कभी कम नहीं हुआ दिग्गी का दम

राजनीति का चाणक्य कहा जाता है दिग्विजय सिंह को

Update: 2018-11-03 07:32 GMT

ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। आज के समय में ये सोचा भी नहीं जा सकता कि कोई व्यक्ति दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहे और इसके बाद भी उसका राजनीतिक कद वैसा ही बना रहे, लेकिन ये कारनामा कांग्रेस के दिग्गी राजा यानी कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कर दिखाया है। दिग्विजय सिंह को यूं ही कांग्रेस की राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता है। दस साल तक चुनाव न लडऩे के बावजूद वे मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देश की राजनीति को अपनी उंगलियों पर नचाने का माद्दा रखते हैं।

दिग्विजय सिंह को उनके दौर के उन चुनिंदा नेताओं में गिना जाता है, जो केवल अपनी रणनीति के दम पर राजनीति की धारा बदल सकते हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे जब भी कुछ बोलते हैं तो राजनीति के गलियारों में उसकी चर्चा जरूरत होती है। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे अपनी जुबान से कुछ बोलते हैं, लेकिन उनकी शारीरिक भाव-भंगिमा कुछ और ही इशारा करती है, जिससे उनके राजनैतिक विरोधी उलझन में पड़ जाते हैं। यही वजह है कि मध्यप्रदेश की छोटी सी नगर पालिका राघौगढ़ के चेयरमैन के पद से राजनीति की शुरूआत करने के बावजूद दिग्गी राजा प्रदेश के सबसे बड़े सिहासन यानी कि मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे और दस साल तक उस पद पर बने भी रहे। दिग्विजय सिंह 30 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। वे महज 33 साल की उम्र में अर्जुन सिंह की सरकार में सबसे युवा मंत्री रहे। वर्ष 1993 में दिग्विजय सिंह पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और वर्ष 2003 तक मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए। वर्ष 2003 का चुनाव हारने के बाद अपनी जुबान से निकली बात को सच करते हुए दिग्विजय सिंह ने दस साल चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन वे प्रदेश और देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जब लोग सोच रहे थे कि दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद दिग्विजय सिंह ने राजनीतिक ताकत खो दी होगी, तब उन्होंने कथित गैर-राजनीतिक नर्मदा यात्रा के माध्यम से राजनीति के अपने पुराने आयाम दोबारा साध लिए। सक्रिय राजनीति से अपने वनवास के बाद नर्मदा यात्रा के माध्यम से उन्होंने ऐसी वापसी की कि चुनावी साल में शांत बैठी कांग्रेस अचानक अटैकिंग मोड में आ गई।

रणनीति के तहत चुनावी रण से दूर हैं दिग्गी राजा!

कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा दिग्विजय सिंह से एक निश्चित दूरी बनाने के बावजूद राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई तो उसका मुख्यमंत्री, दिग्विजय सिंह की मर्जी के बिना नहीं बन पाएगा। राजनीति के कुछ जानकार तो दिग्विजय सिंह के कांग्रेस के बड़े कार्यक्रमों और चुनावी रण से दूर रहने को उनकी नाराजगी नहीं बल्कि कांग्रेस की रणनीति मानते हैं। राजनीति के कुछ जानकार तो यह भी मान रहे हैं कि पर्दे के पीछे कांग्रेस के भावी मुख्यमंत्री का चेहरा दिग्गी राजा ही हैं। चूंकि जनता के बीच दिग्विजय सिंह की छवि बिल्कुल अच्छी नहीं है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में उनका अपना अलग स्थान है। इसी वजह से उन्हें एक रणनीति के तहत चुनावी रण से अलग रखा गया है। संभवत: यही कारण है कि कांग्रेस ने कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अजय सिंह में से किसी को भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत नहीं किया है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अपनी उम्र की वजह से राजनीतिक ढलान की ओर होने पर भी दिग्विजय सिंह प्रदेश की राजनीति की एक बड़ी ताकत हैं।

अपने समर्थकों को टिकट दिलाने लगा रहे पूरी ताकत

पर्दे के पीछे कांग्रेसी मुख्यमंत्री का चेहरा दिग्विजय सिंह ही हैं? इस बात को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि दिग्विजय सिंह अधिक से अधिक सीटों पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिग्विजय सिंह की रणनीति यह है कि कांग्रेस के टिकट पर उनके अपने समर्थक ज्यादा से ज्यादा चुनकर आएं, ताकि यदि बहुमत की स्थिति बने तो वह मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा पूरी मजबूती से ठोक सकें। यही कारण है कि गुजरे बुधवार को दिल्ली में हुई कांग्रेस की केन्द्रीय समिति की बैठक में दिग्विजय सिंह टिकट बंटवारे को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया से भिड़ गए। सूत्रों की मानें तो इस बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने ही सिंधिया और दिग्विजिय सिंह के बीच जमकर नोक-झोंक हुई। हालांकि फजीहत से बचने के लिए सिंधिया और दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस ने भी इस प्रकार की किसी घटना से साफ इंकार किया है। इससे पहले दिग्विजय सिंह के लेटरहैड पर लिखे गए एक पत्र से पार्टी में हडक़ंप मच गया था। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम लिखे गए इस पत्र में 57 लोगों के नाम थे, जिन्हें टिकट देने की बात कही गई थी। पत्र में यह भी आरोप लगाया गया था कि राज्य चुनाव समिति टिकट वितरण धंधे की तरह कर रही है। हालांकि दिग्विजय सिंह ने इस पत्र को फर्जी बताया था।





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