अयोध्या में आज से शुरू हुआ प्राण प्रतिष्ठा समारोह का अनुष्ठान, पहले दिन प्रायश्चित और कर्म कुटी पूजन

आचार्य सरोजकांत मिश्र बताते हैं कि यह पूजा, जाने अनजाने में जीवन के किसी भी क्षण में होने वाली प्रत्येक गलतियों अथवा पाप का प्रायश्चित है।

Update: 2024-01-16 12:07 GMT

अयोध्या। अयोध्या में आज मंगलवार से श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए अनुष्ठान कि शुरुआत हो गई। यह वैदिक परंपराओं के अनुसार शुरु की गयी है। कार्यक्रम के मुख्य यजमान डॉ. अनिल मिश्रा और प्रतिमा बनाने वाले अरुण योगीराज भी वहां मौजूद हैं। आज प्रायश्चित पूजन और कर्म कुटी (यज्ञशाला) पूजन से शुरू हुई।



आचार्य सरोजकांत मिश्र बताते हैं कि यह पूजा, जाने अनजाने में जीवन के किसी भी क्षण में होने वाली प्रत्येक गलतियों अथवा पाप का प्रायश्चित है। यह मनसा-वाचा-कर्मणा होना चाहिए। निर्धारित विधि का अनुसरण कर मंत्र शक्ति से इसे पूर्ण किया जाता है। एक तरह से यह प्रक्रिया शरीर, मन और वचन का शुद्धिकरण है। वैदिक साहित्य में प्रायश्चित का बहुत महत्व है। सामान्य अर्थ में यह किसी गलती की स्वीकारोक्ति के साथ पछतावा है। यही कार्य, प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व यजमान करता है। वैदिक परंपरा के मुताबिक वह शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य तरीकों से पछतावा अर्थात प्रायश्चित करता है। वाह्य प्रायश्चित के लिए 10 विधि स्नान की व्यवस्था है। पंच द्रव्य, औषधीय व भस्म सामग्रियां शामिल कर इसे पूर्ण किया जाता हैं। गोदान, स्वर्ण और अर्थ (धन) दान भी प्रायश्चित पूजन की श्रेणी में आते हैं।

कर्मकुटी (यज्ञशाला) पूजा की क्या जरूरत? 

मूर्ति स्थापना से पूर्व यज्ञशाला पूजन के सवाल का जवाब देते हुए आचार्य सरोजकांत मिश्र कहते हैं कि कर्मकुटी का मतलब, यज्ञशाला पूजन से है। यज्ञशाला शुरू होने से पहले हवन कुंड अथवा वेदिका पूजन की वैदिक व्यवस्था है।

कार्यक्रमों पर एक नजर- 

  • - 17 जनवरी को श्रीविग्रह का परिसर भ्रमण। गर्भगृह का शुद्धिकरण।
  • -18 जनवरी से अधिवास प्रारंभ। दोनों समय जलाधिवास, सुगंध और गंधाधिवास भी।
  • -19 जनवरी की प्रातः फल अधिवास और धान्य अधिवास होगा।
  • -20 जनवरी को पुष्प और रत्न अधिवास (सुबह) व घृत अधिवास (शाम)
  • - 21 जनवरी को शर्करा, मिष्ठान और मधु अधिवास (सुबह) व औषधि और शैय्या अधिवास (शाम)
  • - 22 जनवरी को दोपहर में रामलला के विग्रह की आंखों से हटेगी पट्टी, रामलाला को दिखाया जाएगा दर्पण।

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