मंत्री कृष्णा गौर से विशेष चर्चा: वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाओं की आवश्यकता नहीं, नवाबों का नहीं गुलाबों का शहर है भोपाल…
मंत्री कृष्णा गौर से विशेष चर्चा
अनुराग उपाध्याय, भोपाल: मध्यप्रदेश की पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री कृष्णा गौर का कहना है कि भोपाल नवाबों का नहीं, गुलाबों का शहर है। यह भोपाल नहीं भोजपाल है।
इसको इसकी प्राचीन पहचान दिलवाना है। पानी, हरियाली, वास्तु सम्मत निर्माण, गुलाबी मौसम इसकी पहचान थे, जिसे बदल दिया गया है। हमारी कोशिश होगी भोपाल फिर भोजपाल बने।
स्वदेश से ख़ास चर्चा करते हुए कृष्णा गौर ने कहा कि आक्रांताओं के कारण भोजपाल का नाम भोपाल हो गया। उनकी मंशा ही हमारी सांस्कृतिक विरासत पर कब्जा कर अपना नाम लगाने की थी।
भोपाल को लोगों ने नवाबों के नाम से पहचान दिलवाने की कोशिश की, लेकिन यह तो राजा भोज और रानी कमलापति का भोजपाल है, इसे मिटाने का भरसक प्रयास हुआ। आप इसके लिए कुछ प्रयास क्यों नहीं करतीं, इस सवाल पर कृष्णा गौर कहती हैं मैंने महापौर रहते इसकी शुरुआत की। अब मुख्यमंत्री मोहन यादव जी का साथ मिला है।
इस पर भी काम चल रहा है। भोपाल में हबीबगंज पुलिस स्टेशन का नाम बदलने के लिए मैंने पत्र भेजा है। लालघाटी और हलाली डेम जैसे नाम हम पर हुए अत्याचारों की कहानी कह रहे हैं। इनका नाम बदला जाए, इसके लिए भी अभियान शुरू किया गया है।
कृष्णा गौर कहती हैं, भोपाल अनोखा है। विश्व के सबसे बड़े मानव निर्मित भोजताल का निर्माण राजा भोज ने यहाँ करवाया। राजा भोज के समय की स्थापत्य योजना को आज के पुराने भोपाल में देखिये।
चौक क्षेत्र 1010 ईस्वी में स्थापित प्राचीन वैदिक नगर योजना है, जिसका विन्यास राजा भोज के ग्रंथ समरांगण सूत्रधार में प्रमाणिक रूप से दर्ज है।
भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट को कैसे देखती हैं?
इस पर कृष्णा गौर का कहना है कि इससे भोपाल देश-दुनिया के नक्शे पर पुन: स्थापित हो रहा है। इस समिट से भोपाल ही नहीं सम्पूर्ण मध्यप्रदेश को बहुत बड़ा लाभ होने वाला है। भोपाल भी अब आगे बढ़ रहा है। ऐसे में यहाँ राजधानी परियोजना जैसी एजेंसियों की जरूरत है, जो सिर्फ और सिर्फ राजधानी के समग्र विकास पर काम करें। विकास का अर्थ है यहाँ के पर्यावरण, नैसर्गिक सौंदर्य और संस्कृति की रक्षा करते हुए नवनिर्माण।
गौर ने कहा मंत्री के रूप में उनका एक साल संतोषजनक है। विभाग का जो रोडमैप है, अभी उसी पर फोकस है। ओबीसी, डीएनटी और मायनॉरिटी ऐसे विभाग हैं, जहाँ सेवा के काम बहुत हैं, उन्हें ही आगे बढ़ा रहे हैं।
सामान्यत: लोग अल्पसंख्यकों का आशय मुसलमानों से लगाते हैं, यह भ्रम है। मुसलमान ही नहीं, असली अल्पसंख्यक तो जैन, सिख, बौद्ध और पारसी हैं। वक्फ बोर्ड को लेकर आपके क्या विचार हैं, पूछने पर श्रीमती गौर कहती हैं कि मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार इस पर गंभीरता से काम कर रही है। मेरी अपनी राय है कि ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता ही नहीं हैं।
देश, प्रदेश में सरकारें हैं वो लोगों की दान की गई वस्तुओं, जमीन, जायजाद का उस वर्ग के लिए अच्छे से उपयोग कर सकती हैं, जिनके लिए उन्हें वक्फ या दान दिया गया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कृष्णा गौर का कहना है मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इसके पक्षधर हैं। उन्होंने कहा भी है, सही समय पर हर फैसला लिया जाएगा।
गौर होने का खूब लाभ मिला इस सवाल के जवाब में कृष्णा गौर कहती हैं मुझे बाबूजी (बाबूलाल गौर) के कारण गौर साहब या बाबूजी की बहू ही कहा जाता है। इस कारण समाज के प्रति मेरी जवाबदारी और बढ़ जाती है। जब वे स्थानीय शासन मंत्री थे तो उनके अतिक्रमण विरोधी अभियान के कारण उन्हें बुलडोजर मंत्री या बुलडोजर लाल गौर कहा जाने लगा था। वे पहले राजनेता थे जिन्होंने जनता के हित में बुलडोजर का प्रयोग किया।