“लाड़ली बहना योजना” से “महिला सम्मान योजना” तक: क्या महिलाओं को पैसे देना चुनाव जीतने का नया फार्मूला है?
भारत की राजनीति में महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के नाम पर नकद धनराशि देने की योजनाएं तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। मध्य प्रदेश की “लाड़ली बहना योजना” की सफलता के बाद अब दिल्ली सरकार ने भी “महिला सम्मान योजना” के तहत हर महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने की घोषणा की है।
यह ट्रेंड केवल इन दो राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में भी राजनीतिक दल इस रणनीति को अपनाने लगे हैं।
सवाल यह है कि क्या यह कदम वास्तव में महिलाओं के उत्थान के लिए है, या फिर यह चुनाव जीतने का एक प्रभावी फार्मूला बन चुका है?
दिल्ली सरकार की महिला सम्मान योजना: क्या है खास?
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि यदि आम आदमी पार्टी (AAP) चुनाव जीतती है, तो सरकार हर महिला के बैंक खाते में हर महीने 2100 रुपये जमा करेगी। इस योजना के लिए शुक्रवार से रजिस्ट्रेशन शुरू हो जाएगा।
दिल्ली सरकार की 'महिला सम्मान योजना' हुई शुरू 😍🔥
— AAP (@AamAadmiParty) December 12, 2024
🔷 अब दिल्ली की सभी माताओं-बहनों को प्रति महीने मिलेंगे 2100 रुपए #KejriwalMahilaSammanYojna pic.twitter.com/i6zgmfAKOm
केजरीवाल का दावा है कि यह योजना महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ उनके जीवन स्तर को सुधारने में मदद करेगी। हालांकि, इसका लाभ चुनाव के बाद ही मिलेगा।
उन्होंने मजाकिया अंदाज में बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, “बीजेपी वाले पूछते हैं पैसा कहां से आएगा? बता देना, मेरा भाई जादूगर है।”
विपक्षी दल अक्सर ऐसी योजनाओं को "फ्रीबी कल्चर" का नाम देते हैं। उनका दावा है कि ऐसी योजनाएं अर्थव्यवस्था पर बोझ डालती हैं और इनसे दीर्घकालिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
लेकिन लगभग हर पार्टी अपने घोषणा पत्र में ऐसी किसी ना किसी योजना के बारे में जिक्र करती है जिससे महिलाओं के वोट को साधा जा सके।
हाल ही में केजरीवाल ने इस आलोचना का जवाब देते हुए कहा, “लोग कहते हैं कि इससे सरकार पर बोझ बढ़ेगा, लेकिन मुझे लगता है कि इससे बरकत होगी। महिलाओं का आशीर्वाद सबसे बड़ा है।” ऐसा ही मिलता जुलता जबाव मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव मेंं लाड़ली बहना योजना के बारे में बात करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिया था।
मध्यप्रदेश में मिली सफलता के बाद महिलाओं के लिए योजनाओं का बढ़ता चलन
मध्य प्रदेश की “लाड़ली बहना योजना”: मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर महिला को हर महीने 1000 रुपये देने का वादा किया था और यह भी कहा था कि सरकार में आने के बाद इन पैसों को बढ़ा दिया जाएगा।
इसके बाद मध्यप्रदेश में बीजेपी ने बड़े बहुमत से विजय हासिल की और वादे अनुसार मध्यप्रदेश सरकार हर महीने महिलाओं के खाते में पैसे डाल रही है और धीरे धीरे इस योजना की रकम भी बढ़ा भी रही है।
लेकिन मध्यप्रदेश के बाद इस योजना को एक प्रभावी चुनावी रणनीति के रूप में देखा गया।
मध्यप्रदेश के बाद अब देश के अन्य राज्यों में भी इसी तरह की योजनाएं देखी जा रही हैं। जिस भी राज्य में चुनाव होता उससे पहले लगभग सभी पार्टियां अपने घोषणापत्र में महिलाओं को हर महीने पैसे देने की घोषणा करते हैं।
मुख्यमंत्री एकल नारी सम्मान, मैया सम्मान योजना, लाड़ली बहिन योजना, महतारी वंदन योजना, “कल्याण लक्ष्मी” योजना, मुथुवेल करुणानिधि महिला सम्मान योजना या फिर महिला सम्मान योजना।
ये उन अलग अलग योजनाओं के नाम हैं जो किसी ना किसी तरीके से महिलाओं को हर महीने पैसे देने के लिए चर्चाओं में आईं।
लेकिन सवाल यह है कि महिलाओं को हर महीने पैसे देने का वादा चुनाव पर कितना असर डालता है।
चुनावी रणनीति या वास्तविक सशक्तिकरण?
महिलाओं को नकद धनराशि देने की ये योजनाएं दो पक्षों में बंटी हुई हैं।
चुनावी रणनीति का हिस्सा:
- इन योजनाओं का ऐलान अक्सर चुनाव से पहले किया जाता है, जिससे महिलाओं के एक बड़े वोट बैंक को साधने का प्रयास होता है।
- ऐसे में यह तर्क दिया जाता है कि पार्टियां इन योजनाओं के जरिए महिलाओं को वोट के लिए लुभा रही हैं।
सशक्तिकरण का माध्यम:
- योजना के समर्थकों का कहना है कि नकद सहायता से महिलाओं को आर्थिक आजादी मिलती है और वे घर की वित्तीय जिम्मेदारियों में ज्यादा प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं।
- यह गरीब और जरूरतमंद महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकता है।
महिलाओं का वोट बैंक क्यों महत्वपूर्ण है?
महिलाएं चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। हाल के वर्षों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखा गया है।
निर्णायक जनसंख्या: महिलाओं की बड़ी आबादी किसी भी राज्य के चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।
भावनात्मक जुड़ाव: नकद सहायता या कल्याणकारी योजनाएं महिलाओं के जीवन को सीधे प्रभावित करती हैं, जिससे उनका झुकाव उस पार्टी की तरफ हो सकता है।
क्या नकद योजनाएं स्थायी समाधान हैं?
- यह सच है कि ऐसी कोई भी येाजना के अंतर्गत जब इतनी बड़ी संख्या में पैसे दिए जाते हैं तो उससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर कहीं न कहीं नकारात्मक असर पड़ता है।
- इसके अलावा नकद सहायता से अल्पकालिक राहत जरूर मिलती है, लेकिन यह महिलाओं के समग्र विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता का स्थायी समाधान नहीं है।
- दीर्घकालिक प्रभाव के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
महिलाओं को आर्थिक सहायता देने की योजनाएं चुनावी राजनीति का प्रभावी साधन बन चुकी हैं। हालांकि, इनसे महिलाओं को तत्काल राहत मिलती है, लेकिन यह देखना बाकी है कि ये योजनाएं किस हद तक उनके जीवन को स्थायी रूप से बदलने में सक्षम हैं।
क्या ये योजनाएं महिलाओं के लिए सचमुच वरदान साबित होंगी, या फिर यह सिर्फ एक चुनावी दांव है? यह सवाल आने वाले चुनावों के नतीजे और उनकी दीर्घकालिक सफलता पर निर्भर करेगा।