MP Election 2023 : दक्षिण का बेटा बनने घर-घर दस्तक देते विधायक प्रवीण पाठक
- चंद्रवेश पांडे
ग्वालियर/वेब डेस्क। ‘नेता नहीं दक्षिण का बेटा’ राजनीति का यह अपने तरह का नया नारा है। यह नारा दिया है ग्वालियर दक्षिण से कांग्रेस के विधायक प्रवीण पाठक ने। हालांकि श्री पाठक इसे नारा नहीं मानते, और यह भी सही है कि इस नारे के बहाने नई राजनीतिक परंपरा को स्थापित करने का प्रयास कर भी रहे हैं। श्री पाठक कांग्रेस की अंदरुनी चुनौतियों से वाकिफ हैं। वह यह जानते हैं कि अपने ही दल में उन्हें ‘एलीट वर्ग’ का माना जाता है। कारण, विधायक का टिकट मिलने से पहले तक वह ग्वालियर में सक्रिय नहीं थे, इसलिए अपेक्षाकृत पिछड़ी पर भाजपा की मजबूत सीट पर उन्होंने दावा किया और भाजपा की फूट का लाभ उन्हें मिला वे यहां से विधायक चुन लिए गए। अब इस सीट पर अपने पांव जमाने के लिए इन दिनों वे पैंया-पैंया चल भी रहे हैं और बेटा बनकर जनता का आशीर्वाद लेने का प्रयास कर रहे हैं।
पाठक इसे चुनावी यात्रा नहीं मानते। पर, इसके माने सब जानते हैं। बकौल पाठक , वह अपने क्षेत्र के लोगों से दिल का रिश्ता बनाने के लिए निकले हैं और इसमें वह सफल हैं। शिलान्यास और भूमिपूजन से खुद को दूर रखकर किसी बेटे-बेटी या बुजुर्ग को आगे कर वह एक ऐसी परंपरा डाल चुके हैं जो उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी सोचने पर विवश करती है। मोदी जी के आव्हान पर दीप प्रज्जवल करना हो या सरस्वती शिशु मंदिर के भवन का विषय हो अपनी बात स्पष्ट रूप से करने और कहने का साहस रखने वाले प्रवीण अच्छे वक्ता भी हैं।
उनके अपने क्षेत्र में पदयात्रा उनको राजनीतिक रूप से लाभ देगी या नहीं यह भविष्य बताएगा, कारण उनको लेकर कोई नाराजगी है ही नहीं ऐसा भी नहीं है। बेशक उनके प्रयास बड़े प्रमाणिक हों, पर एक बड़ा वर्ग उन्हें अभी भी ‘बड़ा आदमी’ ही मानता है, और पार्टी के अंदर उनके विरोधी इसी बात को हवा भी देते हैं। अपनी पदयात्रा के दौरान प्रवीण पाठक घर-घर तक पैठ मजबूत करने के अपने इस अभियान को जनसंपर्क जैसा नाम देने से बचते हैं। वह कहते हें कि लोकतंत्र की एक प्रक्रिया के तहत चुनाव आते-जाते रहते हैं, लेकिन क्षेत्र में उनकी उपस्थिति में कोई अंतराल, अवरोध या अलाली नहीं हुई है।
बहरहाल, ग्वालियर दक्षिण की जनता से मुलाकात कर उनकी समस्याएं जानने, किसी भी घर के दरवाजे पर दस्तक देकर चूल्हे-चौके तक पहुंच बना लेने वाले प्रवीण पाठक का दिलों की गहराईयों को छू लेने वाला यह अंदाज लोगों को खूब भा रहा है। खुद को बेटा बताने का उनका नारा भी मशहूर हो चुका है। कांग्रेस के भीतर और बाहर सक्रिय उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी भी, नेताओं का तामझाम खूँटी पर टांग खुद को बेटा बताने की कवायद कर रहे हैं, लेकिन राजनीति के छिपे रुस्तम की तरह मतदाताओं के बीच पैठ बढ़ाने की अपनी इस मुहिम में प्रवीण पाठक कुछ ऐसी बड़ी लकीरें खींच रहे हैं, जिन्हें छोटा करना प्रतिद्वंद्वियों के लिए शायद मुश्किल है।
अम्मा को टॉफी खिलाने के बाद ‘आई लव यू’ कहलवा कर ही माने...
दक्षिण में वार्डवार जनसंपर्क कर रहे प्रवीण पाठक के कुर्ते की जेबें टॉफियों से भरी होती हैं। वे जब भी किसी बस्ती, मोहल्ले या चौबारे पर पहुँचते हैं और वहाँ उन्हें बच्चे नजर आते हैं, वे बच्चों को टॉफी बाँटने लगते हैं। घर के दरवाजे पर बैठे बुजुर्गवारों को भी टॉफी खिलाकर उनका मुँह मिठास से भर देते हैं। एक घर के बाहर बूढ़ी अम्मा बैठी थीं। प्रवीण ने पहले उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और फिर जेब से निकालकर उन्हें टॉफी खिलाई, अम्मा को अहसास नहीं था कि अब क्या होने वाला है। विधायक जी उनसे आई लव यू कहने की जिद पकड़ बैठे। शहर में रहने वालीं उम्रदराज अम्मा इन फिल्मी शब्दों का मतलब जानती थीं सो शरमा गईं लेकिन विधायक जी कहां मानने वाले थे, कहने लगे कि क्या अपने इस लाडले बेटे से आई लव यू नहीं कहोगी। अम्मा ने प्रवीण के सिर पर हाथ रखकर लजाते हुए आई लव यू कहा और भाव विभोर होकर विधायक जी उनके पैरों में लोट गए।
नाराज लोगों को मनाने का अंदाज भी अजब-गजब
अब जनता के बीच जा रहे हैं तो शिकायतें भी आएंगी और समस्याएं भी नजर की जाएंगी। वैसे भी ग्वालियर दक्षिण महानगर का सर्वाधिक अभावपूर्ण व समस्याग्रस्त क्षेत्र है जहाँ की पांच - दस बरस में सूरत बदलना किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए संभव नहीं है, फिर वह प्रवीण पाठक हों या फिर उनके पहले यहाँ से विधायक व मंत्री रहे नारायण सिंह, अनूप मिश्रा या फिर भगवान सिंह रहे हों। कुछ अपवाद छोडक़र हरेक जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के विकास के लिए जी जान से जुटता है लेकिन जनता की शिकायतों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। विधायक प्रवीण पाठक अपने क्षेत्र में जा रहे हैं तो स्वागत सत्कार और लाड़-दुलार के बीच उन्हें शिकायतों से भी दो-चार होना पड़ रहा है, ऐसी स्थिति में उनके चेहरे पर न शिकन पड़ती है और न ही वे झल्लाते हैं। शिकायत को सुनकर फौरन उसके निराकरण में जुट जाते हैं। हमने जो आँखन देखा, ज्यों ही वे एक बुजुर्ग की चरण वंदना के लिए झुके, बाबा बरस पड़े और क्षेत्र के पार्षद पर नाकारा होने का आरोप लगाते हुए नगर निगम से जुड़ी तमाम समस्याएं गिना दीं, यह भी कह दिया कि पार्षद जीतने के बाद से कभी यहां झांकने के लिए भी नहीं आया। प्रवीण पाठक ने इन बाबाजी को गले लगा लिया और उनका गुस्सा शांत करते हुए कहा - छोडि़ए पार्षद को, जब आपके सामने विधायक खड़ा है तो विधायक को अपनी समस्याएं बताइए, न दूर हों तो जो सजा दोगे, मंजूर होगी।
पिता पहले राजनीतिक गुरु, पचौरी ने दिलाई पहचान, अब नाथ के अलम्बरदार
प्रवीण पाठक ग्वालियर के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिताश्री सतीश पाठक तत्कालीन गिर्द विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की राजनीति के बड़े चेहरा रहे हैं। प्रवीण पाठक के पहले राजनीतिक गुरु तो उनके पिता ही हैं लेकिन पिता की छत्रछाया से इतर उन्हें कांग्रेस की राजनीति में खुद की व्यक्तिगत पहचान एवं प्रतिष्ठा प्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी से जुडऩे के बाद ही मिली। पचौरी जब मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष होते थे, उस वक्त प्रवीण पाठक उनकी किचिन कैबिनेट के मेम्बर माने जाते थे। यहां तक कि ग्वालियर निगम के चुनाव में पार्षदों के टिकट ही नहीं बल्कि कई विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी तय करने तक में प्रवीण पाठक की भूमिका रही। कांग्रेस के भीतर परिवर्तित हुए शक्ति संतुलन में अब उन्हें कमलनाथ के नजदीकी के रूप में जाना पहचाना जाता है। 23 के चुनाव में प्रवीण पाठक का टिकट रिपीट होने में फिलहाल तो कोई बाधा नहीं दिखती है क्योंकि दक्षिण क्षेत्र में उनकी पार्टी में फिलवक्त ऐसा कोई जनाधार वाला चेहरा दिखाई नहीं देता जो उनके टिकट को संकट में डालने की सामथ्र्य रखता हो।