ज्ञान, विचार और स्किल पत्थर की तरह नहीं होते, बल्कि जीवंत होते हैं : प्रधानमंत्री

Update: 2021-02-19 07:14 GMT

नईदिल्ली। विश्व-भारती विश्वविद्यालय केवल ज्ञान देने वाली संस्था नहीं है, बल्कि यह एक प्रयास है भारतीय संस्कृति के शीर्षस्थ लक्ष्य को प्राप्त करने का। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व-भारती के दीक्षांत समारोह में यह बात कही। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह विश्वविद्यालय केवल शिक्षित करने वाली संस्था नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया को भारत और भारतीयता की दृष्टि से देखने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि यह संस्था ज्ञान का उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विश्व-भारती के दीक्षांत समारोह में अपनी बात रख रहे थे।

ज्ञान सतत चलने वाली प्रक्रिया -

प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञान, विचार और स्किल पत्थर की तरह नहीं होते, बल्कि जीवंत होते हैं। यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है। आपको ये भी हमेशा याद रखना होगा कि ज्ञान, विचार और स्किल, स्थिर नहीं है, ये सतत चलने वाली प्रक्रिया हैं। इसमें सुधार की गुंजाइश भी हमेशा रहेगी लेकिन जान और सत्ता दोनों जिम्मेदारियों के साथ आते हैं। अगर आपकी नीयत साफ है और निष्ठा मां भारती के प्रति है तो आपका हर निर्णय किसी ना किसी समाधान की तरफ ही बढ़ेगा। सफलता और असफलता हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं करती। हो सकता है आपको किसी फैसले के बाद जैसा सोचा था वैसा परिणाम न मिले लेकिन आपको फैसला लेने में डरना नहीं चाहिए।

 भारत के ज्ञान को विश्व में पहुंचाया - 

उन्होंने कहा कि भारत के ज्ञान और उसकी परंपरा को विश्व के कोने-कोने में पहुचाने में विश्व भारती की बहुत बड़ी भूमिका है।  गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने हमें अखंड भारत के रास्ते दिखाए, जिन्हें बरकरार रखने की जरूरत है। मोदी ने कहा, "गुरुदेव ने विश्वभारती में जो व्यवस्थाएं विकसित कीं, जो पद्धतियां विकसित कीं, वो भारत की शिक्षा व्यवस्था को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने, उन्हें आधुनिक बनाने का एक माध्यम थीं।"

गुरुदेव अगर विश्व भारती को सिर्फ एक यूनिवर्सिटी के रूप में देखना चाहते तो वो इसको ग्लोबल यूनिवर्सिटी या कोई और नाम भी दे सकते थे। लेकिन उन्होंने इसे विश्व भारती विश्वविद्यालय नाम दिया। गुरुदेव टैगोर के लिए विश्व भारती सिर्फ ज्ञान देने वाली एक संस्था नहीं थी। यह एक प्रयास है भारतीय संस्कृति को शीर्षस्थ लक्ष्य तक पहुंचने का, जिसे हम कहते हैं- स्वयं को प्राप्त करना।"

विश्वभारती ज्ञान का समुन्द्र -

प्रधानमंत्री ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जब आप अपने कैंपस में 'उपासना' के लिए जुटते हैं तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं। जब आप गुरुदेव द्वारा शुरू किए गए समारोहों में जुटते हैं तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं। विश्वभारती तो अपने आप में ज्ञान का वो उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव ही अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई। ज्ञान की, क्रिएटिविटी की कोई सीमा नहीं होती, इसी सोच के साथ गुरुदेव ने इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।

सत्ता में संयम और संवेदनशील जरुरी -

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार, सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, उसी प्रकार हर विद्वान को, हर जानकार को भी उनके प्रति ज़िम्मेदार रहना पड़ता है जिनके पास वो शक्ति नहीं हैं। आपका ज्ञान सिर्फ आपका नहीं बल्कि समाज की, देश की धरोहर है। आप देखिए, जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई सुशिक्षित और प्रशिक्षित लोग हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिनरात प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं। 

गौरतलब है कि विश्व भारती की स्थापना 1921 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह देश का सबसे पुराना केंद्रीय विश्वविद्यालय है। मई 1951 में संसद के एक अधिनियम के जरिये विश्व-भारती को केंद्रीय विश्वविद्यालय और 'राष्ट्रीय महत्व का संस्थान' घोषित किया गया था।

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