मोदी सरकार कितने ही मोर्चों पर अडिगता से डटी है, इसका अंदाजा तब होता है, जब एक के बाद एक चौकानेवाली सूचनाएं हमारे सामने आती हैं। स्विट्जरलैंड से आई यह सूचना भी कुछ ऐसी ही है, जिसने उन तमाम लोगों को आज कटघरे में खड़ा कर दिया है जो स्विस बैंक के नाम से मोदी सरकार पर आरोप लगाने में जरा भी देरी नहीं करते। वस्तुत: स्विट्जरलैंड के साथ आटोमैटिक एक्सचेंज आफ इन्फारमेशन पैक्ट (एईओआइ) के तहत भारत को इस महीने अपने नागरिकों के स्विस बैंक खातों के विवरण का तीसरा सेट प्राप्त हो जाएगा। जिसमें कि पहली बार भारतीयों के रियल इस्टेट संपत्तियों के भी आंकड़े होंगे।
देखा जाए तो यह एक बहुत बड़ा निर्णय है जोकि स्विस सरकार ने भारत के आग्रह को ना केवल स्वीकार्य करते हुए किया है बल्कि हर संभव मदद भी उन दिग्गज लोगों के नाम उजागर कर दे रही है, जिन्होंने आम भारतीयों का रुपया किसी तरह से स्विस बैंक में जमा करा दिया है। आज फिर भले ही इनके खाते बंद हो गए होंगे या जिनके खुले भी हैं, उनके बारे में मोदी सरकार को स्विटजरलैंड से यह तो पता चल ही जाएगा कि कौन-कौन गुनहगार भारत की आम जनता के हैं, जिन्होंने यहां भारतीय रुपये छुपाने का प्रयास किया है।
तथ्यों को देखें तो आटोमैटिक एक्सचेंज आफ इन्फारमेशन पैक्ट के अंतर्गत भारत को सितंबर, 2019 में पहला सेट प्राप्त हुआ था। उस साल वह इस तरह की जानकारियां पाने वाले 75 देशों में शुमार था। सितंबर, 2020 में भारत को अपने नागरिकों और कंपनियों के बैंक खातों के विवरण का दूसरा सेट स्विस सरकार की ओर से दिया गया। तब स्विटजरलैंड के फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफटीए) ने 85 अन्य देशों के साथ भी एईओआइ पर वैश्विक मानकों के दायरे में इस तरह की जानकारियां साझा की गई थीं।
इसके लिए यदि गहराई से विचार किया जाए तो वर्ष 2014 में केंद्र की भाजपा सरकार बनने के पूर्व ही चुनावी रैलियों के दौरान तत्कालीन समय में नरेन्द्र मोदी से स्पष्ट कर दिया था कि यदि सत्ता में आए तो स्वीस बैंकों में किस-किस ने भारत की गाढ़ी कमाई छिपा रखी है, इसका पर्दाफाश करने के लिए दबाव बनाएंगे और जो उन्होंने कहा, वह कर दिखाया है, सत्ता में आने के बाद से लगातार देखने में आ रहा है कि न केवल स्वीस सरकार से बल्कि दुनिया के कई देशों से ऐसी जानकारी भारत सरकार मांग रही है, जहां भारतीयों ने बहुत अधिक धन रखा है । सही पूछिए तो इसके लिए वैश्विक स्तर पर स्विटजरलैंड पर इन जानकारियों को साझा करने का दबाव भारत ने अन्य देशों के साथ मिलकर इतना अधिक बनाया कि आज स्विस सरकार अपने यहां रखे धन के मालिक का नाम विश्व बिरादरी के साथ बांटने को तैयार हो चुकी है।
यहां देखने में आया है कि भारत स्थित शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से स्विस बैंक में भारतीयों और फर्मों द्वारा जमा किया गया फंड, 2020 में प्रतिभूतियों और इसी तरह के उपकरणों के माध्यम से होल्डिंग्स में तेजी से उछाल आया देखा गया था । यह अब 2.55 बिलियन स्विस फ़्रैंक (20,700 करोड़ रुपये से अधिक) तक पहुंच गया है । स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारी जारी किए वार्षिक आंकड़ों में यह बात उभरकर सामने आई है। यह एक तथ्य है कि साल 2020 में स्विस बैंकों में कुल जमा राशि साल 2019 की तुलना में बढ़ कर 286 प्रतिशत हो गई। कुल जमा राशि 13 साल में सबसे ज्यादा है, जो साल 2007 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है। यह वृद्धि नकद जमा के तौर पर नहीं बल्कि प्रतिभूतियों, बांड समेत अन्य वित्तीय उत्पादों के जरिये रखी गई होल्डिंग से हुई है।
कांग्रेस चाहती है कि सरकार श्वेत पत्र लाकर देशवासियों को बताए कि यह पैसा किनका है और विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं ? कांग्रेस यह भी आरोप लगाती रही है कि मोदी सरकार उन लोगों के नामों का खुलासा क्यों नहीं कर रही, जिन्होंने पिछले साल स्विस बैंकों में अपना पैसा जमा कराया? जब 97 प्रतिशत भारतीय और ज्यादा गरीब हो गए, तो ये कौन लोग हैं, जो 'आपदा में अवसर' खोज रहे हैं? पिछले सात सालों में कितना-कितना काला धन और किस-किस देश से वापस लाया गया? मोदी सरकार ने विदेशी खातों में काला धन छिपाए जाने से रोकने के लिए क्या उपाय किए?
इसमें कहना होगा कि यह मोदी सरकार का ही प्रभाव है कि स्विस सरकार के अधिकारी बता रहे हैं कि कर चोरी समेत वित्तीय गड़बडि़यों की जांच के सिलसिले में प्रशासनिक सहायता के आग्रहों पर स्विस अधिकारी पहले ही 100 से अधिक भारतीय नागरिकों और कंपनियों के बारे में जानकारियां साझा कर चुके हैं।
सच पूछिए तो भारत सरकार के इस दिशा में किए गए प्रयासों को विदेश में जमा कालेधन के खिलाफ भारत सरकार की लड़ाई में मील का पत्थर इस स्वीस सरकार के निर्णय को माना जा सकता है। इसके तहत भारत को इस महीने स्विटजरलैंड में भारतीयों के फ्लैट, अपार्टमेंट और संयुक्त स्वामित्व वाली रियल इस्टेट संपत्तियों की भी पूरी जानकारी प्राप्त होगी। साथ ही इसमें इन संपत्तियों से हुई कमाई का भी उल्लेख होगा ताकि इनसे जुड़ी कर देयता की जांच में मदद मिल सकेगी । बात बिल्कुल साफ है, मोदी सरकार ने जो वादा किया, वह उसे निभाती हुई नजर आ रही है, इससे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि सरकार भारत के धन के उन तमाम स्त्रोतों को जानने का ईमानदारी से प्रयास कर रही है जोकि विदेश पहुंच गया है, मोदी सरकार की यह मंशा भी इसमें साफ नजर आ रही है कि वह इस धन को भारत वापिस लाने के लिए कृतसंकल्पित है।
- लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता से जुड़े हैं।