ग्वालियर जिले की 3 विधानसभा सीटों का चुनावी ब्यौरा, किस चुनाव में किसका पलड़ा रहा भारी, जानिए
ग्वालियर। प्रदेश में रिक्त 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ चुनावी बिगुल फूंक चूका है।प्रदेश में ये पहला मौका है जब इतनी अधिक सीटों पर उपचुनाव हो रहे है। चुनाव आयोग की घोषणा के बाद 3 नवंबर को मतदान एवं 10 नवंबर को चुनावी परिणाम घोषित होंगे। साल 2018 के आम चुनावों के बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी के विधायकों, मंत्रियों ने क्षेत्र में विकास ना करने और जनता से वादा खिलाफी का आरोप लगा कमलनाथ सरकार का साथ छोड़ दिया था। सभी 22 विधायक राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद तीन और विधायकों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। वहीं दो कांग्रेस और एक भाजपा विधायक के निधन से भी तीन सीटें खाली हुई है। जिन पर अब उपचुनाव हो रहे है।
ये उपचुनाव दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस के लिए बेहद मह्तवपूर्ण है, क्योकि कांग्रेस सभी सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की राह तलाश रही है।वहीँ भाजपा के सामने सीटें जीतकर सरकार स्थाई बनाने की चुनौती है। विधायकों के इस्तीफे से सर्वाधिक ग्वालियर-चंबल अंचल में 16 सीटें रिक्त हुई है। इसलिए दोनों ही दल इन सीटों पर विशेष नजर बनाये हुए है।जिसमें ग्वालियर जिले की तीन विधानसभा सीटें भी शामिल है। इन सीटों पर अब तक के चुनावों में क्या स्थिति रहीं है, देखिये -
1. ग्वालियर विधानसभा -
ग्वालियर विधानसभा सीट इस क्षेत्र की सबसे बड़ी हॉट सीट मानी जा रही है। इस सीट पर कुल 2.88 लाख मतदाता है। जिसमें 1.54 लाख पुरुष एवं 1.32 लाख महिला मतदाता है। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो यहां क्षत्रिय, ब्राह्मण एवं दलितों के वोट निर्णायक भूमिका निभाते है।
दोनों दलों का बराबर रहा कब्ज़ा -
ये सीट कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के पास बराबर रही है। 1957 से लेकर 2018 तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 1962, 1980, 1993, 2008 एवं 2018 मिलकर कुल पांच बार जीत चुकी है। वहीँ भाजपा ने भी 1985, 1990,1998, 2003,2013 मिलाकर 5 बार जीत दर्ज की है।
इसके अलावा 1957 और 1972 में सीपीआई के रामचंद्र, 1967 में जनसंघ से जे प्रसाद ,एवं 1977 में जनता पार्टी के जगदीश गुप्ता विजयी हुए है। यदि पिछले पांच चुनावों की बात करें तो तीन बार यहां भाजपा और दो बार कांग्रेस को सफलता मिली है। 1998 और 2003 में भाजपा के टिकट पर वर्तमान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यहां से जीत दर्ज कर विधानसभा की सीढियां चढ़ चुके है। इसके अलावा 2013 में पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2008 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर विधायक निर्वाचित हुए है।
भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार को दी चुनौती और बढ़ाई -
राजनीतिक फेरबदल के बाद भाजपा ने कांग्रेस को दी चुनौती और बढ़ा दी है। दरअसल, अभी हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक शर्मा के भाजपा में आने से भाजपा को फायदा हुआ है। भ भाजपा के संभावित उम्मीदवार मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का मुकाबला कांग्रेस के सुनील शर्मा और बसपा उम्मीदवार हरपाल सिंह मांझी से है। बता दें की भाजपा ने अभी उम्मीदवार के नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं की है लेकिन भाजपा नेताओं के पूर्व बयानों के आधार प्रद्युम्न सिंह तोमर का नाम तय है।
2. ग्वालियर पूर्व -
ग्वालियर जिले की दूसरी महत्वपूर्ण सीट है। साल 1977 के चुनाव में लश्कर पूर्व के नाम से अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 10 चुनाव हो चुके है। जिसमें 1980, 1985, 1990, 2003, 2013, 2018 के चुनावों में सर्वाधिक 6 बार भाजपा को जीत मिली है। वहीँ 1993, 1998 और 2018 के चुनावों में मिलाकर कुल 3 बार कांग्रेस को जीत मिली है। वहीँ 1977 के पहले चुनाव में सिर्फ 1 बार जनता पार्टी को सफलता मिली है।
वैश्य और ब्राह्मण वोट महत्वपूर्ण -
इस सीट पर कुल 3.10 लाख मतदाता है। जिसमें 1.66 लाख पुरुष एवं 1.43 लाख महिला मतदाता है। यदि इस सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो ये सीट वैश्य एवं ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है। जोकि प्रत्येक चुनाव में विजयी प्रत्याशी की जीत में अहम भूमिका निभाते है। यदि पिछले पांच विधानसभा चुनावों की बात करें तो तीन बार भाजपा और दो बार कांग्रेस को सफलता मिली है। 2003 और 2008 में भाजपा उम्मीदवार रहे पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा यहां से विधानसभा पहुंचे। 2013 में भाजपा के टिकट से पूर्व मंत्री मायासिंह ने जीत दर्ज की थी। वहीँ 1993 और 1998 के चुनाव में कांग्रेस नेता रमेश अग्रवाल विधायक निर्वाचित हुए। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर मुन्ना लाल गोयल पहली बार विधानसभा पहुंचे थे।
मुन्नालाल गोयल भी मार्च में हुए सियासी फेरबदल के बाद कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले विधायकों में शामिल है। पहली बार भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे मुन्नालाल के सामने कांग्रेस ने सतीश सिंह सिकरवार एवं बसपा ने महेश बघेल को मैदान में उतारा है।
3. डबरा -
ग्वालियर जिले की ये तीसरी रिक्त सीट है। 2008 से आरक्षित इस सीट पर पिछले तीन चुनावों से लगातार कांग्रेस उम्मीदवार रही मंत्री इमरती देवी का कब्जा रहा है। अब वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार भाजपा के टिकट से चुनावी मैदान में उतरेंगी। कांग्रेस द्वारा उनके रिश्तेदार को टिकट देने से इस सीट पर चुनावी मुकाबला बेहद रोचक हो गया है।
6 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा को मिली जीत -
1962 के चुनावों से अस्तित्व में आई इस सीट पर कांग्रेस 1962, 1972, 1985, 2008 , 2013 और 2018 मिलाकर कुल 6 बार जीत दर्ज कर चुकी है। वहीँ दूसरी ओर भाजपा को 1980, 1990, 1998 और 2003 के चुनावों कुल 4 बार जीत मिली है। जबकि 1967 में जनसंघ, 1977 में जनता पार्टी और 1993 में बसपा प्रत्याशी यहां से जीतकर विधानसभा जा चुके हैं।
2.06 लाख मतदाता करेंगे फैसला -
यदि इन उपचुनावों की बात करें तो 2.06 लाख मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। जिसमें 1.20 लाख पुरुष एवं 1.05 लाख महिला मतदाता शामिल है। इस सीट पर जातीय समीकरण बेहद मत्वपूर्ण माना जाता रहा है। यहां अनुसूचित जाति, रावत और कुशवाह मतदाताओं की संख्या अधिक है, जो किसी भी दल और प्रत्याशी का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाते है।अब तक के इतिहास में सर्वाधिक 72.17 प्रतिशत मतदान 2003 के चुनाव में हुआ है । सामान्यतः इस सीट पर 50 प्रतिशत होता आया है। ऐसे में इस बार कोरोना काल के बीच मतदान का घटता - बढ़ता प्रतिशत जीत में अहम भूमिका निभाएगा।
यदि पिछले पांच विधानसभा चुनावों के परिणाम देखें तो 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में लगातार तीन बार कांग्रेस को जीत मिली है। वहीँ इससे पहले 1998 और 2003 के चुनावों में वर्तमान प्रदेश सरकार में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भाजपा को विजय दिला चुके है। अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुई मंत्री इमरती देवी का मुकाबला कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुरेश राजे एवं बसपा प्रत्याशी संतोष गौड़ से है।