निर्माण कार्य अधूरा होने से नहीं बढ़ सकीं एमबीबीएस की सीटों
पीआईयू के जिम्मेदारों की मनमानी, नवनिर्मित भवन हो रहे खंडर
ग्वालियर, न.सं.। गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में निर्माण अधूरा होने के कारण जहां एमबीबीएस की 250 सीटें जहां नहीं हो सकी हैं। वहीं करोड़ों खर्च कर बनाए गए भवनों में धूल उडती दिखाई दे रही है।
दरअसल महाविद्याल में 250 सीटों की वृद्धि के लिए शासन द्वारा वर्ष 2017 में निर्माण कार्यों के लिए 112 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति पद्रान की थी। इसमें केन्द्र शासन द्वारा 60 प्रतिशत व राज्य शासन द्वारा 40 प्रतिशत राशी उपलब्ध कराई गई है। राशि स्वीकृत होने व एमसीआई की गाईडलाइन के अनुसार निर्माण कार्य हो। इसके लिए शासन द्वारा आर्कीटेक्ट मैसर्स आर्ची गु्रप की नियुक्ति की गई थी। इसके बाद पीआईयू द्वारा जे.पी. इन्फास्ट्रेक्चर प्रा.लि. राजकोट गुजरात को 22 फरवरी 2017 में कार्य आदेश प्रदान किए और निर्माण कार्य 24 महिनों में पूरा किया जाना था। जे.पी. इन्फ्रास्ट्रेक्चर द्वारा महाविद्यालय की 250 सीटों के लिए अकेडमिक भवन, एक गल्र्स, एक बॉयज व दो इंटर्न हॉस्टल तैयार किए गए। इसमें अकेडमिक भवन में लेक्चर थिएटर, रीडिंग व एक्जाम हॉल तैयार हो चुका है। लेकिन इसमें 10 प्रतिशत से अधिक स्टील, कॉन्क्रीट आदि की मात्रा में बढ़ोत्तरी की गई, जिससे फंड समाप्त हो गया और इसमें 25 करोड़ की लागत से बनने वाला वॉर्डन ब्लॉक, एक लेक्चर हॉल, और महाविद्यालय का रिनोवेशन नहीं हो सका। इसके अलावा जो निर्माण कार्य किया गया है, उसे एमसीआई के नियम अनुुसार नहीं किया गया। इधर निर्माण कार्य पूरा न होने के कारण महाविद्यालय ने तैयार हो चुके भवनों को हेण्डओवर लेने से इंकार कर दिया है।
जिस कारण महाविद्यालय परिसर में कारोड़ों खर्च कर बनाए गए अकेडमिक भवन
खण्डर होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं भवन में चारों तरफ गंदगी तो पसरी ही हुई है। साथ ही खिडकियां सहित गेट तक टूट गए हैं। इसी तरह नवनिर्मित छात्रावासों में भी धूल उठती दिखाई दे रहे हैं। इस मामले में महाविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि पीआइयू द्वारा किए गए निर्माण कार्य में दस प्रतिशत से अधिक स्टील व कॉन्क्रीट की मात्रा बढ़ाने के लिए इजाजत नहीं ली जबकि नियमानुसार परमिशन लेना थी।
प्रतिमाह दे रहे दस लाख का बिल
इस मामले में सबसे मजेदार बात तो यह है कि पीआईयू द्वारा बनाई गई बिल्डिंगे भले ही महाविद्यालय को हेन्डओवर न हुई हों। लेकिन खाली बिल्डिंगों का प्रतिमाह दस लाख रुपए का बिल भी आ रहा है। जिसका भुगतान महाविद्यालय द्वारा ही किया जा रहा है।
फर्नीचर भी नहीं कराया उपलब्ध
शासन द्वारा निर्धारित किए गए 112 करोड़ के वजट में छह करोड़ रुपए फर्जीचर के लिए भी थे। लेकिन पीआईयू द्वारा अभी तक नवनिर्मित भवनों एक कुर्सी तक उपलब्ध नहीं कराई है। ऐसे में महाविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि जब तक फर्जीचर सहित अन्य सारे काम नहीं किया जाते तो वह भवन में सिफ्ट नहीं होंगे।
पुस्तकालय का भी बचा दस करोड़
इस मामले में सबसे बड़ी बात तो यह है कि शासन द्वारा महाविद्यालय में दस करोड़ की लागत से दो मंजिला पुस्तकालय का भी निर्माण किया जाना था। इसकी राशी भी अलग से उपलब्ध कराई गई थी। लेकिन बाद में पुस्तकालय का निर्माण भी नहीं किया गया और इसकी राशि का भी अभी तक कोई अता पता नहीं है।
अभी एमबीबीएस की 180 सीट
चिकित्सा महाविद्यालय के पास एमबीबीएस की 150 सीट थीं। जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए दस प्रतिशत सीटों का इजाफा करते हुए 150 से 180 सीटें की गईं। यह सींटें बढक़र 250 होना थीं जो अभी तक नहीं हो सकीं।
निर्माण कार्यों में क्या अनिमितताएं हुई हैं। इसकी मुझे जानकारी नहीं है। हमारे निर्देश में एक हजार बिस्तर का अस्पताल बन रहा है पूरी जानकारी आप परियोजना अधिकारी अष्टपुत्रे से ही लें।
बी.के. आरव
मुख्य अभियंता पीआईयू
जीआरएमसी प्रबंधन द्वारा बताए अनुसार ही हमारे द्वारा निर्माण कराया गया है। समय-समय पर उनके अधिकारी आते थे उसी के हिसाब से काम हुआ है। अब वह उसका इस्तमाल भी कर रहे हैं। जहां तक अलग से रिनोवेशन की बात है तो उसके लिए अभी तक राज्य शासन से 20 करोड़ रुपए मंजूर नहीं हुए हैं।
प्रदीप अष्टपुत्रे
परियोजना अधिकारी पीआईयू