सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दहेज और गिफ्ट पर लागू नहीं होती Dowry Act की धारा 6, समझिए इसके मायने

Update: 2024-08-30 03:27 GMT

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में दोहराया कि, यह नहीं माना जा सकता कि विवाह के समय दिया जाने वाला दहेज और पारंपरिक उपहार पर दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) , 1961 की धारा 6 के प्रावधान लागू होंगे। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। शादी के समय दहेज़ का लेनदेन भारत में एक प्रचलित रिवाज है। कई बार इस महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। ससुराल पक्ष द्वारा कई बार रुपयों और गाड़ी जैसे महंगे गिफ्ट की डिमांड पूरी न करने पर महिलाएं हिंसा का शिकार भी होती हैं। ऐसे परिस्थितियों में समझते हैं आखिर अदालत ने क्यों दिया ऐसा फैसला और क्या है इस फैसले के मायने...।

पहले समझिए क्या था मामला :

दरअसल, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी। एक महिला के पिता ने उसके पूर्व ससुराल पक्ष पर केस लगाया था। इस व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी 1999 में करवाई थी लेकिन 2016 में उसका डिवॉर्स हो गया। उसी समय संपत्ति और अन्य मुद्दों का निपटारा भी हो गया था।

इसके बाद साल 2021 में महिला के पिता ने अपनी बेटी के पूर्व ससुराल पक्ष पर आईपीसी की धारा 406 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 6 के तहत केस दर्ज कराया। तब तक महिला की दूसरी शादी भी चुकी थी। महिला के पिता का आरोप था कि, उसकी बेटी के पूर्व ससुराल पक्ष ने सोने के गहने वापस नहीं किए।

जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत के सामने दो सवाल थे - पहला कि, क्या एक तलाकशुदा महिला के पिता को यह अधिकार है कि, अपनी बेटी के स्त्रीधन को वापस मांगने के लिए केस दर्ज करवा सके। दूसरा सवाल - क्या शादी के समय गिफ्ट देना दहेज़ निषेध एक्ट - धारा 6 के तहत अपराध माना जा सकता है।

अदालत ने क्या फैसला सुनाया :

इस मामले में सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुनाया कि, यह मामला विचार करने योग्य नहीं है। स्त्रीधन पर केवल महिला का हक़ होता है। इस धन पर महिला के पति या पिता का कोई अधिकार नहीं है। इस बात के साक्ष्य नहीं है कि, महिला ने अपना स्त्रीधन ससुराल वालों को दिया था। अदालत ने कहा कि, यह मामला बदले की भावना से प्रेरित लगता है।

देर से मामला दायर करने पर भी सवाल :

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, तलाक के इतने सालों बाद केस दायर करना गलत है। कानूनी कार्रवाई समय पर होनी चाहिए। यह किसी बदले की भावना से भरी हुई नहीं होनी चाहिए।

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