गुमराह कर संभागीय आयुक्त से राजकमल टॉवर को कराया निजी
अपर आयुक्त का शासकीय भूमि दर्ज करने का आदेश पल्टा
ग्वालियर, न.सं.। शहर के एक चर्चित बिल्डर द्वारा बड़ी ही सूझबूझ के साथ अपनी शासकीय घोषित हो चुकी सम्पत्ति को निजी करने के लिए अपनाए गए नए-नए पैंतरों मेें आखिर वह सफल हो ही गया। उसके द्वारा संभागीय आयुक्त एमबी ओझा से गलत तथ्यों के आधार पर अपर कलेक्ट्रर द्वारा शासकीय घोषित की गई जमीन का आदेश अपास्त करा लिया है। चूंकि श्री ओझा का अगले माह सेवानिवृत्ति है, ऐसे में उन्होंने अपनी कलम इस आदेश में फंसा ली। जबकि दो आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग आवेदन देकर उन्हें पहले ही आगाह कर दिया था कि बिल्डर बेहद षड्यंत्रकारी है। उसके झांसे में न फंसे, फिर भी ओझा जाते-जाते यह विवादास्पद आदेश कर ही गए।
उल्लेखनीय है कि ओहदपुर के सर्वे क्रमांक 200 पर राजकमल बिल्डर के साझेदार कमल शर्मा द्वारा नए पंजीयन कार्यालय के सामने शासकीय भूमि पर एक टावर का निर्माण कर वहां 100 दुकानें बनाकर बेच दी गई हैं। किंतु इसकी समय-समय पर शिकायत होने के बाद नगर निगम ने अपनी जांच में भवन अनुज्ञा में लगे नक्शों में कूटरचित पाने पर तीन साल पहले तत्कालीन निगमायुक्त अनय द्विवेदी की पहल पर विश्वविद्यालय थाने में 420 का प्रकरण दर्ज कराया। इसके बाद तत्कालीन संभागीय आयुक्त बीएम शर्मा के पत्र पर अपर कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव ने इस समूचे मामले की विस्तृत जांच करने के बाद प्रकरण क्रमांक ०००६/2017-18/ निगरानी में 20 फरवरी 2019 को सर्वे क्रमांक 200 को शासकीय दर्ज करने के आदेश दिए। जिसमें उन्होंने इसे शासकीय मानते हुए अपना प्रतिवेदन जिलाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया। इसके बाद एसडीएम अनिल बनवारिया द्वारा 30 मई 2019 को प्रकरण क्रमांक 7/ 2018-19 में इस जगह को शासकीय दर्ज करने की कार्रवाई पूर्ण की गई। साथ ही 19 जून 19 को तहसीलदार द्वारा बाकायदा खसरे में संशोधन कराते हुए वहां शासकीय लिखवाया गया।
राजकमल टॉवर शासकीय घोषित होने के बाद इस प्रकरण में नजूल अनापत्ति को लेकर बिल्डर कमल शर्मा द्वारा संभागीय आयुक्त के यहां निगरानी प्रस्तुत की गई। जबकि दूसरी ओर यही मामला उच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 12822/2019 के तहत रिंकू भट्टाचार के जरिए विचाराधीन था। जिसे बिल्डर ने स्वदेश की खबर के बाद वापस ले लिया। क्योंकि उनके द्वारा न्यायालय में मामले की जानकारी संभागीय आयुक्त को नहीं दी गई थी। यहां मजेदार बात यह है कि संभागीय आयुक्त के निर्देश पर ही अपर कलेक्टर ने जांच कर इसे शासकीय घोषित किया था। ऐसे में तबादले की भनक लगने पर संभागीय आयुक्त एमबी ओझा द्वारा 18 सितम्बर 2020 को अपर कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव के आदेश को स्थिर योग्य न पाए जाने की बात कहकर अपास्त कर दिया। साथ ही यह भी जोड़ दिया कि प्रशाधीन भूमि के संबंध में यदि भविष्य में कोई भिन्न भू-अभिलेखीय आधार शासकीय भूमि होने संबंधी प्रमाणित हो तो ऐसी स्थिति में उक्त आधारभूत प्रमाण का सक्षम अधिकारी के द्वारा सूक्ष्म परीक्षणोपरांत एवं गिनरानीकर्ता को सुनवाई करते हुए गुण दोषों पर विधि संगत निर्णय लेने की वैद्यानिक स्वतंत्रता रहेगी।
इनकी आपत्ति नहीं सुनी
तत्कालीन संभागीय आयुक्त बीएम शर्मा के समय जब यह मामला चला तब आरटीआई कार्यकर्ता जितेन्द्र सिंह नरवरिया द्वार लेन-देन कर मामला निपटाने की शिकायत की गई थी। जिस वजह से श्री शर्मा ने इस निगरानी पर कोई आदेश नहीं किया। इसकी भनक लगने पर एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता संकेत साहू ने 18 अगस्त 2020 को संभागीय आयुक्त कार्यालय में बाकायदा एक आपत्ति दर्ज कराते हुए स्पष्ट किया था कि बिल्डर द्वारा आदेश पारित कराने के लिए मोटा लेन-देन किया जा चुका है। बावजूद इसके आयुक्त ने इस आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया।
इन्होंने निभाई मुख्य भूमिका
षड्यंत्रकारी बिल्डर द्वारा अवैध रूप से खड़े राजकमल टॉवर को बचाने के लिए काफी धन खर्च करना पड़ा। एक पत्रकार जो उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था, उन्होंने उसे ही लालच देकर साध लिया, तब इस आदेश को पास कराने में पत्रकार ने अहम भूमिका निभाई। जो अब चर्चा का विषय बना हुआ है।