राम मंदिर के लिए अंचल का भी बहा है लहू, हजारों की संख्या में कारसेवक गए थे अयोध्या
ग्वालियर, न.सं.। अयोध्या में भगवान श्रीराम जी के भव्य मंदिर की आधारशिला पांच अगस्त को रखी जा रही है। इस मंदिर के लिए देशवासी हिन्दुओं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी, तब जाकर यह सपना साकार होने जा रहा है। इसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी हुए, जिसमें ग्वालियर-चंबल अंचल की सहभागिता को कभी नहीं भुलाया जा सकता। भव्य राम मंदिर बनाने के लिए चलाए गए आंदोलन के दौरान वर्ष 1990 एवं 1992 के लिए ग्वालियर-चंबल अंचल के लहू का भी भरपूर योगदान रहा है। विश्व हिन्दू परिषद एवं राम जन्मभूमि आंदोलन न्यास के आंदोलन में इस अंचल से हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया था। इस दौरान कुछ लोग बलिदान हुए और तमाम कारसेवक घायल भी हुए। इस आंदोलन में मध्य प्रदेश से राजमाता विजयाराजे सिंधिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती एवं पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया मुख्य भूमिका में रहे। इनके खिलाफ सीबीआई जांच भी बैठी।
वर्ष 1990 एवं 1992 में हुए आंदोलन की बात करें तो 1990 में मध्यप्रदेश से करीब 36 हजार कारसेवकों ने अयोध्या के लिए कूच किया था, जिसमें ग्वालियर-चंबल अंचल के करीब आठ हजार कारसेवक शामिल थे। कारसेवकों की दो टुकडिय़ा बनाई गईं थी, जिसमें से एक को गुप्त वाहिनी तो दूसरी को खुली वाहिनी नाम दिया गया था। अंचल से जब कारसेवकों की टुकडिय़ां अयोध्या के लिए कूच कर रहीं थीं तो तत्कालीन उत्तरप्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने उन पर जमकर जुल्म ढहाए। इन लोगों को रोकने के लिए झांसी में लक्ष्मीबाई व्यायाम शाला में अस्थाई जेल बनाकर कैद कर दिया गया। यहां पर कारसेवकों के साथ मारपीट की गई। जिसमें से कारसेवक जगतप्रकाश अग्रवाल की मौत हो गई थी। वहीं दूसरी टुकडिय़ों को इटावा में रोक दिया गया। इसके अलावा कारसेवकों को रोकने के लिए चंबल नदी के पास अस्थाई दीवार बनाई गई थी, जिसे कारसेवकों के उत्साह ने ढहा दिया था। इस वजह से कुछ कारसेवक गिरकर घायल भी हुए थे। सरकार के रोकने के बावजूद कुछ कारसेवकों का जत्था अयोध्या पहुंच गया था और आंदोलन में शामिल हुआ। मध्यप्रदेश के कारसेवकों के साथ कलकत्ता के कोठारी बंधु पुलिस की गोलियों का शिकार होकर बलिदान हुए। जिसमें से एक ने तो सीधे भगवान श्रीराम का नाम लेकर छाती पर गोली खाई। इस पूरे आंदोलन में ग्वालियर-चंबल अंचल के कई कारसेवक घायल हुए। वहीं 1992 में हुए आंदोलन की बात करें तो दूसरी बार ग्वालियर-चंबल अंचल से हजारों की संख्या में कारसेवकों का जत्था अयोध्या के लिए रवाना हुआ। टुकडिय़ों के रूप में यह जत्थे अयोध्या पहुंचे और कारसेवा में शामिल रहे। इस दौरान मंच से उद्घोषणा के समय राजमाता विजयाराजे सिंधिया, जयभान सिंह पवैया, ध्यानेंद्र सिंह भी वहां मौजूद थे।
आंदोलन में बेहद नजदीकी से जुड़े रहे पवैया
प्रखर हिन्दूवादी नेता के रूप में ख्याति पाने वाले बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया अयोध्या आंदोलन से बेहद नजदीकी से जुड़े रहे। उन्होंने 1990 और 1992 की कारसेवा में हिस्सा लिया। यही कारण है कि ढाचा ढहने के मामले में उन पर मुकदमा भी चला। उन्होंने बताया कि 1992 में विवादित ढ़ाचा ढहने के बाद वह आठ दिसंबर को ग्वालियर आए। सीबीआई ने अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी आरोपी बनाया। इस सिलसिले में उनके चीनौर स्थित पैतृक निवास के अलावा माधौगंज स्थित निवास पर भी सीबीआई ने छापामारी कर पांच घंटे तक तलाशी की। इस दौरान टीम डायरी सहित महत्वपूर्ण दस्तावेज ले गई। बाद में सात दिसंबर 1993 को उन्हें लखनऊ में न्यायालय में हाजिर होने को कहा गया। वहां इस मामले से जुड़े 36 आरोपी पहुंचे, जिसमें से सात आरोपियों ने बिना शर्त जमानत लेने से मना कर दिया। इनमें श्री पवैया भी प्रमुख थे। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लखनऊ जेल में बंद कर दिया गया। इसके बाद माताटीला, झांसी और बाद में बनारस की चुनार के पीपरी विश्राम ग्रह की अस्थाई जेल में रखा गया। बीस दिसंबर को बिना किसी शर्त के उनकी रिहाई हुई। सीबीआई जांच के चलते जुलाई माह में लखनऊ में उनके बयान दर्ज किए गए।
भिण्ड के पुत्तू बाबा एवं सतपाल हुए बलिदान
अंचल के कारसेवकों को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने चंबल पुल पर पक्की दीवार खड़ी कर दी। जब यहां के लोगों ने पक्की दीवार को ध्वस्त कर उत्तर प्रदेश की सीमा के इटावा जिले में घुसने की कोशिश की तो सरकार के इशारे पर अश्रु गोले और गोलीबारी की गई, जिसमें सत्यपाल नाम का एक व्यवसायी बुरी तरह जख्मी हुआ, जिसकी बाद में मौत हो गई। आधा सैकड़ा से अधिक लोग घायल हुए, जिसमें कोकसिंह नरवरिया, उपेन्द्र भदौरिया, रामसिया शाक्य इत्यादि को गोलियों के छर्रे लगे थे, इनमें रामसिया शाक्य नाम का व्यक्ति गोली लगने से घायल हुआ था, वह आज भी विकलांगता का जीवन जी रहा है। पुलिस ने बर्बरता पूर्ण लाठीचार्ज करते हुए बेरहमी से लोगों की पिटाई की और कई वाहन जला दिए, जिसमें एक तिली व्यापारी की मोटर साइकिल को ही जला दिया था। इन कारसेवकों में भिण्ड से बलिदानी दस्ता भी गया था।
कारसेवा में भदौरिया ने भी निभाया कर्तव्य
1990 के आंदोलन में प्रांत कारसेवा प्रमुख रहे नरेंद्र पाल सिंह भदौरिया भी इस आंदोलन से 1985 से जुड़े रहे। भगवान श्रीराम के लिए उन्होंने भी लंबी लड़ाई लड़ी। अब भगवान श्रीराम के मंदिर के लिए भूमिपूजन का स्वप्न देखा था वह पूरा होने जा रहा है।