पूरे पैसे देने के बाद भी 14 वर्ष में अभी तक नहीं मिली नवीन लोहा मंडी की जगह
ग्वालियर, न.सं.। वर्ष 2003 में शहर के यातायात दबाव को सरल बनाने के लिए नवीन लोहा मंडी की कल्पना की गई थी। इसके बाद प्रशासन द्वारा लोहा व्यवसायियों को चिरवाई पर जमीन दिखाई गई। व्यापारियों ने समय के हिसाब से ग्वालियर विकास प्राधिकरण को भूमि विकास हेतु 2.30 करोड़ रुपए की राशि जमा कराई गई। वर्ष 2009 में जब भूमि आवंटन के लिए कहा गया तो प्राधिकरण द्वारा आवंटन में आनाकानी की जाने लगी और भूमि की नई दरों के हिसाब से राशि की मांग की जाने लगी। यह बात पत्रकारों से चर्चा करते हुए ग्वालियर लोहा व्यवसायी संघ के अध्यक्ष संजय कट्ठल एवं सचिव निर्मल जैन ने संयुक्त रूप से कही।
श्री कट्ठल ने बताया कि इसके बाद सितम्बर 2013 में कैबिनेट बैठक में भूमि, लोहा व्यवसाई संघ को आवंटित करने की अनुशंसा की गई। उसी आरक्षित भूमि के कुछ भाग पर किसान द्वारा शासन के विरुद्ध एक प्रकरण न्यायालय में लगाया गया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी उसके पक्ष में निर्णय किया है। अभी शासन ने उसे भूमि आवंटित ना कर उसके खिलाफ न्यायालय में प्रकरण लगाया हुआ है। श्री कट्ठल ने बताया कि शेष विवादित भूमि के लिए हमने पुन: प्रयास किए थे। श्री कट्ठल ने बताया कि जब हमने अविवादित भूमि की मांग की तो ग्वालियर विकास प्राधिकरण द्वारा उस भूमि के लिए 8 करोड़ 80 लाख रुपए की मांग की गई जो अनुचित है। श्री कट्ठल ने बताया कि नवीन लोहा मंडी का प्रकरण 14 वर्षों से लंबित है। ऐसा होने से व्यापारी हतोत्साहित हैं और अपने व्यापार का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। श्री जैन ने कहा कि कैबिनेट में लोहा मंडी का प्रकरण दो बार आया और उसे मंजूर करके पास किया गया। उसमें साफ शब्दों में कहा गया कि व्यापारियों को पुरानी कीमत में जगह आवंटित की जाए लेकिन उसके बाद भी पैसे देने के बावजूद व्यापारी दर-दर की ठोकरें खा रहा है। अगर इस समस्या का निराकरण नहीं हुआ तो व्यापारी समाज सडक़ों पर उतरने के लिए मजबूर होगा। पत्रकार वार्ता में ओम प्रकाश अग्रवाल, गोविन्द मंगल, नरेंद्र छिरोलिया आदि उपस्थित थे।