हरदोई: 'अव्वल' सदस्यता के लिए बब्बन को बधाई दे गए नीरज सिंह, ओडीओपी प्रमोशन के लिए प्रीतेश दीक्षित को मिली सराहना…
पहले तो जिलाध्यक्ष अजीत सिंह बब्बन को सदस्यता में सूबे में दूसरे पायदान पर खड़े होने की बधाई दी। कहा, निश्चित ही अद्वितीय है।
हरदोई। अवध क्षेत्र भाजपा के पूर्व महामंत्री नीरज सिंह 2017 विधानसभा चुनाव से पहले संगठन पुनर्गठन के दौर में संगठन के जनपद प्रभारी रहे और तब आठ में सात विधानसभा सीटें पार्टी के खाते में दर्ज कराने का श्रेय श्रीकृष्ण शास्त्री की अध्यक्षता वाली कार्यकारिणी संग उन्हें भी है। भाजपा के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम वीर बाल दिवस में सम्मिलित होने पहुंचे थे। इस दौरान अनौपचारिक चर्चा में उन्होंने प्रभार वाले दिनों और लोगों की चर्चा की, बगल में उनके तत्कालीन अध्यक्ष शास्त्री थे और था भतकहियों का सिलसिला।
पहले तो जिलाध्यक्ष अजीत सिंह बब्बन को सदस्यता में सूबे में दूसरे पायदान पर खड़े होने की बधाई दी। कहा, निश्चित ही अद्वितीय है। इस बब्बन बोले, तकनीकी तौर लखनऊ महानगर जनपद अव्वल है, सरोजनी नगर हटा के देखें तो अव्वल हरदोई है।
इसके बाद प्रीतेश ने मुख्यमंत्री के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ’एक जनपद एक उत्पाद’ के प्रमोशन के सिलसिले में हथकरघा पर बुने खादी के वस्त्र भेंट किए।
नीरज सिंह छूटते बोले, इसकी चर्चा तो शिव प्रकाश कर रहे थे। फिर प्रीतेश ने मिले दायित्व के सापेक्ष अपने योगदान पर चर्चा की। बताया, नगर निकाय में उनके संयोजन वाली कछौना पतसेनी नगर पंचायत अवध में सबसे अधिक मतों से जीती। इस पर नीरज सिंह ने प्रभार वाले सीतापुर में 57 फीसद मुस्लिम आबादी वाली नगर पालिका में 18 हजार मत की सबसे बड़ी जीत बताई।
मण्डल अध्यक्ष चुनाव : बहुत कठिन है डगर पनघट की, जिले की भूमिका खत्म : चर्चा आई बीते लोकसभा चुनाव की, तो नीरज सिंह से बब्बन को फिर शाबाशी मिली। मिले भी क्यों नहीं, सेंट्रल यूपी में भयंकर एंटी इनकम्बेंसी के बीच यहां दोनों सीटें बनी रहना अचरज से कम नहीं था।
खैर, अनौपचारिक चर्चा में खुलासा हुआ, अबकी मर्तबा मंडल अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया में जिले की कोई भूमिका नहीं होगी। जिले का प्रतिभाग संगठन जिला प्रभारी करेंगे। इसके अलावा चयन समिति में राष्ट्रीय से प्रांतीय प्रतिनिधि होंगे।
जिलाध्यक्ष की भूमिका नहीं होने से वह प्रसन्न होंगे या सिफारिशों के बीच धर्म संकट से मुक्ति मानते होंगे, ये वही जानें। लेकिन, कार्यकर्ता की कुशलता और क्षमता के बारे में जनपद संगठन बेहतर समझता होगा या शीर्ष ? ये एक सवाल है। प्रक्रिया सुन मंडल अध्यक्ष बनना, विधायक की टिकट पाने से भी कठिन लग रहा है।