उज्जैन/श्याम चोरसिया। मौजूद पीढ़ी ने करीब 15 दिन की सावनी झड़ पहली बार देखी। 50 से ऊपर उम्र वालो ने तीसरी बार देखी। बादलों ने सूरज को निकलने तो दूर झांकने तक नही दिया।नतीजन रोज मर्रा के कपड़े तीन तीन दिन तक मे नही सूखे। 24 जुलाई तक गर्मी,उमस ने त्रस्त कर रखा था।धरती सुखी पड़ी थी। 07-08 जुलाई को हुई मामूली बारिस से उत्साहित किसानों ने बोबनी कर डाली। मौसम विभाग भी किसानों को उकसा रहा था। बारिस की लंबी खेच से बेदम, बेसुध होती ख़रीब फसलों ने किसानों के मंसूबो पर पानी फेर दिया। 08 हजार रुपये क्विंटल का सोयाबीन बीज किसानों को मिट्टी में मिलता दिखने लगा था। मगर अस्त होते आषाढ़ और उदय होते सावन ने पांसा पलट किसानों की उम्मीदों को पंख लगा डाले।
अब हालात ये है कि धरती में पानी सोखने की ताकत नही बची।धरती को इंद्र ने तृप्त कर दिया। तृप्त हो चुकी धरती ने नदी नालों को उफान पर ला दिया। बुंदेलखंड को छोड़ दिया जाए तो मालवा,चम्बल, निमाड़,महाकौशल, बन्देलखण्ड में नदियों ने तटबंध तोड़ डाले। नर्बदा,तवा, बेतवा, हलाली,चम्बल, पार्वती,क्वारी,सिंध, घोड़ापचाद, नेवज, कालीसिंध, शिप्रा, गाड़ गंगा आदि प्रमुख,सहायक नदियों ने तटबंध तोड़ सेकड़ो गांवो, श्योपुर, शिवपुरी, दतिया, भिंड, मुरैना, गुना, जैसे नगरों को बाढ़ की चपेट में ले लिया। भवन डूब गए। दर्जनो पुल पुलिया बह गए। तालाब सैलाब के शिकार हो बह गए।
श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, मुरैना में हजारो लोग बाढ़ से घिर गए। पुलिस, होमगार्ड, सेना विपत्ति में फंसे लोगों को बचाने में जुटी हुई है। काबीना मंत्री नरोत्तम मिश्रा बाढ़ ग्रस्तो को बचाने में खुद फस गए। उनका रेस्क्यू सेना ने हेलीकाप्टर से किया।
बाढ़ की बलि चढ़े पल, पुलिया, तालाब इंजीनियरों, ठेकेदारों की भृष्ट करतूतों की गवाही दे रहे हैं। शिवपुरी, दतिया के पुल, पुलिया झटका भी बर्दाश्त नही कर पाए। यदि निर्माण गुणवत्ता के स्तर पर तय शुदा मानकों के आधार पर करवाया जाता तो करीब 85 करोड़ के पुल, पुलिया बहने से बच जाते। इनके बहने से लाखों नागरिकों को पता नही कब तक मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा।
15 दिन की झड़ से मजबूत से मजबूत भवनों, कोठियों की छत टपकने लगी। दीवारो से पानी रिसने लगा। चुने, सीमेंट के भवन तो बारिश के इस ताप को बर्दाश्त किसी हद तक कर गए। मगर कच्चे घरो को इंद्र ने लील लिया।हजारो मकान गिरने से लाखों लोगों के सामने रात गुजारने के संकट गहरा गया। पेट तो सरकार के अन्न उत्सव से भरा ही जायेगा। मगर बेघर तो बेघर ही होता है। उसके पारिवारिक तनाव की थाह नापना कठिन है।
हालांकि सरकार बारिश से तबाह अचल सम्पती का सर्वे कराने के बाद वांछित मुआवजा देती है। इंद्र के तेवर, मिजाज से लगता है। वे अभी रहम करने के मूड में नही है। यदि इंद्र ने सूर्य को ओर अधिक समय तक नही निकलने दिया तो ख़रीब फ़ेसले गलन का शिकार हो सकती है। वैसे भी धरती गजब की तृप्त हो चुकी है।