रेलवे स्टेशन पर लाखों रूपए खर्च करके बनाए स्टॉल, एक ही उत्पाद दिखा रहे बार-बार
प्रचार-प्रचार की कमी के कारण नहीं आ रहे स्थानीय उत्पाद
ग्वालियर। रेलवे ने सामाजिक सरोकार का दायित्व निभाते हुए एक स्टेशन-एक उत्पाद योजना शुरू की है। इसके जरिए रेलवे ने स्टेशनों से लगे शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के कलाकारों के उत्पाद की ब्रांडिंग का काम किया। इसके लिए झांसी रेल मंडल ने 15 स्टेशनों को चुना। रेलवे ने हर एक स्टेशन पर पांच लाख रुपये खर्च करके स्थानीय उत्पाद को प्रदर्शित करने आकर्षक स्टॉल भी बनवाए। इसके बावजूद रेलवे न तो स्थानीय कलाकारों के उत्पाद की ब्रांडिंग में मदद कर सका और न ही स्टॉल पर रखने के लिए नए-नए उत्पाद तलाश सका। एक स्टेशन-एक उत्पाद योजना शुरू हुए लगभग 19 माह ही हुए हैं और हकीकत यह है कि ग्वालियर स्टेशन पर हर 15 दिन एक एक महीने में भी उत्पाद नहीं बदले जा रहे। एक ही उत्पाद को महीनों से स्टॉल पर सजाकर रखा गया है।
स्टॉल पर किए लाखों खर्च
एक स्टेशन-एक उत्पाद योजना को रेलवे बोर्ड ने शुरू कर इस पर खुद निगरानी रखी। रेलवे स्टेशन पर इस योजना के आकर्षक स्टॉल को रखने के लिए रेल मंडल के स्टोर विभाग ने लाखों रुपये खर्च भी किए। यहां तक की किसी तरह स्थानीय कलाकार और स्वयंसेवी संस्थानों के उत्पाद को स्टेशन तक लाया और स्टॉलों पर सजाया भी। पर जब कलाकारों को यहां अच्छा व्यापार और फायदा नहीं दिखा तो वे यहां से चले गए। इधर, अन्य उत्पाद न आने पर कई ने इसका फायदा उठाया और अपने उत्पाद को स्टॉल पर सजा दिया। यह उत्पाद महीनों से सजे हैं, जबकि एक कलाकार या स्वयंसेवी संस्थान को स्टाल पर अपने उत्पाद रखने के लिए सिर्फ 15 दिन का ही समय देना था।
15 दिन में दिया आवेदन, जमा लिया अधिकार
रेलवे स्टेशन पर खादी का स्टॉल लगा हुआ है। इस स्टाल में प्रदर्शित करने के लिए उत्पाद तलाशने में रेलवे असफल रहा। यहां पर हालात यह है कि एक ही कलाकार या स्वयंसेवी संस्था हर 15 दिन में रेलवे को अपना आवेदन और दो हजार रुपये शुल्क देकर महीनों से अपने उत्पाद यहां प्रदर्शित कर रहे हैं।
योजना की खामियां
- - असफलता की मुख्य वजह स्टॉल को रखने सही जगह का चयन नहीं किया गया।
- - कलाकारों से रेलवे के अधिकारी-कर्मचारी का सीधा संपर्क नहीं हुआ।
- - 15 दिन से एक माह तक ही समय कलाकार को उत्पाद रखने दिया गया।
- - कई नियम में आड़े आए, जिससे कलाकार इन स्टाल पर नहीं पहुंच सके।