जयारोग्य अस्पताल में सोर्स के अभाव में लाखों की मशीन खा रही धूल

कैंसर रोगियों को नहीं मिल पा रहा लाभ

Update: 2024-01-29 01:15 GMT

ग्वालियर, न.सं.। अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य चिकित्सालय में इन दिनों सोर्स के अभाव में लाखों रूपए की मशीन धूल खा रही है। जिस कारण कैंसर रोगियों को भी बेहतर उपचार के लिए परेशान होना पड़ रहा है।

दरअसल आज भारतीय महिलाओं में बच्चेदानी के मुख का कैंसर दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला एक कैंसर है, इसके साथ ही लोगो में आज खाने की नली, मुंह में कैंसर, गले के कैंसर सहित अन्दर के हिस्सों में होने वाले कैंसर के उपचार के लिए जयारोग्य चिकित्सालय में पहुंचते हैं। इसी के चलते कैंसर रोगियों को बेहतर उपचार मिल सके। इसके लिए शासन की ओर से वर्ष 2007 में करीब 80 लाख रुपए की एचडीआर ए.एम.सी कैंसर सिकाई की मशीन उपलब्ध कराई गई थी। लेकिन पहले उक्त मशीन एटोमिक एनर्जी रेगूलेटरी बोर्ड मुम्बई की आपत्ति के चलते शुरू नहीं हो सकी और जैसे तैसे वर्ष 2016 में दो टैक्नीशियन को कैंसर विभाग में पदस्थ कर मशीन को शुरू किया गया। लेकिन अब पिछले करीब चार वर्षों से उक्त मशीन धूल खा रही है। क्योंकि मशीन को चलाने के लिए जिस सोर्स की जरूरत होती है, वह पिछले चार वर्ष से नहीं मिल सका। ऐसे में कैंसर रोगियों को उपचार के लिए परेशान होना पड़ रहा है।

होलेन्ड से आता है सोर्स

मशीन को चलाने के लिए जिस सोर्स का उपयोग किया जाता है, वह होलेन्ड से आती है। अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि सोर्स हर तीन माह में बदलना पड़ता है। लेकिन होलेन्ड से सोर्स न आ पाने के कारण मशीन चालू नहीं हो पा रही है।

भोपाल कर दिया जाता है रैफर

जयारोग्य में पहुंचने वाले बच्चेदानी के मुख का कैंसर, मुंह में कैंसर, गले के कैंसर से पीडि़त किसी मरीज को शिकाई की जरूरत पड़ती है तो उसे भोपाल रैफर कर दिया जाता है। क्योंकि शहर के किसी भी निजी अस्पताल में उक्त मशीन नहीं है।

20 से 30 हजार होते हैं खर्च

इस मशीन से सिकाई कराने के लिए मरीजों को निजी चिकित्सालयों में 20 से 30 हजार तक खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन जो मरीज गरीब होते हैं, वह तो इस बीमारी के चलते मर ही जाते हैं।

समय पर हो उपचार तो बचाया जा सकता है

बच्चेदानी के मुख का कैंसर, मुंह में कैंसर, गले के कैंसर का अगर सही समय पर उपचार शुरू हो जाए तो इस बीमारी से बचा जा सकता है, लेकिन इस मशीन के बंद हो जाने के गरीब मरीजों का समय पर उपचार शुरू नहीं हो पाता और उनकी मौत हो जाती है।

सोर्स होलेन्ड से आता है, जिसकी डिमांड भी भेजी जा चुकी है। लेकिन सोर्स न आने के कारण मशीन बंद है।

डॉ. अक्षय निगम

अधिष्ठाता, गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय

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