तालिबान के सत्ता में आने के साथ ही अपने को बदलकर इंसानीयत के रास्ते पर चलने के लाख दावों की सच्चाई अब दुनिया के सामने आने लगी है, वह आज भी वैसा ही क्रूर और मानवता के खिलाफ दरिंदगी दिखाता नजर आ रहा है जैसा कि 20 साल पहले था। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से आए दिन इसके प्रमाण सामने आ रहे हैं।
वस्तुत: तालिबानियों के मनोविज्ञान को थोड़ा भी समझने का प्रयास किया जाए तो समझ आता है कि वह अपनी इस्लामिक कट्टरता और शरिया से जरा भी दूर नहीं होंगे। देखाजाए तो उनकी यह जिद मानवता के लिए आज बहुत ही खतरनाक सिद्ध हो रही है। उनका एक ही लक्ष्य दृष्टिगत होता दिखता है, हर हाल में इस्लाम का परचम पूरी दुनिया में फैलाना है। इस्लाम की सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहने के साथ ही औरतों को शरिया की आड़ में स्वतंत्रता से दूर रखना । कोई इस्लाम को मानता भी है लेकिन उनके मत से सहमत नहीं तो उसे मौत के घाट उतारने में जरा भी देरी नहीं करना जैसे इनके मुख्य कार्य हैं ।
यही कारण है कि इस्लाम को माननेवाले कई गुट आपस में लड़ते हुए नजर आते हैं। किंतु इन सभी भी एक बात समान है कि अधिकांश का दूसरे पंथ-समुदाय को देखने का नजरिया लगभग एक जैसा है। तभी तो दुनिया भर के अइस्लामिक देशों में या इस्लामिक देशों में भी जो आतंकी घटनाएं होती हैं, उनमें इन्हीं कट्टरपंथी आंतकी संगठनों का हाथ होना ही सामने आता है। हर बार कुरान को ये इसके पीछे का आधार मानते हुए दिखाई देते हैं और जब किसी को मौत के घाट उतार रहे होते हैं तब भी कुरान की आयतों का उच्चारण करते हुए अक्सर इनकी तस्वीरें मीडिया में आती हैं। इससे साफ होता है कि अंदरूनी तौर पर इनकी आपसी सत्ता की लड़ाई कितनी भी गहरी हो, किंतु इन सभी के सामने लक्ष्य एकदम साफ है, हर हाल में इस्लामिक परचम फहराना ।
इस तथ्य को नहीं नकारा जा सकता है कि इस्लामी आतंकवाद के कारण से सबसे अधिक घटनाएँ और मौतें भारत, इराक, अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया, यमन, सोमालिया, सीरिया और माली में हुईं हैं। ग्लोबल टेररिज़्म इण्डेक्स के अनुसार इस्लामिक आतंकवाद से सभी मौतों के 74 प्रतिशत के लिए इस्लामिक चरमपन्थी समूह उत्तरदायी हैं। आईएसआईएस, हक्कानी नेटवर्क, बोको हराम, तालिबान और अल-कायदा जिसमें कि सबसे आगे नजर आते हैं । सन् 2000 के बाद से, आतंक की घटनाएँ वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से और अधिकतम संख्या में हुई हैं, जो न केवल अफ़्रीका और एशिया में मुस्लिम-बहुल राज्यों को प्रभावित करती हैं, बल्कि गैर-मुस्लिम बहुमत वाले राज्यों को जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, बेल्जियम, स्वीडन, रूस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, श्रीलंका, इजरायल, चीन, भारत और फिलीपींसको भी प्रभावित करती हैं। इस प्रकार के सभी हमलों ने योजनाबद्ध तरीके से गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है।
यह भी एक साक्ष्य है कि इस्लामी चरमपन्थी समूहों द्वारा नागरिकों पर हमलों के लिए प्रेरित करने का आधार इस्लामी पवित्र पुस्तकों (कुरान और हदीस साहित्य) की चरम व्याख्याएं हैं। इनमें मुसलमानों इस्लाम को नहीं माननेवालों के खिलाफ सशस्त्र जिहाद के लिए उकसाया जाता है। डैनियल बेंजामिन और स्टीवन साइमन ने अपनी पुस्तक द एज ऑफ़ सेक्रेड टेरर में लिखा है कि इस्लामी आतंकवादी हमले विशुद्ध रूप से पान्थिक हैं। उन्हें "एक संस्कार के रूप में देखा जाता है ... ब्रह्माण्ड में इस्लाम की सत्ता को बहाल करने का इरादा एक नैतिक आदेश है। इस अर्थ में जो इस्लाम को नहीं मानते या तो उन्हें धर्मान्तरित कर दो अन्यथा उनका वध कर दो। के सिद्धान्त पर आधारित है।
इण्डोनेशियाई इस्लामी नेता याह्या चोलिल स्टाक्फ के टाइम मैगजीन को दिए गए साक्षात्कार को पढ़ें, तो उसमें उन्होंने साफ कहा है कि शास्त्रीय इस्लामी परम्परा के भीतर मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों के बीच सम्बन्ध अलगाव और दुश्मनी में से एक माना जाता है। चरमपन्थ और आतंकवाद रूढ़िवादी इस्लाम से जुड़े हैं और कट्टरपन्थी इस्लामी आन्दोलन कोई नयी बात नहीं है। वे यहां तक कहते हैं कि पश्चिमी राजनेताओं को यह दिखावा करना बन्द कर देना चाहिए कि चरमपन्थ इस्लाम से नहीं जुड़ा है।
ऐसा कहने का ठोस तर्क यह है कि इसी चरमपंथ से प्रभावित होकर ही दुनिया भर में इस्लाम का परचम स्थापित करने की मंशा से आतंकी संगठन अबू सय्याफ़, अल-अक्सा शहीद ब्रिगेड, अल-गामा अल-इस्लामिया, अल-कायदा, अल-शबाब, अंसार अल-इस्लाम, अंसार अल-शरिया, सशस्त्र इस्लामी समूह, बोको हराम, काकेशस अमीरात, इस्लामिक मूवमेंट, एजिप्शन इस्लामी जिहाद, ग्रेटईस्टर्न इस्लामिक रेडर्सफ्रंट, हरकत-उल-मुजाहिदीन, अल-अलामी, हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी, हिजबुल्लाह, इस्लामी आंदोलन, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट, शश-ए-मोहम्मद, जमात अंसार अल-सुन्ना, जेमाह इस्लामियाह, लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झंगवी, म्यूट ग्रुप, मोजाहिदीन-ए-खल्क, मोरो इस्लामिक लिबरेशन फ्रंट, मोरक्कन इस्लामिक कॉम्बैटेंट ग्रुप, नेशनल तौहीत जमात, फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद, तौहीद और जिहाद जैसे संगठन विश्व में आतंक का पर्याय बने हुए हैं।
आतंक की मानसिकता कितनी गहरी है वह इस तथ्य को देखकर भी समझ सकते हैं कि चार्ली हेब्डो के ऊपर गोलीबारी के लिए उत्तरदायी कोउची भाइयों में से एक ने फ़्रांसीसी पत्रकार को यह कहते हुए बुलाया, "हम पैगंबर मोहम्मद के रक्षक हैं।"Does Islam fuel terrorism?". सीएनएन 13 जनवरी2015। कुल मिलाकर तथ्य यह है कि इन सभी को जो बल मिलता है, साक्ष्यों के अनुसार वह कुरान की उन 26 विवादास्पद आयतों से मिलता है, जिसके अर्थ आतंकी अपने हिसाब से करने में सफल हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर हम यहां कुछ आयतों को देख सकते हैं।
فَاِذَاانْسَلَخَالۡاَشۡهُرُالۡحُـرُمُفَاقۡتُلُواالۡمُشۡرِكِيۡنَحَيۡثُوَجَدْتُّمُوۡهُمۡوَخُذُوۡهُمۡوَاحۡصُرُوۡهُمۡوَاقۡعُدُوۡالَهُمۡكُلَّمَرۡصَدٍ ۚفَاِنۡتَابُوۡاوَاَقَامُواالصَّلٰوةَوَاٰتَوُاالزَّكٰوةَفَخَلُّوۡاسَبِيۡلَهُمۡ कुरान का चैप्टर 9, सूरा-5 कहता है कि फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएं तो मुशरिकों को जहां कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो. फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
اِنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاٰيٰتِنَاسَوۡفَنُصۡلِيۡهِمۡنَارًاؕكُلَّمَانَضِجَتۡجُلُوۡدُهُمۡبَدَّلۡنٰهُمۡجُلُوۡدًاغَيۡرَهَالِيَذُوۡقُواالۡعَذَابَ ؕاِنَّاللّٰهَكَانَعَزِيۡزًاحَكِيۡمًاअर्थ हुआ, जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे. जब भी उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें. निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है.
इसी प्रकार से अन्य आयतों के अर्थ को देखें तो इस आतंकी हिंसा की मानसिकता स्पष्ट हो जाती है। चैप्टर 9, सूरा 28 में साफ लिखा है कि हे ईमान लाने वालों मुश्रिक (मूर्तिपूजक) नापाक है। अत: इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएं। चैप्टर 9, सूरा 123 में साफ कहा गया है कि हे ईमान लाने वालों (मुसलमानों) उन काफिरों से लड़ो जो तुमहारे आस पास हैं और चाहिए ये कि वे तुमसे सख्ती पाएं। चैप्टर 4, सूरा 56 कहता है कि जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मजा चखते ही रहे।
कुरान का चैप्टर 33, सूरा 61 में लिखा गया कि फिटकारे (मुनाफिक) हुए होंगे। जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे। गैर मुसलमान से की गई लूट को लेकर चैप्टर 8, सूरा 69 कहता है, अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। कुरान का चैप्टर 5, सूरा 51 कहता है कि "ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र हैं। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता। ऐसे ही अन्य आयते हैं।
स्वभाविक है कि ऐसे में इस्लाम जो उसे नहीं मानते उनके प्रति दुराग्रह रखने का आधार देता हुआ दिखाई देता है। इसमें भी एक तर्क इसके पक्ष में यह दिया जाता है कि जो इन सभी आयतों का सही अर्थ और भावार्थ तभी समझा जा सकता है जब उन्हें पिछली और अगली आयतों के साथ पढ़ा जाए। साथ ही ये भी देखना होगा कि ये आयतें किस काल और किस संदर्भ में अवतरित हुईं हैं। सारी बातें तभी साफ हो पाएंगी जब आयतों को उनके सही क्रम में पढ़ा जाए। बीच में से निकाल कर किसी भी अकेली आयत को पढ़ने से अर्थ का अनर्थ होने की आशंका बनी रहेगी।
वस्तुत: यहां बड़ा प्रश्न यह है कि यह तय कौन करेगा कि इन आयतों का अधुनिक संदर्भों में कोई अर्थ दूसरों के खिलाफ नहीं समझा जाए, क्योंकि दुनिया भर में जो तालिबान सहित आतंकी संगठन अपनी आतंकी करतूते करते दिखाई दे रहे हैं, उससे साफ तौर से तो यही दिखाई दे रहा है कि इस्लाम से उन्हें ऐसा करने की ताकत मिलती है और ऐसे में स्वभाविक है कि कुरान में इन आयतों के रहते कभी दुनिया में शांति कायम नहीं हो सकती है। अब इस्लामिक विद्वान विचार करें कि वे कौन सी दुनिया बनाना चाहते हैं?
- लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं ।