ग्वालियर। मध्य प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा के संपन्न चुनाव में कई सीटों पर चौंकाने वाले परिणामों के कयास व्यक्त किए जा रहे थे। इनमें ग्वालियर -चंबल संभाग की भी एक दर्जन सीटें शामिल थीं। जब परिणाम सामने आए तो अनेक विधानसभा सीटों के परिणाम चौंकाने वाले ही आए। इनमें अंचल की भितरवार सीट भी शामिल रही। यहां भाजपा के नए उम्मीदवार मोहन सिंह राठौड़ की गुगली को कांग्रेस के दिग्गज लाखन सिंह समझ नहीं आ पाए और बोल्ड हो गए। प्रदेश विधानसभा के चुनाव में ग्वालियर -चंबल संभाग की एक दर्जन सीटों पर चौंकाने वाले परिणाम के कयास राजनीतिक विश्लेषक व्यक्त कर रहे थे। भाजपा की ओर से नए उम्मीदवार मोहन सिंह राठौड़ को मैदान में उतारा गया था तो कांग्रेस ने अपने दिग्गज लाखन सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा।
कांग्रेस उम्मीदवार , भाजपा के उम्मीदवार को बहुत हल्के में ले रहे थे। अहंकार के साथ वह अतिआत्मविश्वास से भी लवरेज थे। उनका अहंकार प्रचार अभियान में देखने को भी मिल रहा था । इसकी पुष्टि उनके इस कथन से भी हो रही थी जिसमें वह कह रहे थे कि मोहन को तो कलेऊ पर घर भेज देंगे। यही अहंकार और क्षेत्र में उनकी निष्क्रियता, क्षेत्र का विकास न करा पाना भी उनकी हार का सबब बने। लाडली लक्ष्मी योजना, मोदी की गांरटी और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मोहन सिंह के लिए सघन प्रचार भी मोहन सिंह की जीत का कारण बन गए।
जीत के प्रति आश्वस्त थे लाखन
भितरवार विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर पांचवी बार मैदान में लाखन सिंह यादव चुनाव मैदान में उतरे। वह पूर्व में कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहे और लगातार तीन चुनाव जीतने से अहंकार से भी भर गए। इसके पूर्व लाखन सिंह 1990 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और भाजपा के अनूप मिश्रा से हार गए थे। वर्ष 1993 में भी वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और कांग्रेस के बालेन्दु शुक्ल ने उन्हें हराया था। वर्ष 1998 में लाखन सिंह तीसरी बार बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत का सेहरा उनके सिर बंधा। वर्ष 2003 में वह बसपा की जगह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े तब भाजपा के बृजेन्द्र तिवारी ने उन्हें पराजित किया था। उस चुनाव में मोहन सिंह राठौड़ कांग्रेस से बगावत कर बसपा से चुनाव लड़े और 19,778 मत हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे थे। उसके बाद लगातार वर्ष 2008, 2013 व 2018 में लाखन सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते आ रहे थे। वह वर्ष 2023 में जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे। वह भाजपा उम्मीदवार मोहन सिंह को बहुत हल्के में ले रहे थे । इसकी वजह 2003 में मोहन सिंह की भितरवार सीट पर बुरी तरह से हार और उसके बाद क्षेत्र में निष्क्रियता भी कारण थी तो लगातार जीत से भी लाखन अति आत्मविश्वास से भरे हुए थे।
मोहन सिंह की अपनी बिसात
केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होने के साथ ही मोहन सिंह ने चुनाव को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। दरअसल जब कांग्रेस के डेढ़ दर्जन से अधिक विधायक कांग्रेस की कमलनाथ सरकार से विद्रोह कर बैठे और प्रदेश के बाहर डेरा डाला तब मोहन सिंह काफी सक्रिय रहे और तत्कालीन मंत्री इमरती देवी के साथ थे। इस एपिसोड में सिंधिया के और नजदीक पहुंचने का मौका मोहन सिंह को मिल गया, इससे वह टिकट को लेकर आश्वस्त थे। वहीं भाजपा की ओर से भी पुराने नेताओं में से वहां किसी की गंभीर दावेदारी नहीं थी। पूर्व विधायक बृजेन्द्र तिवारी की भी भाजपा में निष्क्रियता थी। आखिर में मोहन सिंह को टिकट मिलते ही लाखन सिंह अपनी जीत तय मान बैठे। लेकिन मोहन सिंह की अपनी तैयारी थी और उनकी बिसात पर लाखन सिंह गच्चा खा गए और चुनाव में 22,444 मतों से पराजित हो गए।
बदल गए जातीय समीकरण भितरवार विधानसभा सीट पर
पिछले चुनाव आंकड़े अगर देखें तो ब्राह्मण और पिछड़ों का परचम यहां फहरता रहा है। वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर विष्णुदत्त तिवारी यहां से विधायक बने। उसके बाद अनूप मिश्रा, बालेन्दु शुक्ल और बृजेन्द्र तिवारी यहां से चुनाव जीते। ब्राह्मण वोट जब यहां बंटा तो पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार को इसका लाभ मिला। यही वजह रही कि लाखन सिंह एक बार बसपा के टिकट पर तो तीन बार कांग्रेस के टिकट पर यहां से विधायक का चुनाव जीतने में सफल रहे थे। जातिगत हिसाब से यहां ब्राह्मण मतदाता करीब 32,000 से 35,000 हजार हैं। वहीं क्षत्रिय मतदाता 10,000 के लगभग हैं। इसके बाद किरार, बघेल, रावत , गुर्जर , मुस्लिम और आदिवासियों की अच्छी खासी आबादी है। यहां कुशवाह , बघेल , रावत और गुर्जर उम्मीदवार अलग -अलग चुनाव में अलग -अलग दलों से चुनाव लड़े और 20,000 से 25,000 तक मत हासिल करने में सफल रहे थे। इस साल हुए चुनाव में भी लाखन सिंह को उम्मीद थी कि क्षत्रिय वोट यहां कम हैं और ब्राह्मण वोट भाजपा द्वारा टिकट न देने से नाराज है सो यह वोट उन्हें मिलेगा। इसके अलावा किरार, मुस्लिम , रावत ,कुशवाह ,गुर्जर समाज से भी उन्हें वोट मिलेंगे सो वह अपनी जीत सुनिश्चित मानकर चल रहे थे और अहंकारभरी बातें वे सार्वजनिक तौर पर कर रहे थे।
सीधे संवाद से मोहन ने जीता मन
भितरवार सीट से चुनाव लडऩे का मन मोहन सिंह ने पहले ही बना लिया था और वह तीन साल पहले से ही इस विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हो गए। घाटीगांव उनका गृह क्षेत्र भी इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है। वह गांव -गांव गए और चौपालों व चबूतरों पर बैठकर ग्रामीणों से सीधा संवाद किया। राठौड़ आम मतदाता के मन में यह बात बैठाने में भी सफल रहे कि लाखन सिंह ने तीन बार विधायक रहने के बाद भी क्षेत्र का विकास नहीं करा पाए। स्वेच्छा अनुदान राशि में जमकर भ्रष्टाचार किया । वहीं भाजपा सरकार में क्षेत्र के विकास का विश्वास दिलाया। आदिवासियों से लेकर रावत, गुर्जर, ब्राह्मण मतदाताओं का भरोसा जीता। वहीं लाड़ली बहना योजना, मोदी की गारंटी और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का उनके पक्ष में सघन प्रचार ऐसे कारण रहे कि मोहन सिंह की गुगली पर कांग्रेस के धुरंधर बल्लेवाज लाखन सिंह यादव क्लीन बोल्ड हो गए।