कश्मीर मुद्दे पर चीन ने सुरक्षा परिषद में दूसरी बार मुंह की खाई

Update: 2019-12-18 08:50 GMT

न्यूयॉर्क/वेब डेस्क। कश्मीर मुद्दे पर चीन को सुरक्षा परिषद के बंद कमरे में हुई बैठक में दूसरी बार मुंह की खानी पड़ी। अमेरिका, फ़्रांस, रूस, इंडोनेशिया और इंग्लैंड ने भारत का साथ दिया। जानकार सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी मंगलवार को यहां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंद कमरे में विचारार्थ मुद्दों में कश्मीर के मुद्दे को भी शामिल किए जाने पर जोर देते रहे। वह चाहते थे कि भारतीय संविधान के अनुछेद 370 को हटाए जाने और कश्मीर में उत्पन्न स्थितियों के मुद्दे को विचारार्थ लिया जाना चाहिए।

इसका फ्रांस ने कड़ा विरोध किया। फ्रांसीसी राजदूत ने स्पष्ट किया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है और वह अपनी स्थिति पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं। इसलिए ऐसे मुद्दे को सुरक्षा परिषद की बैठक में उठाए जाने का कोई औचित्य नहीं है। इस बैठक की अध्यक्षता अमेरिकी प्रतिनिधि कर रहे थे। इंग्लैंड ने भी इस मुद्दे को चर्चा में शामिल किए जाने पर आपत्ति दर्ज की। रूस, जो सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है, को भी कश्मीर का मुद्दा उठाया जाना रुचिकर नहीं लगा। रूस के प्रतिनिधि ने कहा कि मंत्रणा बैठक में विचारार्थ जब अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे हों, तब ऐसे मुद्दों को चर्चा के लिए लिया जाना और चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है। पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद की इस मंत्रणा बैठक में इंडोनेशिया के भी इसी तरह के विचार थे।

जानकारों का मत है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी 21 दिसम्बर को विशेष प्रतिनिधि स्तर पर वार्ता के लिए भारत जा रहे हैं। इस मुद्दे को उठाए जाने के पीछे उनके दो मकसद बताए जाते हैं। एक, बुधवार से वाशिंगटन में मंत्री स्तरीय टू प्लस टू उच्च स्तरीय वार्ता में खलल डालना और दूसरा भारत में विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता से पूर्व भारत-चीन सीमा विवाद में लाइन आफ कंट्रोल को ले कर एक आधार तैयार करना था।

चीन ने पिछले 16 अगस्त को भी सुरक्षा परिषद की बंद कमरे की बैठक में कश्मीर का मुद्दा विचारार्थ लिए जाने पर जोर दिया था। उस समय बाद कमरे में मंत्रणा समिति की बैठक की अध्यक्षता में पोलैंड के प्रतिनिधि की बारी थी। तब चीन के राजदूत झांग जून ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था और जोर दिया था कि इसे विचारार्थ लिया जाना चाहिए। तब भी चीन को मुंह की खानी पड़ी थी। सुरक्षा परिषद के इतर संवाददाताओं से बातचीत में तब भारतीय प्रतिनिधि और राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारतीय संविधान के अनुछेद 370 को संसद में पारित किए जाने के बाद अब यह मामला भारत का अंदरूनी मामला हो गया है। 

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