जौरा विधानसभा : मूलभूत समस्याओं की अनदेखी करते राजनीतिक दल
राजनीतिक नेताओं ने कोरे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं दिया
जौरा, मुरैना। जिले की जौरा विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिए हर दल के नेताओं ने कोरे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं दिया। जौरा नगर, कैलारस और पहाडगढ़ क्षेत्र को अपनी विधानसभा सीमा में रखने वाले इस क्षेत्र में जातीयता के चलते विकास के मुद्दे बहुत दूर होते जा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों का चयन इसी आधार पर करते हैं कि उनकी जाति के कितने मत हैं। केवल यही कारण है कि क्षेत्र विकास की मुख्य धारा से कोसों दूर है। अगर क्षेत्र का मतदाता इस जातीयता की दीवार को गिराने का उपक्रम करे और विकास के लिए मतदान करे तो विकास की उम्मीद जग सकती है। इस बार के चुनाव में भी लगभग पूर्व जैसी ही स्थिति दिखाई दे रही है। आम जनता यही चिंतन कर रही है कि कौन प्रत्याशी किस जाति का है।
जौरा विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण अंचल तीन बड़े केंद्रों से जुड़े हैं, जिसमें प्रथम जौरा का नंबर आता है। दूसरे नंबर पर कैलारस और तीसरे नंबर पर पहाडग़ढ़ है। बात समस्यायों की की जाए तो तीनों क्षेत्र में अलग अलग मुद्दे हैं। जिसके निवारण की दिशा में गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि प्रत्येक चुनावों में यह मुद्दे उठते भी हैं, लेकिन यह मुद्दे केवल जुमले जैसे ही बनकर रह जाते हैं।
पेयजल समस्या भी है प्रभावी मुद्दा
जौरा नगर की बात की जाए तो यहां पेयजल आपूर्ति के लिए समीप बने पगारा बांध एक उम्मीद पैदा करता है, लेकिन लम्बे समय से योजनाएं बनते बनते कहीं ठहर जाती हैं, जिसके कारण पेयजल समस्या के समाधान का साधन होते हुए भी राजनेताओं का ध्यान इस ओर नहीं जाता। नगर में अभी तक पीने के पानी की आपूर्ति स्थानीय निकाय द्वारा की जाती है, लेकिन नगर की जनसंख्या के हिसाब से यह उपलब्धता अपर्याप्त होने लगी है, दूसरी बात यह भी है अभी उपलब्ध होने वाला यह पानी गुणवत्ता के मानकों पर खरा नहीं है, इसलिए पगारा बांध से पेयजल उपलब्ध कराना एक बड़ी मांग है।
पक्की सड़कों को तरसते पहाडग़ढ़ के गांव
जंगली क्षेत्र में गिने जाने वाले पहाडग़ढ़ के ग्रामीण अंचलों की स्थिति का अध्ययन किया जाए तो यहां विकास एक सपने जैसा ही लगता है। राजनीतिक दलों द्वारा भी यहां की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 50-50 किलोमीटर की पहाडग़ढ़-सहसराम और पहाडग़ढ़-मानपुर की सड़क स्वीकृत होने के बाद भी बनने की प्रतीक्षा कर रहीं हैं। आदिवासी क्षेत्र की भांति जीवन यापन करने वाले यहां के नागरिक अच्छी सड़क के अभाव में मुख्य धारा से कटा हुआ महसूस करते हैं। चुनावों के समय हर समय कोरे वादों से इस क्षेत्र की जनता छली गई है और छली जा रही है। इस क्षेत्र में पानी का संकट भी ग्रामीणों की परेशानी का कारण बना हुआ है। पथरीली भूमि होने के कारण गर्मी के दिनों में यह संकट और भी ज्यादा भयावह हो जाता है।
चुनावी एजेंडे बाहर है शक्कर कारखाना
तीन विधानसभा एवं इतने ही लोकसभा चुनावों में मुख्य चुनावी मुद्दा रहा कैलारस शक्कर कारखाना अब किसी भी दल के लिए कोई मुद्दा नहीं है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के प्रत्याशी शक्कर कारखाने पर बात करने से बच रहे हैैं। हालांकि क्षेत्र की जनता जरूर इस मुद्दे को समय-समय पर उछालती रहती है। जनता प्रत्याशियों से भी इस बात पर सवाल-जबाव करने से नहीं चूकती। उल्लेखनीय है कि कैलारस में स्थित शक्कर कारखाना पिछले कई साल से बंद पड़ा है। एक समय था कि यह कारखाना जौरा, कैलारस, पहाडग़ढ़ क्षेत्र के हजारों किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हुआ करता था। कारखाने की वजह से क्षेत्र के किसान गन्ने की खेती कर अच्छा लाभ प्राप्त करते थे। लेकिन इस कारखाने का ढर्रा ऐसा बिगड़ा कि फिर यह पटरी पर वापिस ही नहीं आ सका। अगर चुनाव की बात करें तो 2008 के विधानसभा चुनावों से लेकर 2018 तक के चुनावों तक यह प्रमुख चुनावी मुद्दा हुआ करता था। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सरकार बनने पर कारखाना चालू करने की बात चुनाव प्रचार के दौरान कही गई। संयोग से 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बन गई। लेकिन कांग्रेस सरकार ने कारखाने की फाइल को कभी उठाकर देखना भी मुनासिब नहीं समझा। प्रदेश की कमलनाथ सरकार द्वारा शक्कर कारखाना चालू करने के लिए किसी तरह के प्रयास नहीं किए जाने पर क्षेत्र के किसान भी नाराज हो गए। किसानों का कहना है कि भाजपा ही नहीं कांग्रेस ने भी शक्कर कारखाने को महज अपने राजनैतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। इस बात को लेकर इस क्षेत्र की जनता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से भी नाराज है।