बॉलीवुड हिन्दू और सिख विरोधी एजेंडे पर कर रहा काम, IIM के प्रोफेसर के शोध से हुआ खुलासा
मुंबई। बॉलीवुड फिल्मों पर हमेशा से हिन्दू और सिख धर्म के खिलाफ समाज में जहर घोलने का आरोप लगता आया है। इसे लेकर देश में लंबे समय से एक बहस चली आ रही है। वर्तमान समय में कई वेबसीरीज पर भी इसी तरह के आरोप लगे है। जिन्हें प्रतिबंध करने और ओटीटी के लिए नियम बनाने की मांग उठी। इन आरोपों और बहस की सच्चाई को जानने के लिए अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) के एक प्रोफेसर ने अध्ययन किया है, जिसके परिणाम बेहद चौंकाने वाले हैं।
आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने अपने शोध में साल 1960 से लेकर 2020 तक की 50 बड़ी फिल्मों को शोध में शामिल किया है। इनमें ए से लेकर जेड तक हर शब्द की 2 से 3 फिल्में चुनी गईं। जिसमें उन्होंने पाया की एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीते करीब 50 साल से लोगों के दिमाग में हिन्दू और सिखों के खिलाफ जहर घोला जा रहा है। फिल्मों के माध्यम से हिन्दुओं की धार्मिक परंपराओं को दकियानूसी और बेतुकी बताया गया। वहीँ इसके उलट मुसलमानों को ईमानदार और नेकदिल दिखाया गया है। ईसाई महिलाओं को बदचलन दिखाया जाता रहा है। सिखों को मजाक के पात्र के तौर पर ही दर्शाया गया।
ब्राह्मण नेता भ्रष्ट, वैश्य बेइमान कारोबारी -
प्रोफेसर धीरज शर्मा के अध्ययन के अनुसार, हिंदी फिल्मों में 58 फीसदी भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62 फीसदी फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य दिखाया गया है। 74 फीसदी सिख किरदारों को मज़ाक के पात्र के रूप में दर्शाया गया है। वहीँ 78 फीसदी बदचलन महिला के किरदार को ईसाई नाम दिया गया है। इसके विपरीत 84 फीसदी मुस्लिम किरदारों को पांच वक्त का नमाजी, ईमानदार दिखाया गया है। भले ही वह विलेन और अपराधी की भूमिका में हो, लेकिन उसके किरदार को उसूलमंद गढ़ा गया है।
पाकिस्तान प्रेम-
प्रोफेसर धीरज और उनकी टीम ने इसके अलावा बीते कुछ सालों में पकिस्तान में रिलीज हुई 20 फिल्मों को भी शामिल किया। जिनमें से 18 फिल्मों में पाकिस्तानी लोगों को खुले दिल और दिमाग वाला, और बहादुर दिखाया गया है।वहीँ दूसरी ओर भारतीयों को रूढ़िवादी, दकियानूस दिखाया गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान सरकार के मुकाबले भारत सरकार को बुरा दिखाने की साजिश होती रही है।
खान गैंग का असर -
अध्ययन के अनुसार हिन्दुओं पर भारत की छवि को बिगाड़ने का ये खेल साल 1970 के बाद से तेजी से बढ़ा है। जबकि 90 के बाद से से लेकर पिछले एक दशक में यह काम सबसे ज्यादा किया गया है। जिसका मुख्य कारण 1970 के बाद से मुस्लिम लेखकों और अभिनेताओं के प्रभाव का असर है। सलीम-जावेद जैसे लेखकों ने हिन्दुओं की छवि बिगाड़ने का ये खेल बखूबी रचा है। इसके बाद 90 के दशक से खान गैंग के सलमान, शाहरुख, आमिर, सैफ, फरदीन, जैसे अभिनेताओं की फिल्मों में ये विशेष रूप से नजर आया है।
सलमान-शाहरुख़ सबसे आगे -
उदाहरण के रूप में शाहरुख़ की फिल्म वीरजारा में पाकिस्तानियों को वेलकमिंग और नेकदिल दिखाया गया था, जिसमें दिखाया गया की कैसे वीर (शाहरुख़ का किरदार ) को पाकिस्तान में गिरफ्तार किए जाने के बाद वहां की एक महिला वकील उसे छुड़ाने के लिए पैरवी करती है और जारा (प्रीति जिंटा का पाकिस्तानी नागरिक किरदार ) उसके जेल में जाने के बाद हिंदुस्तान आकर उसके घर और परिवार को संभालती है।
दूसरा उदाहरण सलमान की फिल्म बजरंगी भाईजान है। जिसमें बजरंगी भाई ( सलमान का किरदार) को थोड़ा मूर्ख दिखाया गया है। पाकिस्तान पहुंचने पर वहां के लोगों के मन में उसके प्रति सहानुभूति और दी गई मदद के जरिए पाकिस्तानी नागरिकों की छवि को अच्छा और साफ-सुथरा दिखाया गया है।
बॉलीवुड का एजेंडा -
आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा की इस स्टडी में होने वाले खुलासों ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है की बॉलीवुड लंबे समय से एक एजेंडे के तहत फिल्म निर्माण कर रही है। जिसके तहत हिन्दू और सिख समुदाय की छवि को खराब करने की जा रही है। इसके पीछे बॉलीवुड में दाऊद जैसे आतंकियों के पैसे लगने और इसके इस्लामीकरण किए जाने की साजिश के होने वाले दावे भी सच नजर आ रहें है।