सर्वार्थसिद्धि योग एवं मृगशिरा नक्षत्र में मानेगा करवाचौथ
करवाचौथ का चांद चार नवंबर को 8.12 बजे निकलेगा
ग्वालियर, न.सं.। करवाचौथ का त्यौहार आने वाला है। हिन्दू धर्म में सुहागन महिलाओं के लिए इस पर्व का विशेष महत्व होता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार करवाचौथ हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि यह दीपावली के 10 या 11 दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को चंद्रमा की पूजा करने के बाद व्रत खोला जाता है। इस बार करवाचौथ का चांद चार नवंबर को रात्रि 8.12 बजे निकलेगा। इस दिन करवाचौथ सर्वार्थसिद्धि योग एवं मृगशिरा नक्षत्र में मनाया जाएगा जो सभी के लिए बेहद ही सुखदायक होगा।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा के अनुसार चार नवंबर को सुबह तीन बजकर 24 मिनट पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सर्वार्थसिद्धि योग एवं मृगशिरा नक्षत्र में प्रारंभ हो रहा है। चतुर्थी तिथि का समापन पांच नवंबर को सुबह 5 बजकर 14 मिनट पर होगा। चार नवंबर को शाम 5 बजकर 34 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त है। इसी के दौरान आप पूजा कर लें। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानि करवाचौथ के दिन महिलाएं यह व्रत अपने पति के प्रति समर्पित होकर उनके लिए उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं जन्म-जन्मांतर तक पुन: पति रूप में प्राप्त करने के लिए मंगल कामना करती हैं।
करवाचौथ के दिन मिट्टी के करवा में जल भरकर पूजा में रखना बेहद शुभ माना गया है और इसी से रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत रखने वाली महिलाएं चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही जीवनसाथी के हाथ से जल ग्रहण करती हैं। चार नवंबर को चंद्रोदय का समय शाम को 8 बजकर 12 मिनट पर है। यह व्रत सूर्योदय से पहले और चंद्रोदय पर रखा जाता है। चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोला जाता है। चंद्रोदय से पूर्व संपूर्ण शिव परिवार, शिव जी, मां पार्वती, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी का पूजा की जाती है। पूजा के वक्त पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। चंद्रमा के पूजन के बाद पति को छलनी में से देखें। इसके बाद पति पानी पिलाकर पत्नी के व्रत को तोड़ती है।