संस्कृति बचाने परंपराओं से जुड़े हैं, आदिवासी हैं हम

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Update: 2020-02-08 10:37 GMT

भोपाल, विशेष संवाददाता। आज के समय में समाज जहां अपनी मूल परंपराओं को भूलकर पाश्चात्य से प्रभावित है, अपनी संस्कृति और संस्कारों से टूट रहा है, प्रकृति से जुड़ी हमारी अपनी आदिवासी संस्कृति जिसे हम अपनी परंपराओं, रहन-सहन, वेशभूषा और विशेष वाद्य यंत्रों की ध्वनि के बीच हमारे विशेष नृत्यों, त्यौहारों के माध्यम से जीवित रखे हैं। आधुनिक युग में जहां आदिवासी समाज के बीच भी जागृति और बदलाव आ रहा है, लेकिन अपनी परंपराओं को जीवंत बनाए रखने के लिए हमारा समाज आज भी संकल्पित और एकजुट है।

अपनी स्थानीय आदिवासी भाषा और शैली में इस तरह की अभिव्यक्ति है तीन राज्यों उड़ीसा, झारखंण्ड और आंध्रप्रदेश के 7 जिलों से मप्र की राजधानी भोपाल पहुंचे आदिवासी युवाओं की। मप्र की राजधानी भोपाल में स्थित जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) परिसर में नेहरू युवा केन्द्र भारत सरकार के सहयोग से 3 राज्यों के 7 जिलों से 200 आदिवासी युवा '12वें राष्ट्रीय आदिवासी युवा आदान-प्रदान' कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे हैं। विशेष अदिवासी वेश-भूषा, जंगली जानवरों की खाल, सींगों, खुरों, जंगली पेड़ सौधों की टहनियों, जड़ों और फलों से बने गहने, आभूषण और वाद्य यंत्रों के प्रदर्शन के साथ पारंपरिक आदिवासी नृत्यों की प्रस्तृति देखते ही बनती है। उड़ीसा राज्य के जिला कंधमाल, ब्लॉक खदुरीपुरा के ग्राम ढोलमांदर से इस कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे आदिवासी युवक रश्मिरंजन देहुरी ने बताया कि गांव में स्कूल पहुंचे हैं, विकास भी हो रहा है। आदिवासी युवाओं ने पढ़-लिखना भी शुरू कर दिया है। लेकिन पूरे देश में आदिवासी एक ऐसा समाज है जो आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा है। राष्ट्र पर जब भी संकट आया, आदिवासी समाज स्वनिर्मित संसाधनों और हथियारों के साथ मैदान में डटा रहा और आज भी हमारा समाज देश पर समर्पित होने के लिए तैयार है। आदिवासी समाज ने प्रकृति को हमेशा अपनी माँ की तरह माना है। जंगलों के विनाश और विस्तारित होते शहरीकरण से जहां प्रकृति विनाश की ओर जा रही है। वहीं आदिवासी समाज आज भी इसके लिए लड़ रहा है। हमारी प्रत्येक परंपरा में प्रकृति समाई है। हम अपनी परंपराओं को अनंतकाल तक जीवंत रखना चाहते हैं, इसीलिए समाज भलें शिक्षित हो रहा है, लेकिन फिर भी अपनी परंपराओं से जुड़ा है।

जंगलों से नक्सलवाद का सफाया जरूरी

तीनों ही राज्यों से आए आदिवासी युवा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निवास करते हैं, लेकिन यह नक्सलवाद का समर्थन नहीं करते। उड़ीसा के आदिवासी युवा राश्मिरंजन देहुरी ने बताया कि नक्सली आदिवासियों को उपयोग करते हैं। उन्हें भयभीत करते हैं और जबरदस्ती आदिवासियों को नक्सली बताने का प्रयास करते हैं। वास्तविकता यही है कि आदिवासी समाज मन से नक्सलवाद को कभी स्वीकार नहीं करता। कभी भय से तो कभी लालच से तो कभी भ्रम फैलाकर आदिवासियों को नक्सली अपने साथ मिलाते हैं। आदिवासी समाज के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभ को लेकर किए गए सवाल पर देहुरी का कहना है कि उनकी योजनाएं तो अधिकारी और नेता निगल जाते हैं। योजनाओं का लाभ उन्हें मिलता तो आदिवासी समाज आज इस स्थिति में नहीं होता।

मंत्री पटेल ने वाल्मी में किया इकोलॉजिकल ऑक्सीजन पार्क का लोकार्पण

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल ने जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) में 30 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाए गए इकोलॉजी ऑक्सीजन पार्क का लोकार्पण किया। इस अवसर पर श्री पटेल ने कहा कि यह पार्क भोपाल शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक होगा। वाल्मी संचालक श्रीमती उर्मिला शुक्ला ने बताया कि वाल्मी द्वारा तैयार किए गए इस पार्क में जल संरक्षण संवर्धन गतिविधियों के प्रदर्शन के साथ पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के प्रयासों को प्रदर्शित किया गया है। इस पार्क के माध्यम से वाल्मी पहाड़ी पर उपलब्ध प्राकृतिक और वनस्पतिक जैवविविधता के अस्तित्व को बनाए रखने का प्रयास किया गया है। श्रीमती शुक्ला ने बताया कि इकोलॉजिकल पार्क में सभी प्रकार के वाहनों का प्रवेश वर्जित रहेगा। यह पार्क छात्र-छात्राओं को प्राकृतिक संतुलन की महत्ता के प्रति जागरूक रहने तथा जल संवर्धन तकनीकी की बारीकियों को जानने में सहायक बनेगा। 

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