तिघरा कैचमेंट में अवैध उत्खनन: तथ्यों को झुठलाती जांच रपट, NGT में 10 मार्च को होगी सुनवाई

  • विरोधाभास से भरी है जांच समिति की रिपोर्ट
  • कैचमेंट क्षेत्र में 30 फीसदी जंगल हो चुका है नष्ट

Update: 2022-03-01 14:49 GMT

ग्वालियर। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण( एनजीटी )के आदेश पर ग्वालियर के सोनचिरैया परिक्षेत्र में जारी अवैध उत्खनन के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है।इस रिपोर्ट के अनुसार घाटीगांव रेंज में किसी प्रकार का अवैध उत्खनन नही किया जा रहा है।कलेक्टर,एसपी,डीएफओ एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यपालन यंत्री की सदस्यता वाली सँयुक्त जांच समिति की यह रिपोर्ट अपने आप में विरोधाभासी तथ्यों पर आधारित हैं।स्वदेश के पास मौजूद इस जांच रिपोर्ट में एक तरफ अभ्यारण्य क्षेत्र एवं इससे लगे इलाकों में किसी प्रकार की अवैध उत्खनन गतिविधियों से इंकार किया गया है वहीं दूसरे हिस्से में कतिपय मामलों को स्वीकार भी किया गया है कि कुछ स्थानों पर ऐसे गड्ढे नजर आते हैं।समिति प्रथम दृष्टया तो 2020 से किसी भी तरह के अवैध उत्खनन को खारिज करती है। वहीं उन मामलों से किनाराकशी भी करती है जो तत्कालीन डीएफओ श्री गौरव पल्लव द्वारा लिखित में उठाये गए थे।इन्ही बिंदुओं को आधार मानकर एनजीटी ने इस जांच समिति का गठन किया था।

35 खदानों का नवीनीकरण नही - 

जांच रिपोर्ट में घाटीगांव इलाके की पूर्व स्वीकृत 35 सफेद पत्थर खदानों की सूची सलंग्न की गई है जिनका नवीनीकरण कलेक्टर द्वारा शासन के निर्देश पर 2019 के बाद नही किया गया है।मज़ेदार बात यह है कि रिपोर्ट में जिन छह खदानों को वैध बताकर चालू बताया गया है उनकी सूची सलंग्न नही है। यानी यह छह खदान कहाँ संचालित है इसे लेकर रिपोर्ट में खुलासा नही हैं।

अवैध उत्खनन बंद फिर कारवाई किस पर- 

सँयुक्त जांच कमेटी ने जिस दृढ़ता के साथ अवैध उत्खनन को नकारा है उसे इसी रिपोर्ट में सलंग्न वन विभाग के उस पत्र से चुनौती मिलती है जिसमें घाटीगांव पर क्षेत्रीय वन अधिकारी द्वारा कार्रवाई का जिक्र किया गया है।18 जनवरी 2022 को अधीक्षक सोन चिड़िया अभ्यारण्य ने डीएफओ को लिखे पत्र क्रमांक 74 में स्वीकार किया है कि बर्ष 2020 एवं 2021 में कुल 384 वन अपराध दर्ज किए गए।384 घनमीटर फर्शी,पत्थर जप्तकर नष्ट किया गया।2124 औजार एवं 24 वाहन जप्त कर 80 ज्ञात एवं 316 अज्ञात प्रकरण भी दर्ज किये गए हैं।जाहिर है संयुक्त जांच कमेटी जिस तरह से इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के अवैध उत्खनन का दावा एनजीटी के समक्ष कर रही है वह इसी रिपोर्ट से खारिज हो जाता है।

उत्खनित गड्ढे है पर उत्खनन नही! - 

कमेटी ने स्थल परीक्षण के बाद जो पाया है उसके अनुसार पूरे क्षेत्र में बहुतायत सफेद पत्थर सतह पर ही उपलब्ध होने के कारण जगह जगह खनन से निर्मित गड्ढे तो नजर आते है लेकिन कोई व्यक्ति समिति को इन गतिविधि में शामिल नजर नही आता है।

लोंदपुरा और डांडा खिरक में अवैध उत्खनन - 

समिति एक तरफ किसी भी तरह अवैध उत्खनन को खारिज करती है वहीं पर्यवेक्षण के कॉलम 5 में बताया गया कि लोंदपुरा और डंडा खिरक गांवों में बड़ी संख्या में सफेद पत्थर जो बेचने के लिए तैयार किया हुआ माइनिग पिट्स के पास पाया गया है। जिसे वन विभाग द्वारा बकायदाअभियान चलाकर नष्ट किया गया है।यानी इन दोनों ही गांवों में सफेद पत्थर का अवैध उत्खनन खुद इस रिपोर्ट में होना पाया गया है।

मशीन से नही हाथों से उत्खनन हो रहा है - 

रिपोर्ट का मज़ेदार एवं अंतर्विरोध केन्द्रित तथ्य यह है कि बार बार माइनिंग पिट्स और फिनिश्ड पत्थर पाए जाने की बात स्वीकारी गई है।यहां तक कि पैरा 5 के उप पैरा 4 में माफिया के सरंक्षण में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा उत्खनन स्वीकार किया गया है लेकिन जोर इस बात पर दिया गया है कि हेवी मशीनरी से कोई उत्खनन नही हो रहा है।

पुलिस चौकी की आवश्यकता नकारी- 

ग्वालियर के पूर्व डीएफओ द्वारा अवैध उत्खनन रोकने के लिए तत्कालीन एसपी को लखनपुरा में पुलिस चौकी स्थापित करने के लिए पत्र लिखा था।एनजीटी ने इसी पत्र को संज्ञान लेते हुए संयुक्त जांच कमेटी की रिपोर्ट तलब की थी लेकिन अब मौजूदा डीएफओ की सदस्यता वाली समिति का मत है कि सोन चिड़िया अभ्यारण्य क्षेत्र को घाटीगांव,भँवरपुरा एवं तिघरा तीन पुलिस थाने कवर करते है इसलिए लखनपुरा में अवैध उत्खनन रोकने के लिए किसी नई पुलिस चौकी की आवश्यकता नही है।

35 खदानें बगैर मानक बंदी के बंद कर दी - 

अभ्यारणय क्षेत्र में 35 पत्थर खदानों के बंद करने की सूची सलंग्न है और दावा किया गया है कि जो गड्ढे और पत्थरों ढेर लगे हैं वे पुरानी खदानों के है जिनका नवीनीकरण नही किया गया है।महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि आदर्श नियमों के अनुसार जब कोई स्वीकृत खदान बंद की जाती है तो पट्टाधारक को चिन्हित एरिया समतल करके शासन को सुपुर्द करना होता है।इस पूरे क्षेत्र में मीलों तक गड्ढे बने है और इन्ही इलाकों में भारी मशीनरी से लगातार उत्खनन जारी है।पूर्व डीएफओ ने ऐसे लोगों के नाम तक तत्कालीन एसपी को लिखकर दिए थे जो जेसीबी और हितेची मशीनों से उत्खनन कर जंगल नष्ट कर रहे हैं।

10 मार्च को होगी एनजीटी में सुनवाई - 

एनजीटी की भोपाल बेंच इस मामले में अगली सुनवाई 10 मार्च को करने वाली है।मामले के पक्षकार ब्रजराज सिंह का कहना है कि रिपोर्ट समावेशी और व्यवहारिक नही है जिस दिन समिति ने स्थल परीक्षण किया है उस दिन की यथास्थिति रिपोर्ट में समाहित है।श्री सिंह सवाल उठाते है कि जब कोई समिति जांच के लिए जायेगी तब स्थानीय माफिया क्यों अवैध गतिविधियों में शामिल दिखेंगे।हकीकत यह है कि इस पूरे क्षेत्र में वनों का अंधाधुंध विनष्टीकरण जारी है।हमारा उद्देश्य केवल जंगलों को।बचाने का है जिसे वन विभाग नही कर पा रहा है।

गिरवाई और चक में स्टोन पार्क के लिए पत्थर कहाँ से आएगा?

एक जिला एक उत्पाद योजना के अंतर्गत ग्वालियर शहर के नजदीक गिरवाई एवं चक में स्टोन पार्क फेज 2 को स्वीकृति जिला प्रशासन ने हाल ही में जारी की है।इस पार्क में 170 स्टोन व्यवसाय करने वालों को प्लॉट उपलब्ध कराए जायेंगे।बड़ा सवाल यह है कि जब सफेद पत्थर के लिए चिन्हित क्षेत्र घाटीगांव में किसी भी नई पत्थर खदान को न तो स्वीकृत किया जा रहा है और 35 पूर्व खदानों के नवीनीकरण प्रस्तावों को भी निरस्त कर दिया गया है फिर इन स्टोन पार्क के।लिए सफेद पत्थर आएगा कहां से?

घाटीगांव कैचमेंट एरिया से जुड़ा है शहर का पेयजल - 

ग्वालियर की प्यास तिघरा जलाशय से बुझती है पिछले कई वर्षों से यह पूरा नही भर पा रहा है। कारण जलाशय के कैचमेंट क्षेत्र भितरवार, मोहना, घाटीगांव, बैराड़ में कम बरसात का होना। महानगरीय परिक्षेत्र में गुना, शिवपुरी, अशोकनगर की तुलना में पहले ही कम बरसात होती है। इसका मूल कारण पर्यावरणविदों की दृष्टि में जंगलों का अंधाधुंध कटाव है। नतीजतन ग्वालियर के ग्रामीण क्षेत्र में भूजल स्तर 1000 फीट तक गिर गया है।विशेषज्ञों का मत है कि अवर्षा और जंगल कटाव जैसी चुनौतियों से निबटने के लिए लक्ष्य केंद्रित जनभागीदारी की आवश्यकता है।

संरक्षित वन क्षेत्र में सर्वाधिक जंगल खत्म - 

तिघरा कैचमेंट क्षेत्र में पिछले दस वर्षों में लगभग 30 प्रतिशत सरंक्षित वन अवैध उत्खनन के चलते नष्ट कर दिया गया है।खासबात यह है कि यह सोन चिरैया अभ्यारण्य के रूप में अधिसूचित क्षेत्र है।सर्वाधिक विनाश घाटीगांव विकासखंड के गांवों में ही जारी है जिनमें लाडपुरा, बंजारा खिरक, भभरपुरा, लोंदपुरा, डांडा खिरक, जखोदा, लखनपुरा, भीलपुरा, तिघरा, चराई, दोरार, कुमाऊँखोरा, बरवाई, लोकन, धोगड़ा, गोलाई, चुलबुली, पारासारी,चबाई, बघटखेरा, आंतरी, तिलावली शामिल है ।इन आधा सैंकड़ा गांवों में एक दर्जन से अधिक वनाच्छादित पहाड़ अवैध उत्खनन के चलते गहरे गड्डो में परिवर्तित कर दिए गए है। इन पहाड़ों और जंगलों से खोदकर सफेद पत्थर निकाला जाता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह कि इस सरंक्षित वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार के उत्खनित पट्टा प्रतिबंधित हैं।

डीएफओ की लिखित स्वीकृति - 

डीएफओ ग्वालियर अभिनव पल्लव ने 8 जनवरी 2021 को अपने पत्र क्रमांक 21/276 में यह लिखित में स्वीकार किया है कि घाटीगांव रेंज में अवैध उत्खनन रिजर्व फारेस्ट में हो रहा है। ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक एवं कलेक्टर को लिखे इस पत्र में तत्कालीन डीएफओ ने एक सूची भी सलंग्न की जिसमें उन लोगों के नाम का उल्लेख है जो विभिन्न बीट में जंगलों के विनाश में लगे हैं।इसी पत्र के आधार पर एनजीटी ने जांच कमेटी गठित की थी।हालांकि यह भी तथ्य है कि डीएफओ के इस पत्र पर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक स्तर से कोई कारवाई अभी तक नही हुई न ही ताजा जांच रिपोर्ट में इस विषय को छुआ गया है बल्कि इसके जिक्र तक करने से कमेटी ने किनारा कर लिया।एक अन्य पत्र क्रमांक 276 मेंतत्कालीन डीएफओ ने गब्बर सिंह,सलीम खान,रुस्तम सिंह,बबलू गुर्जर,बीरबल यादव,बीरबल गुर्जर,देशराज गुर्जर के विरुद्ध कारवाई के लिए एसपी ग्वालियर को लिखा था इन सभी के विरुद्ध वन अधिनियम के तहत अनेक प्रकरण पहले से दर्ज है।

भितरवार-मोहना में बिगड़ेगी परिस्थितियां - 

ग्वालियर जिले के भितरवार विधानसभा के क्षेत्र करीब एक सैंकड़ा गांवों में आने वाले कुछ समय में पेयजल का ऐसा गंभीर संकट स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिसे समय रहते प्रबंधित नही किया गया तो परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर भी हो सकती है।संसद से लेकर विधानसभा और एनजीटी तक इस मामले में उठने के बाद अब सरकारी तंत्र सक्रिय हुआ है।अंधाधुंध वन कटाव और सरंक्षित वन क्षेत्रों में लगातार जारी अवैध उत्खनन ने आरोन,पाटई घाटीगांव,बरई,रानी घाटी,क्षेत्रों में जैव विविधता पर भी गंभीर खतरा खड़ा कर दिया है।क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पेयजल स्तर 800 से 1000 फिट तक जा पहुँचा है क्योंकि वनों के विनिष्टिकरण के चलते मोहना,भितरवार से लेकर श्योपुर तक सटे परिक्षेत्र में बर्षा का अनुपात भी पिछले एक दशक में लगातार गिरता जा रहा है नतीजतन तिघरा कैचमेंट क्षेत्र में अबर्षा से महानगर में भी पेयजल की किल्लत आम हो गई है।

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