आईटी दिग्गज पद्मश्री श्रीधर बैंबू की सफलता के पीछे स्वदेशी की बुनियाद, गांव में बनाया कंपनी का हेड ऑफिस
अपनी माटी अपने देश की पुकार पर अमेरिका छोड़ कैसे लिखी श्रीधर ने सफलता की कहानी
वेब डेस्क। तमिलनाडु के छोटे से गांव में अति साधारण परिवार में जन्मा एक इंजीनियर अपनी प्रतिभा के बल पर दुनियां के सबसे चमकदार आईटी हब यानी सिलिकॉन वैली में अपनी सफलता का झंडे गाड़ता है ,लेकिन इस सम्पन्नता औऱ सुविधा भरी जिंदगी के मध्य उस युवा इंजीनियर के मन मस्तिष्क में अपना देश अपना गांव स्पंदित होता रहता था।मानो कोई अंतर्चेतना उन्हें कचोट रही हो और एक नए मनोरथ के लिए वापिस अपनी माटी में बुला रही हो।ईश्वरीय प्रेरणा मानकर यह इंजीनियर भारत लौटता है और यहाँ आकर सूचना प्रौधोगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी मिसाल खड़ी कर देता है जिसकी सफलता देखकर आज पूरी दुनियां के दिग्गज आईटी कारोबारी भी चकित है।यह कहानी है पदम श्रीधर बैंबू की। यह कहानी भारत मे स्वदेशी की अपरिमित क्षमताओं की प्रामाणिकता की भी है। श्रीधर आज स्वदेशी जागरण मंच की 15 वी राष्ट्रीय सभा में शामिल होने के लिए ग्वालियर आये हुए है।प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के समर्थक श्रीधर ने आईटी क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम बहुत पहले से शुरू कर रखी है।
आइए जानते हैं श्रीधर वेंबू की कहानी और इसकी वजह कि उन्होंने क्यों अमेरिका छोड़कर भारत के एक गांव में बसकर स्वदेशी भावना के साथ भारत के गांवों,यहां के युवाओं की किस्मत बदलने का फैसला किया?
ऐसे हुई सफर की शुरुआत
श्रीधर वेंबू का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक गांव में किसान परिवार में हुआ। श्रीधर पढ़ाई में बचपन से ही काफी तेज थे और यही वजह रही कि 1989 में उनका दाखिला आईआईटी मद्रास में हो गया।आईआईटी से बीटेक की डिग्री लेने के बाद वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए।यहां श्रीधर ने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद एक कंपनी में बतौर वायरलैस सिस्टम इंजीनियर नौकरी की शुरुआत की।
सरकारी समाजवाद बड़ी समस्या :
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में गहरी दिलचस्पी होने के कारण श्रीधर ने कई किताबें पढ़ी। जापान, सिंगापुर और ताईवान जैसे बाजारों की सफलता के बारे में अध्ययन किया और समझा कि वे कैसे इतनी अच्छी तरह से विकसित हुए। उन्होंने महसूस किया कि भारत में सरकार प्रयोजित समाजवाद हमारी प्रमुख समस्या है और इस स्थिति को बदलना चाहिए। श्रीधर का स्पष्ट मत है कि डिग्री नही जन्मजात प्रतिभा ही सफलता की आधारशिला है और भारत अपने नागरिकों की इसी प्रतिभा के बल पर दुनिया भर में तकनीकी और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सिरमौर बनेगा।आवश्यकता देश के स्वत्व को समझने और उसे अधिमान्यता देनें की है।
क्या है जोहो कॉर्प:
नौकरी शुरू करने के दो साल बाद ही श्रीधर ने अपने भाईयों और तीन दोस्तों के साथ मिलकर एडवेंट नेट के नाम से खुद की कंपनी शुरू कर दी।श्रीधर वेंबू ने साल 1996 में अपनी कम्पनी की शुरुआत की और साल 2009 में इसका नाम बदलकर जोहो कोरपोरेशन कर दिया।यह कंपनी ऑनलाइन एप्लीकेशन मुहैया कराती है।जिसके आज करोड़ों की संख्या में यूजर्स हैं। कंपनी में के करीब दस हजार कर्मचारी दुनियाभर के विभिन्न कार्यालयों में काम करते हैं।श्रीधर वेंबू अपनी कंपनी की क्षमताओं को पूर्ण स्वदेशी बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कंपनी के हेडक्वार्टर को भारत में शिफ्ट करने की योजना बनाई।इस विचार को बाकायदा कंपनी की बोर्ड मीटिंग में रखा गया।जहां से स्वीकृति मिलने के बाद वेंबू ने सबसे पहले चेन्नई से 650 किलोमीटर दूर तिनकाशी ( दक्षिण काशी)जिले के मथलमपराई गांव में 4 एकड़ जमीन खरीदी।इसके बाद जोहो कोर्प का यहां हेडक्वार्टर बनाया गया और आज कंपनी के कई कर्मचारी यहां काम करते हैं।इतना ही नहीं कंपनी को गांव में शिफ्ट करने के साथ ही वेंबू खुद भी इस गांव में बस गए हैं। 53 वर्षीय वेंबू भी गांव से ही काम करते हैं।
देश के हर गांव में खुले सेंटर
श्रीधर वेंबू की इच्छा है कि वह अपनी कंपनी का प्रसार देश के अन्य गांवों में भी करें।इसके लिए वेंबू गांवों में सैटेलाइट कनेक्टेड ऑफिस सेंटर खोलना चाहते हैं, जहां 10-20 लोग काम कर सकें।
बेहद साधारण जीवन के अभ्यस्त :
श्री वेंबू आज भले ही अरबपति हैं लेकिन वह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं और उनके साधारण जीवन और दिनचर्या को देखकर एक बारगी कोई भी धोखा खा जाए कि वह इतने अमीर व्यक्ति हैं। श्रीधर वेंबू का दिन सुबह 4 बजे शुरू हो जाता है और सुबह उठकर वह सबसे पहले गांव में घूमने निकल जाते हैं।इसके बाद नाश्ता कर ऑफिस का काम करते हैं। वेंबू को कई बार गांव के तालाब में तैरते हुए और कभी-कभी खेती करते हुए भी दिख जाते हैं।वेंबू अक्सर साइकिल पर गांव में घूमते भी दिख जाते हैं।
ग्रामीण जीवन से बेहद खुश हैं वेंबू:
श्रीधर वेंबू कहते कि मैं गांव में अपनी जड़ों से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करता हूं और इस तरह के जीवन का काफी आनंद लेता हूं।यहां किसी तरह की कोई तुलना नहीं है।आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है कि आपके पड़ोसी के पास फरारी है या आपका पड़ोसी छुट्टियों पर जा रहा है।ये चीजें यहां कम हो जाती हैं और आप ज्यादा सादगी भरा जीवन जीते हैं। मैं हमेशा से ही कम उपभोग करने वाला व्यक्ति रहा हूं। जब भी नया फोन मार्केट में लॉन्च होता है तो मैं कभी उसे खरीदने के लिए जल्दबाजी नहीं करता हूं। जब वह फोन सभी लोगों के पास आ जाता है तब जरूर में उसे खरीद सकता हूं।
गांवों की विपुल भारतीय प्रतिभा को निखारने का सपना:
जोहो कोरपोरेशन में वेंबू के 88 फीसदी शेयर हैं, जिनकी कीमत करीब 1.83 बिलियन डॉलर है।साल 2019 में जोहो कोर्प ने करीब 516 करोड़ का मुनाफा कमाया था। अपने इस पैसे से श्रीधर वेंबू ने गांव में ही एक इंस्टीट्यूट खोला है, जिसमें प्रतिभावान युवाओं में कौशल विकास पर काम किया जा रहा है, उन्हें कंपनी की तरफ से नौकरी भी दी जा रही हैं।श्री वेंबू चाहते हैं कि हमारा देश भी तकनीक के मामले में दुनिया में अग्रणी बने और यही वजह है कि वह प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत योजना के भी समर्थक हैं। श्रीधर वेंबू के योगदान को भारत सरकार ने भी मान्यता देते हुए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है।