स्टार्टअप इंडिया : नौकरी नहीं खुद की कंपनी खड़ी कर चढ़ी सफलता की सीढ़ियां
- राष्ट्रीय स्टार्टअप डे पर विशेष
नवीन सविता/वेबडेस्क। ग्वालियर टू ग्लोबल इस सपने को साकार करने में लगे है ग्वालियर के 35 उच्च शिक्षित युवा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टार्टअप इंडिया से अनुप्राणित इन युवाओं ने सॉर्टेड स्क्वायर नामक एक क पनी बनाई और अब ग्वालियर अंचल के करीब 150 छोटे उधमियों के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रहे है जो आने वाले समय में प्रतिस्पर्धी बाजार में मजबूती के साथ खड़े नजर आयेंगे। ग्वालियर के ही तीन युवा इंजीनियरों ने फिज रोबोटिक्स सॉल्यूशन नामक एक स्टार्टअप खड़ा किया और आज दुनियां के पांच अन्य देशों में इनकी सेवाएं ली जा रही है।
ग्वालियर के ही प्रदीप सागर ने एमबीए करने के बाद किसी क पनी में नौकरी करने की जगह प्रधानमंत्री के स्टार्टअप मिशन में भरोसा जताया और खुद का एसबी स्ट्रीट फूड आरभ किया,आज शहर में चार जगह प्रदीप के आउटलेट्स काम कर रहे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जनवरी को नेशनल स्टार्टअप डे घोषित किया है। पढि़ए ग्वालियर में इस मिशन से जुड़ी सफलता की तीन कहानियां...
फिज रोबोटिक्स: मोतीमहल में पांच देशों की कमांड
ग्वालियर के आईटीएम कॉलेज से इंजीनियरिंग करने वाले वैभव दीक्षित, शीर्ष पांडे एवं एमआईटीएस की छात्रा चित्रांशी खण्डालकर एक साथ आये और मोदी के स्टार्टअप के साथ जुड़ गए। तीनों ने नौकरी करने की जगह नौकरी देनें के आह्वान को आत्मसात कर क पनी बनाई। उनकी फिज रोबोटिक्स ने स्कूली बच्चों के लिए एक ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जो कक्षा तीन से लेकर बारहवीं तक के लिए उपयोगी है। आमतौर पर हमारी शिक्षा व्यवस्था में बच्चे इंटरमीडिएट तक आते-आते भी यह तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें आगे क्या करना है। वैभव के अनुसार हमने इसी कमी को देखकर ऐसा मॉडल बनाया जो हर बच्चे की अभिरुचि और योग्यता के अनुसार सुग य हो। इसके लिए फिज ने स्कूलों से टाईअप किया और अपने लैब्स बनाये। स्कूल की पढ़ाई के साथ फिज के पाठ्यक्रम चलते हैं और जब बच्चा 12 वीं पास करता है तो उसके पास 300 प्रोजेक्ट्स एवं लगभग 700 घण्टे की तकनीकी दक्षता होती है। फिज का यह मॉडल कोरियाई शिक्षा की प्रतिकृति है जो स्टीम यानी सांइस, टेक्नोलॉजी, आर्ट्स एवं मैथमेटिक्स में बुनियादी रूप से पारंगत बनाने पर आधारित है।
फिज के प्लेटफार्म पर आज न केवल भारत बल्कि नेपाल, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और फिलीपींस के भी करीब 12 हजार विद्यार्थियों का पंजीयन है। नेपाल की पहली रोबोटिक लैब भी ग्वालियर के इन्हीं तीन होनहार युवाओं ने खड़ी की है। बकौल चित्रांसी खण्डालकर फिज के जरिए हम उन बच्चों को तकनीकी रूप से निर्णय लेने में सशक्त बनाना चाहते हैं जो भारत की शालेय शिक्षा में डिग्री होने पर भी हुनर को चिन्हित नही कर पाते है। चित्रांशी को प्रधानमंत्री की यह बात बहुत ही गहरे से प्रभावित करती है कि हमारे युवा जॉब सीकर नही जॉब क्रियेटर बनना चाहिए। तीनों युवा इंजीनियर आज समवेत रूप से इस बात को स्वीकार करते हंै कि अगर स्टार्टअप इंडिया मिशन न होता तो वे किसी क पनी में काम कर रहे होते लेकिन आज वे खुद एक उद्यमी भाव के साथ जी रहे हैं। फिज भारत सरकार के पोर्टल पर भी पंजीबद्ध है जिसके चलते उनकी क पनी देश से बाहर काम करने में सफल हुई है।
सार्टेड स्क्वायर: ग्वालियर टू ग्लोबल की उड़ान
ग्वालियर के पंचवटी वस्त्र नगर में सॉर्टेड स्कावायर का कार्यालय स्टार्टअप की एक चमकदार सफलता का केंद्र भी है। आकाश अरोरा बीई मैकेनिकल है उनके साथी मुकुल गुप्ता डेटा एनालिटिक्स हैं, सम्यक जैन, सुशांत सांघी, रोहित मल्होत्रा इंजीनियरिंग और प्रबंधन की शिक्षा के बाद किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम के लिए नहीं भटके बल्कि प्रधानमंत्री के स्टार्टअप इंडिया को जमीन पर उतारने में जुट गए। दो साल की कड़ी मेहनत के बाद आज उनकी सॉर्टेड स्क्वायर में 35 से अधिक कुशल युवा जुड़े हैं जिन्होंने ग्वालियर टू ग्लोबल का सपना देखा है और उसे साकार करने के लिए पूरा तंत्र खड़ा कर लिया है। यह स्टार्टअप क पनी ग्वालियर के 15 नए स्टार्टअप को प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रतिस्पर्धी बनाकर वैश्विक पटल पर स्थापित करने के लिए काम कर रही है। बकौल आकाश हम उत्पाद एवं सेवा दोनों क्षेत्रों में ग्वालियर के हुनर और क्षमताओं को स्थापित कर देंगे। इसके लिए आरंभिक रूप से 50 लाख का फंड बनाया गया है जो नए स्टार्टअप के लिए उनके मॉडल पर निवेश, अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं प्रमोशन पर काम करेगा। सॉर्टेड के अनुसार 270 करोड़ रुपए के झाडू हम चीन से आयात करते हैं जबकि ग्वालियर, मुरैना एवं भिंड में हम ऐसे स्टार्टअप का उन्मुखीकरण एवं क्षणता निर्माण पर काम कर रहे हंै जो अकेले ही भारत के इस झाडू उद्योग का हब बन सकते हैं। आकाश के अनुसार करीब 200 स्टार्टअप स्थानीय स्तर के उत्पादों से जुड़े हैं जो खिलौना उद्योग, चारकोल एवं अनुपयोगी कागज से पैन, पैंसिल जैसी वस्तुओं का निर्माण कर सकते हैं। अंचल की गजक एवं चंदेरी की साडिय़ों सहित अन्य उत्पादों के लिए हम अगले कुछ समय में एक नई पहचान दिलाने वाले हैं। आकाश की खासियत यह भी है कि इस स्टार्टअप को शुरू करने से पूर्व वह एयरटेल के पंजाब और चंड़ीगढ़ रिलेशनशिप हैड थे।
चलित दुकान से चार आउटलेट्स की सागर कथा-
28 साल के प्रदीप सागर ने ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद खुद उद्यमी बनने का संकल्प मन में लिया और आज एक सफल स्टार्टअप क पनी के मालिक हैं। एसबी स्ट्रीट फूड के आज शहर में चार आउटलेट है और करीब पचास लोगों को वह रोजगार दे रहे हैं। प्रदीप भी प्रधानमंत्री मोदी के स्टार्टअप इंडिया के स्थानीय ध्वजवाहक हैं। उन्होंने पढ़ाई के बाद जब यह विचार अपने मित्रों एवं घरवालों को साझा किया तो किसी को भी उनके बुलंद इरादों का अहसास नही था। आज एसबी फूड्स महानगर में अपनी पहचान बना रहा है। मोतीमहल, गोविंदपुरी, नई कलेक्ट्रेट एवं सिटी सेंटर में प्रदीप सागर के आउटलेट्स पर ग्राहकों की कमी नही रहती है अपनी बेहतर गुणवत्ता और प्रबंधकीय कौशल के बल पर एसबी फूड का कारोबार आज चमक रहा है लेकिन इस चमकदार कहानी के पीछे संघर्ष भी है और जज्बा भी।
प्रदीप सागर को तंगहाली की जिंदगी जीने का अहसास है। इसी अहसास ने उन्हें दूसरों की मदद करने का जज्बाभी दिया है। उन्होंने अपने महीने भर की कमाई में से एक दिन की कमाई उन बच्चों पर खर्च करने का संकल्प लिया है, जो आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई से वंचित हैं।तानसेन नगर में रहने वाले प्रदीप सागर ने जीवाजी विश्वविद्यालय से एमबीए किया है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से 55 हजार रुपए साल की फीस जमा करना उसके लिए काफी मुश्किल था। लिहाजा पढ़ाई का खर्च स्वयं उठाने के लिए आठ साल पहले चलित फूड कॉर्नर की शुरुआत की। इंदरगंज चौराहे पर शाम को छह बजे से रात्रि दस बजे तक फास्टफूड का व्यवसाय कर होने वाली कमाई से पढ़ाई के साथ-साथ घर का खर्च भी चलाया। बस यहीं से एसबी फूड की नींव रखी गई और आज सागर एक उद्यमी के रूप में स्थापित हो गए है। उनका अगला लक्ष्य अपने आउटलेट्स की संख्या एक दर्जन करने की है।