धर्म जीने की कला सिखाता है

Update: 2020-09-09 00:45 GMT

ग्वालियर, न.सं.। दुुनिया में हर आदमी जन्म-मरण के आतंक से भयभीत है। यहां से जाने के बाद लौटकर आने का मतलब है, कि हम फिर मरने को आ गए। हम फिर ऐसे काम कर गए, इससे मरना पड़ेगा। मरने के लिए कुछ कलाएं सीखना जरूरी नहीं है। यह बात मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने मंगलवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सभागृह में व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि धर्म हमेशा जीने की कला सिखाता है। मरने की नहीं, मरना अधर्म सिखाता है। हर आदमी का सपना जीने का ही है। मुनिश्री ने कहा कि माता-पिता बच्चों के जन्म के साथ ही होते हैं, कर्म के नहीं। जीवन के सुख-दुख का हिसाब उन्हें पूरा करना पड़ेगा। 

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