सिंधिया के दो शिष्य आमने-सामने, क्षत्रिय विरुद्ध ब्राह्मण हुआ मुकाबला
-ग्वालियर विधानसभा उप-चुनाव
ग्वालियर। प्रदेश की 28 सीटों पर होने जा रहे विधानसभा उपचुनाव में 15 ग्वालियर विधानसभा में राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो शिष्य आमने-सामने हैं। सिंधिया के कांग्रेस में रहते यह दोनों उनका झंडा थामकर चलते थे, किंतु सिंधिया के भाजपा में जाने पर मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर भी उनके साथ हैं और अब भाजपा के संभावित प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने सिंधिया के साथ नहीं जाने पर इनाम के रूप में सुनील शर्मा को प्रद्युम्न के मुकाबले उतारा है। वैसे भी सुनील शर्मा द्वारा लंबे समय से इस क्षेत्र से विधानसभा टिकट की मांग की जाती रही, किंतु सिंधिया की पहली पसंद प्रद्युम्न सिंह रहने के कारण सुनील को हर बार पीछे हटना पड़ा। इस तरह 3 नवंबर को मतदान में प्रद्युम्न और सुनील आमने-सामने हैं दोनों ही अपने अपने हिसाब से जनसंपर्क में लगे हुए हैं वहीं इस चुनाव को क्षत्रिय विरुद्ध ब्राह्मण भी कहा जा रहा है।
उपनगर ग्वालियर के नाम से प्रसिद्ध ग्वालियर विधानसभा में व्यापक क्षेत्र आता है। वैसे यह सीट परंपरागत भाजपा का गढ़ रही है, फिर भी बाबू रघुवीर सिंह और दो बार प्रद्युम्न सिंह तोमर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजयी रहे हैं। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रद्युम्न सिंह तोमर दूसरी बार विजयी हुए। उन्होंने भाजपा के जयभान सिंह पवैया को लगभग 21 हजार मतों से हराया। दूसरी बार विजई हुए तोमर को कमलनाथ मंत्रिमंडल में स्थान मिला और उन्हें खाद्य विभाग सौंपा गया। इस दौरान वे कीचड़ युक्त नदी नालों में उतरे और गंदे पानी के खिलाफ भी खूब हाथ-पैर मारे। इसी तरह सुनील शर्मा भी विपक्ष में रहती संघर्षशील रहे। यदा-कदा मोती महल का घेराव भी उन्होंने किया। कोरोना काल में जब लोग बेरोजगार होकर घर बैठे थे तब प्रद्युम्न सिंह तोमर ने भोजन, खाद्य सामग्री और मास्क का वितरण कराया वहीं सुनील शर्मा भी सीमित संसाधनों के बावजूद सेवा कार्य में जुटे रहे। दल बदल के बाद प्रदुम्न सिंह तोमर ने भाजपा संगठन से मेल मिलाप कर सक्रियता बढ़ाई। वही सुनील शर्मा के साथ युवा टीम तो है किंतु वरिष्ठ कांग्रेसियों को साथ लेना उनके लिए बड़ी चुनौती भी है। क्योंकि हाल ही में वरिष्ठ नेता अशोक शर्मा टिकट न मिलने से खफा होकर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं।
यह है भौगोलिक स्थिति
ग्राम बदनापुरा, रेशमपुरा, शंकरपुर, बहोड़ापुर, मोतीझील, आनंद नगर, विनय नगर, यातायात नगर, रामाजी का पुरा, घासमंडी, चंदनपुरा, कोटेश्वर, शब्द प्रताप आश्रम, नौगजा रोड, लक्ष्मणपुरा, पड़ाव, गांधीनगर, तानसेन नगर, लोको, हजीरा, चार शहर का नाका, बिरला नगर, लूटपुरा रानीपुरा कांच मिल आदि।
जातिगत गणित-
क्षेत्र में क्षत्रिय 45 से 50 हजार, ब्राह्मण 40 से 45 हजार, मुस्लिम 20 हजार वैश्य 15 हजार, दलित 60 हजार, पिछड़ा वर्ग 70 हजार। जिसमें यादव, शिवहरे, किरार शामिल हैं।
लोकसभा में कांग्रेस 53 हजार से हारी
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के विवेक नारायण शेजवलकर ने कांग्रेस के अशोक सिंह को पराजित किया था। जिसमें ग्वालियर विधानसभा से श्री सिंह को आठ विधानसभाओं में सबसे अधिक 53,857 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। जबकि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह तोमर को 92,055 मत मिले थे। जबकि भाजपा के जयभान सिंह पवैया को 71,011 मत प्राप्त हुए। इस तरह तोमर की जीत का आंकड़ा 21,044 रहा।
क्या है दोनों के समक्ष चुनौतियां
क्षेत्र में प्रद्युम्न सिंह तोमर द्वारा अस्पताल, विद्यालय आदि के क्षेत्र में कार्य कराए गए हैं। जबकि सड़कों की जीर्णशीर्ण हालत बरकरार है। उन्हें जनता के बीच बिकाऊ शब्द का भी सामना करना पड़ा है। जेसी मिल के आवासों का मालिकाना हक दिलाना भी एक बड़ी समस्या है। किंतु भाजपा संगठन और सिंधिया के प्रभाव का लाभ है। उन्हें तीन चुनाव लडऩे का अनुभव है। जबकि सुनील शर्मा पहली बार कोई बड़ा चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए कांग्रेस संगठन और स्वयं की टीम को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती है।
जनसेवक हूं, जनता का समर्थन मिला: प्रद्युम्न
स्वदेश से चर्चा में मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर कहते हैं कि वह जनता के सेवक हैं और जनसेवक की तरह क्षेत्र में पूरे समय मौजूद रहते हैं। उनके द्वारा समय-समय पर उठाई गई समस्याओं के कारण ग्वालियर को कई सुविधाएं मिलना शुरू हुई है। चूंकि भाजपा बड़ा संगठन है और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी प्रभाव है, इसलिए उनके सामने कोई भी प्रत्याशी हो उसे वह कोई चुनौती नहीं मानते, जनता सब जानती है।
धोखा देने वालों को जनता नहीं बख्शेगी: सुनील
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शर्मा कहते हैं कि जिस तरह से कमलनाथ की सरकार गिराकर लोकतंत्र की हत्या की गई और विधायकों की खरीद-फरोख्त हुई उसे सबने देखा है, इसलिए जनता ऐसे लोगों को नहीं बख्शने वाली। जनसेवक के नाम पर सिर्फ नौटंकी ही की गई है, उपनगर ग्वालियर में विकास का कोई कार्य नहीं हुआ।