दादाजी अनुसूचित जनजाति के थे, पिताजी पिछड़़ा वर्ग में आए और अब संतान सामान्य वर्ग में शामिल है
दादाजी अनुसूचित जनजाति के थे, पिताजी पिछड़़ा वर्ग में आए और अब संतान सामान्य वर्ग में शामिल है
गुना। उनके दादाजी अनुसूचित जनजाति में शामिल रहे, बाद में उनके पिताजी अन्य पिछड़ा वर्ग में पहुँचा दिए गए और अब उनकी संतान के रुप में खुद वह सामान्य वर्ग में शामिल है। यह अविश्वसनीय मगर गंभीर कहानी है, जिले के खैरुआ आदिवासियों की। उनकी यह कहानी पिछले 20 साल में प्रशासनिक लापरवाही और मनमानी के चलते लिखी गई है। खैरुआ आदिवासियों की यह संख्या कम भी नहीं है, बल्कि जिले के कई गांवों में यह तकरीबन 25 हजार की संख्या में मौजूद है। पिछले कई सालों से उनकी लड़ाई भारतीय मजदूर संघ के धर्मस्वरूप भार्गव लड़ रहे है और इसे वह शासन स्तर तक पहुंचाने में कामयाब भी हो चुके है। दो साल पहले मामला प्रशासनिक कार्रवाई में भी आ गया था, किन्तु बाद में अटक कर रह गया। इस बीच जिले की बमौरी विधानसभा में उपचुनाव के चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बमौरी पहुँचे तो उनके समक्ष आदिवासी खैरुआ संघर्ष समिति के तत्वावधान में फिर उक्त मामला उठाया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने सभा के मंच से ही खैरुआ आदिवासियों को भरोसा दिया कि वह उनका मामला दिल्ली तक लेकर जाएंगे और सभी को अनुसूचित जनजाति का लाभ दिलाएंगे।
2002 में पहुँचे अन्य पिछड़ा वर्ग में
गौरतलब है कि वर्ष 1950 से आदिवासी समाज में शामिल मोगिया जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था। बताया जाता है कि जिले के विभिन्न विधानसभाओं के ग्राम कर्रा खेड़ा, मसुरिया, भाऊपुरा, बेरखेड़ी, भैरोंघाटी, चक हनुमंतपुरा, टकनेरा, रूठियाई, भदौरी जैसे सैकड़ों गांवों में इस जाति के लोग निवास करते हैं। सालों साल तक यह इसी जाति में रहे और उन्हे शासन की योजनाओं का लाभ भी मिलता रहा। वर्ष 2002 में अचानक उन्हे अन्य पिछड़ा वर्ग वर्ग में पहुँचा दिया गया। ऐसा कैसे हुआ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अन्य पिछडा़ वर्ग में भी यह 16 साल तक शामिल रहे। इस बीच एक पीढ़ी अनुसूचित जाति की तो दूसरी पीढ़ी अन्य पिछड़ा वर्ग की बनी रही। इस बीच न तो उनकी समस्या को किसी ने समझा और न इसके लिए लड़ाई लडऩे की जरुरत समझी। दूसरी ओर इस समस्या के चलते खैरुआ आदिवासी समाज के करीब 25 हजार लोग अनुसूचित जाति के लिए मिलने वाली शासन की योजनाओं से वंचित है। यहां तक की इनके बच्चों तक को छात्रवृत्ति सहित अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सरकार नहीं बदलती तो मिल जाती असली पहचान
खैरुआ आदिवासी की लड़ाई लडऩे वाले भारतीय मजदूर संघ के धर्मस्वरुप भार्गव बताते है कि वर्ष 2028 में अगर सरकार नहीं बदलती तो इन खैरुआ आदिवासियों को उनकी असली पहचान मिल चुकी होती। दरअसल तत्कालीन भाजपा सरकार ने उक्त मामले को बेहद संवेदनशाीलता के साथ लिया था। भार्गव के प्रयासों से मामला शासन स्तर तक पहुंचा और सरकार की ओर से एक अधिकारियों का दल गुना आया। दल ने दस्तावेजों की जांच पड़ताल के बाद माना कि यह लोग अनुसूचित जनजाति में ही आते हैं। इसके बाद उन्हे इसी वर्ग में शामिल करने के प्रयास तेज हुए। इससे पहले इन सब को अन्य पिछडा़ वर्ग से हटाया गया। यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि विधानसभा चुनाव की आचार संहिता ने काम अटका दिया और बाद में सरकार बदलने के बाद उक्त मामला न सिर्फ अटक गया, बल्कि खैरुआ आदिवासियों के साथ और अत्याचार हो गया। कारण अनुसूचित जनजाति वर्ग में तो वह आ ही नहीं पाए, अन्य पिछड़ वर्ग से ही हट गए। वर्तमान में वह सामान्य वर्ग में आते है।
नहीं लग पाए शिविर
तत्कालीन भाजपा सरकार इन खैरुआ आदिवासियों को उनका हक देने की तैयारी कर रही रही थी कि इसी बीच सरकार बदल गई। बाद में कांग्रेस सरकार के श्रम मंत्री बमौरी विधायक महैन्द्र सिंह सिसौदिया ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया। उनकी कोशिशों के चलते मामले ने प्रशासनिक स्तर पर गति पकड़ी और आदेश हुए कि प्रशासनिक स्तर पर शिविर लगातार मोगिया जाति के लोगों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे, किन्तु यह आदेश बाद में किस रदद्ी की टोकरी में फेंक दिए गए। आज तक कुछ पता नहीं है। माना जाता है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तब अगर मामले को गंभीरता से लिया होता तो दशको से अपनी पहचान से वंचित 25 हजार खैरुआ आदिवासियों को उनकी पहचान मिल गई होती ।
मंच से ही बोले मुख्यमंत्री, दिल्ली तक लेकर जाऊँगा मामला
जिले की बमौरी विधानसभा में दौरे पर आए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ज्ञापन देने आदिवासी खैरुआ संघर्ष समिति के तत्वावधान में लोग पहुंचे। भारी भीड़ के कारण यह लोग मंच तक नहीं पहुंच पाए। इस दौरान मंच से ही मुख्यमंत्री ने उन्हे देखकर कहा कि वह चिंता न करें, वह उनका मामला दिल्ली तक लेकर जाएंगे और उन्हे अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल कराएंगे।