Chirag Project Salary Dispute: बस्तर में दिल्ली की NGO का खेला, समन्वयकों को नहीं दिया 7 महीने का वेतन

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग को नक्सलवाद से मुक्त कराने और विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकारें चौतरफा प्रयास कर रही हैं। वहीं, दूसरी तरफ इस विकास में सहयोग कर रहे लोगों के शोषण की खबरें भी आ रही हैं। ऐसा ही एक मामला चिराग परियोजना में पोषण, सामाजिक व्यवहार और संचार परिवर्तन के प्रोजेक्ट में काम कर रही महिला समन्वयकों का सामने आया है। एनजीओ के माध्यम से इस प्रोजेक्ट में काम कर रही दर्जनों महिलाओं को बीते सात महीने से वेतन के लिए भटक रही हैं।
श्रमायुक्त से एनजीओ की शिकायत
वेतन के लिए भटक रही महिला समन्वयक छत्तीसगढ़ समावेशी ग्रामीण एवं त्वरित कृषि विकास (चिराग) में काम करती हैं। श्रमायुक्त से की गई शिकायत में महिला समन्वयकों ने बताया है कि बस्तर संभाग में इस प्रोजेक्ट का काम पीसीआई को मिला था, लेकिन वेतन थर्ड पार्टी अप हील एडवाइजरी (दिल्ली) के जरिये दिया जाता था। अगस्त 2024 से फरवरी 2025 एनजीओ ने इन समन्वयकों का वेतन नहीं दिया है। उससे पहले का यात्रा भत्ता भी नहीं दिया गया है।
महिला समन्वयकों का आरोप है कि पीसीआई का नियत शुरू से ही ठीक नहीं थी। पीसीआई को छल नहीं करना होता तो समन्वयकों को वेतन का भुगतान पीसीआई के जरिये किया जाता। उन्होंने बताया कि एनजीओ के लोग अब मिल नहीं रहे हैं। कॉल और वाट्सऐप मैसेज के जरिये संपर्क करने पर केवल आश्वासन दिया जा रहा है।
जिलों से जारी हुआ नोटिस
समन्वयकों की शिकायत के बाद नारायणपुर और सुकमा समेत अन्य जिलों के श्रम पदाधिकारी कार्यालय से अप हील एडवाइजरी को नोटिस जारी किया गया है। श्रम पदाधिकारियों ने अप हील एडवाइजरी के पदाधिकारियों को उनका पक्ष रखने के लिए तलब किया है। साथ ही नहीं आने पर एकतरफा कार्यवाही करने की चेतावनी भी दी है।
अनदेखी के कारण बंद हो गई परियोजना
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष और विश्व बैंक से आर्थिक सहायता वाली 17 हजार करोड़ की चिराग परियोजना राज्य के अफसरों की अनदेखी के कारण बंद हो गई है। वल्र्ड बैंक ने दिसंबर 2024 में ही इस परियोजना को बंद किए जाने के संबंध में राज्य सरकार को सूचना भेज दी थी।
गड़बडिय़ों की वजह से चर्चा में रही परियोजना
राज्य के आदिवासी बाहुल क्षेत्रों में परिवारों की आय बढ़ाने के अवसर के साथ पौष्टिक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में सुधार के लिए इस परियोजना को 2020 में लागू किया गया था। इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी कृषि विभाग को सौंपी गई थी। पहला विवाद प्रोजेक्ट के लिए की गई नियुक्तियों को लेकर हुआ। प्रोजेक्ट में बड़े- बड़े पदों के लिए आईएएस अफसरों की पत्नियों के चयन को लेकर विवाद हुआ। इसके दो अफसरों के भ्रष्टाचार को लेकर तत्कालीन सरकार में शिकायत हुई, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।