर्द ने मेरे मन में कुछ बेहतर करने संकल्प पैदा किया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुसांगिक संगठन इतिहास संकलन योजना में मालवा प्रांत के महामंत्री का दायित्व में रहकर काम किया। वनवासी कल्याण आश्रम विद्याभारती और जनजाति शिक्षा सम्मेलनों में भी मेरे द्वाराकाम किया गया। मैंने सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयामों पर बहुत काम किया है। चूंकि जनजाति क्षेत्र से हँू इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मेरी पहचान बनी। महाविद्यालयीन युवाओं के बीच रहते हुए हजारों विद्यार्थियों के साथ मिलकर समाज कल्याण के लिए जागरुकता के कार्य किए। जल,जंगल, जमीन की बात हो या स्वच्छता की या फिर स्कूल चलें अभियान या स्वच्छ लोकतंत्र के लिए मतदाता जागरुकता की बात हो। पर्यावरण को ठीक करने वृक्षारोपण और जल को बचाने के लिए राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से जल बचाओ अभियान में सैकड़ों बोरी बंधान तैयार किए। विद्यार्थियों, ग्रामीणों और आदिवासी भाईयों के सहयोग से वृहद स्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम किए। अब मोदी जी की टीम का हिस्सा बनकर यह सब काम आसानी से कर सकूंगा।

कभी नहीं रही पद की लालसा

डॉ. सोलंकी ने कहा कि राज्यसभा या किसी भी बड़े पद पर जाऊं ऐसी न तो मन में कभी लालसा रही और न ही इस तरह की महत्वाकांक्षा पाली। मेरा संगठन हमें वो व्यवहार और शिष्टाचार सिखाता है जिसमें महत्वाकांक्षाएं नहीं होती, इस तरह की कोई चीज हमारे मन में नहीं होतीं। हमेशा सिखाया जाता है कि एक स्वयंसेवक को राष्ट्र के लिए बेहतर कार्य करना चाहिए। मेरे मन में ऐसी कोई कल्पना या महत्वाकांक्षा नहीं थी कि मैं राज्यसभा या अन्य किसी पद पर जाऊं। संगठन ने स्वयं तय किया और मुझे राज्यसभा के प्रत्याशी बनाए जाने की सूचना दी गई। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि मेरे लिए मेरा संगठन, मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही सर्वोपरि है। मेरे संगठन में जितने भी वरिष्ठ लोग हैं, उन सभी का मार्गदर्शन सदैव मिलता रहा। मेरे लिए राजनीति में गॉड फादर जैसी कोई बात नहीं रही। उन्होंने बताया कि मेरे काका माखनसिंह सोलंकी सांसद रहे और मां जनपद सदस्य रहीं।

कांग्रेस ने किया दलित का अपमान

कांग्रेस प्रत्याशी फूलसिंह बरैया को द्वितीय बरीयता दिए जाने पर प्रतिक्रिया में डॉ. सोलंकी ने कहा कि कांग्रेस के पास जब बहुमत नहीं था तो दलित को राज्यसभा प्रत्याशी बनाकर उनको अपमानित नहीं करना था। दलित को प्रत्याशी बनाया तो या तो पर्याप्त सदस्य संख्या होनी चाहिए थी या फिर प्रथम बरीयता देकर उन्हें राज्यसभा भेजा जाना चाहिए था। उन्होंने कह कि 70 सालों से कांग्रेस दलित और आदिवासी हितैषी होने की बात तो करती है। अगर ऐसा होता तो उन्हें प्राथमिकता से फूलसिंह बरैया को राज्यसभा भेजना था।


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