वेबडेस्क। आज पत्नी और बेटी के साथ "द कश्मीर फाईल्स" देख कर आया हूं। चार-पांच घंटे हो गए समझ में नहीं आ रहा था क्या लिखूं, कैसे लिखूं, कितना लिखूं। 1992 के अप्रैल में पहली बार जब कश्मीर एक सेनाधिकारी की हैसियत से आतंकवाद के विरुद्ध मिलिट्री ऑपरेशन करने के लिए भेजा गया था, आग तब ही लगी थी। 15 वर्ष तक धधकती रही और फिर उसे बुझाने के प्रयास में 425 पृष्ठ की पूरी पुस्तक लिख दी (कश्मीरमेंआतंकवाद:आंखोंदेखासच, HolySinnersSearchofKashmir)। लेकिन वह उस आग की अभिव्यक्ति का शतांश भी नहीं था, समुद्र की एक बूंद के बराबर भी नहीं।
आज जब "द कश्मीर फाइल्स" देखा तो भी वह आग बुझी नहीं बल्कि और धधकने लगी। लगा कितना कुछ दिखाना छूट गया। जिन्होंने कश्मीरी हिन्दुओं की त्रासदी अपनी आंखों से नहीं देखा उनके लिए "द कश्मीर फाईल्स" एक बहुत बड़ी घटना होगी मेरे लिए नहीं। विवेक रंजन अग्निहोत्री जी ने बहुत महान काम किया है मगर कम से कम मेरी आग नहीं बुछ पाई है। ऐसी कई फिल्में बने तो फिर संभवतः कश्मीर की त्रासदी को पूरी तरह दिखा पाएंगे। कश्मीरी हिन्दुओं का एक एक परिवार एक त्रासदी की कहानी है।
विवेक रंजन अग्निहोत्री का प्रयास एक भगीरथ प्रयास -
फिर भी विवेक रंजन अग्निहोत्री का प्रयास एक भगीरथ प्रयास है और मैं नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम करता हूं। खजुराहो लिट़्फेस्ट में मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था, लेकिन तब नहीं सोचा था वह एक "भगीरथ" का कार्य करेंगे। मैं भगीरथ बार-बार क्यों कह रहा हूं? क्योंकि जिस तरह से भगीरथ ने अपने कितने ही पुरखों की दहकती, तड़पती और चिर-पिपासु आत्माओं को धरती पर गंगा को लाकर तृप्त किया था उसी प्रकार विवेक ने बालीवुड के सब पूर्व पाप धो दिए। जिस प्रकार गंगा ने सिर्फ उनके पूर्वजों को नहीं बल्कि मानव मात्र की आत्मा को तृप्त किया उसी प्रकार बालीवुड के विवेक ने "लुटियन" की प्रेस्टीट्यूट, मानसिक मोतियाबिंद से ग्रस्त सेक्युलर कीड़ों, जेएनयू छाप देशद्रोहियों को तार दिया। बॉलीवुड ने भी कश्मीरी हिन्दुओं के साथ बहुत अन्याय किया था: कभी शिकारा बनाकर उसका मजाक उड़ाया गया, कभी कहा गया कि यह सब "ब्राह्मिनिकल" प्रोपेगेंडा है। दाऊद इब्राहिम की छत्रछाया में पल रहे बॉलीवुड के जिहादी कभी बजरंगी भाईजान तो कभी रंग दे बसंती कभी "पीके" के नाम पर चीनी की चाशनी में जिहाद का एजेंडा आगे बढ़ाते रहें।
बॉलीवुड के सभी पापों को धो दिया -
विवेक रंजन अग्निहोत्री ने बॉलीवुड के अभी तक के लगभग सभी पापों को धो दिया है। बॉलीवुड के प्रति जो मन में घृणा और द्वेष था वह काफी कम हुआ है लगा है कि बॉलीवुड सिर्फ दाऊद इब्राहिम और जिहादियों की रखैल नहीं है वहां पर कुछ वीर पुरुष और वीर नारियां भी हैं जो भले ही जौहर करना पड़े लेकिन दाऊद के समक्ष समर्पण नहीं करेंगे।
कश्यपमेरू" भूमि "शारद देश -
ज्ञानियों, तपस्वियों, विद्वानों, व्याकरणाचार्यों शास्त्रज्ञों की कभी तपस्थली रही "कश्यपमेरू" भूमि "शारद देश", माता सरस्वती का स्थाई निवास आज चित्कार मार रही है। भगवान सूर्य का मार्तंड मंदिर संसार के भव्यतम मंदिरों में से एक, सिर्फ खंडहर बचा हुआ है। मां सरस्वती का मंदिर, नीलम घाटी में, अपने उद्धार के लिए सिसकियां भर रहा है- "क्या भारत के वीर सपूतों हमारा भी उद्धार करोगे? मैं राक्षसों की बंदिनी हूं, तुम्हारी मां, ज्ञान की देवी सरस्वती; जिसके कारण संपूर्ण संसार में तुम्हारी पहचान है तुम्हारी बौद्धिकता मैंने ही तुम्हें दिया है।
हिंद महासागर में डूबने के लिए बचोगे -
ऐ भारतवासियों अगर तुमने 1000 साल के इतिहास से नहीं सीखा तो तुम इतिहास को दोहराते रहोगे। अफगानिस्तान से खदेड़ दिए गए, तुम पाकिस्तान से खदेड़ दिए गए, तुम बांग्लादेश से खदेड़ दिए गए, तुम कश्मीर से खदेड़ दिए गए, केरल और बंगाल से भी तुम्हारा पलायन जारी है। अगर होश में नहीं आए तो तुम सिर्फ हिंद महासागर में डूबने के लिए अवशेष बचोगे।
राजनीतिक लड़ाई नहीं -
मैं हमेशा कहता/लिखता रहा हूं कि कश्मीर की लड़ाई कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है। यह शुद्ध जिहाद है, यह काफिरों के विरुद्ध एक शपथ है, यह गज़वा-ए-हिंद के लिए है, यह दार-उल-इस्लाम की स्थापना के लिए है। यह खुरासान (तुर्की) से लेकर अराकान (म्यांमार) तक दार-उल-इस्लाम का झंडा बुलंद करने का एक सतत सशस्त्र संघर्ष है। यह लड़ाई 1985-90 से प्रारंभ नहीं हुई है, कश्मीर बस पूरे युद्ध-श्रृंखला की एक कड़ी है। यह 11वीं शताब्दी से प्रारंभ हुई है और अभी तक जारी है। और यह तब तक जारी रहेगी जब तक इस युद्ध के संरक्षकों और उनकी पापी विचारधारा को तुम नेस्तनाबूद नहीं कर दोगे।
वंदे मातरम्-
तीन घंटे रोने के ठीक पहले की बलात होंठों पर लाई गई मुस्कुराहट: बेटी का दिल जो रखना था। उसके बाद से बेटी अवसाद और सदमे में ही है। बहुत कुछ वह मुझसे पहले ही सुन चुकी थी फिर भी....