यूरोप, रशिया, कजाकिस्तान से आए परिंदों ने शहर के जलाशयों को बनाया ठिकाना
रमौआ में दिखा बार हेडेड गूस, फरवरी में करेंगे वापसी, विदेशी मेहमानों ने जलाशयों को बना लिया है अपना ठिकाना
ग्वालियर,न.सं.। नादान परिंदों ने शहर के जलाशयों को अपना ठिकाना बनाना शुरू कर दिया है। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा मानो उन्होंने ग्वालियर में ठहरने की मंशा लेकर अपने देश से उड़ान भरी थी। आंखों को सुकून देने वाले खूबसूरत प्रवासी पक्षी सात समंदर पार से आए हैं। इनकी मौजूदगी तिघरा के साथ अन्य जलाशयों पर पहुंचने वाले सैलानियों का रोमांच बढ़ा रही है। वहीं तिघरा और रमौआ बांध पर बार हेडेड गूस नाम का पक्षी भी दिखा, जो कि हर बार बड़े झुंड के साथ आता था, लेकिन इस बार कम संख्या में पक्षी आए हैं। बार हेडेड गूस आसमान में प्लेन से भी ऊंचाई पर उड़ लेता है। ये फरवरी के अंत तक यहां ठहरेंगे और फिर अपने देश की तरफ रवानगी डाल देंगे, क्योंकि तब हमारे यहां गर्मी शुरू हो जाएगी और इनके देशों का मौसम सामान्य हो जाएगा। प्रवासी पक्षियों के ग्वालियर के पसंदीदा स्पाट में तिघरा बांध क्षेत्र, रमौआ बांध क्षेत्र, देवखो, खुरैरी,भदावना,पेहसारी और सिरसा सहित अन्य कुछ क्षेत्र हैं।
पक्षी विशेषज्ञ गौरव परिहार का कहानी है इन प्रवासी पक्षियों के देशों में अभी बर्फवारी हो रही है और तापमान मायनस पर पहुंच चुका है, जबकि यह समय उनकी वंशवृद्घि का भी होता है। इनकी उड़ान कई महीने पहले शुरू हो जाती है। ये अपने देश से एक झुंड के रूप में निकलते हैं। कुछ आगे निकल जाते हैं तो कुछ पीछे रह जाते हैं। इसके अलावा बर्फवारी होने से इनके सामने भोजन की समस्या भी खड़ी हो जाती है। ऐसे में इन्हें भारत के जलाशय सुरक्षित नजर आते हैं। लौटते समय इनके बच्चे भी साथ रहते हैं। प्रवासी पक्षियों को सुबह और शाम के समय खुरैरी, तिघरा, रमौआ, सिरसा, पहसारी और मातीझील प्लांट में आसानी से देखा जा सकता है। ये मेहमान हमारे शहर में यूरोप, रशिया, कजाकिस्तान, साइबेरिया, अफगानिस्तान, लेह-लद्याख से आए हैं। बड़ी बात तो यह है ये पक्षी 70 प्रजातियों के हैं।
ऐसे होती है बर्ड वाचिंग:
-प्रवासी पक्षियों की निगरानी के तहत सुबह, दोपहर और शाम अलग-अलग समय में फोटोग्राफी की जाती है, इसी फोटोग्राफी के आधार पर बाद में प्रजातियों को वेरीफाई किया जाता है।
-उंचाई वाले निर्माण, ऊंचे पेड़ से लेकर जहां ज्यादा संख्या में पेड़-हरियाल और पानी की उपलब्धता रहती है, वहां भी निगरानी रखी जाती है।
सुरक्षित स्थान पर ही बनाते हैं बसेरा
शहर के आसपास आने वाले यह विदेशी महमान चुनिंदा जगहों को ही अपना ठिकाना बनाते हैं। यह पक्षी शांति प्रिय इलाकों में रहना पसंद करते हैं। इनकी सबसे खास बात यह है कि जिस स्थान पर यह रह रहे हैं वहां इन्हें किसी भी तरह का खतरा महसूस होता है तो वे अपना ठिकाना तुरंत बदल देते हैं। इसके बाद लौटकर वे खतरे भरे स्थान पर नहीं आते। यह खतरा चाहे इंसान के रूप में हो या फिर जानवरों के रूप में।
जलाशयों के किनारे देख सकते हैं 70 प्रजाति के पक्षी
-लार्ज ईग्रेट, रैड वेटल्ड लेपविंग, ग्रीन बी ईटर, पीड मायना, स्कावेंजर वल्चर, ग्रे हेरान, कांब डक, शेल डक, ग्रेट कारमोरेंट, पिनटेल, डार्टर, रोज रिंग पैराकिट, साइबेरियन, इंडियन रोबिन, आसी क्राउन फिंग लार्क, रोज रिंग पैराकीट, ब्लैक नैक्ड स्टोर्क, वूली नेक्ड स्टोर्क, पेंटेड स्टोर्क, एशियन ओपनबिल, स्टोर्क, जेकाना, गरगेनी, ब्लैक स्टोर्क, रेड हेडेड, बंटिंग, ब्लैक हेडेड, इंडियन स्कीमर के हैं।
मई के अंत में इनका प्रजनन शुरू होगा
मई के अंत में इनका प्रजनन शुरू होता है। ये अपना घोंसला खेत के टीले या पेड़ पर बनाते हैं। ये एक बार में 3 से 8 अंडे देती हैं। 27 से 30 दिनों में अंडे से बच्चे बाहर निकलते हैं। दो महीने के बच्चे उड़ान भरने लगते हैं।
इनका कहना है
शीतकालीन प्रवास पर विदेशी पक्षियों ने आमद दे दी है। तिघरा, रमौआ मेतीझल सहित अन्य जलाशयों पर विदेशी मेहमान देखे जा सकते है। बार हेडेड गूस नामक प्रजाति की यह बत्तख रूस, मंगोलिया और तिब्बत से आए हैं।
गौरव परिहार
पक्षी विशेषज्ञ