सावधान: गलसुआ और चिकनपॉक्स के तेजी से बढ़ रहे मरीज

शासकीय से लेकर निजी अस्पतालों में प्रतिदिन पहुंच रहे 25 से अधिक मामले

Update: 2024-04-21 00:30 GMT

ग्वालियर। जिले में बढ़ती गर्मी के बीच जहां लोग मौसमी बीमारियों से परेशान हैं। वहीं अब गलसुआ और चिकन पॉक्स के मरीज लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं। शहर के निजी से लेकर शासकीय अस्पतालों में प्रतिदिन 20 से 25 मामले गलसुआ और चिकन पॉक्स के सामने आ रहे हैं। अंचल के सबसे बड़े जयारोग्य समूह के एक हजार बिस्तर के अस्पताल की बात करें तो यहां मेडिसिन ओपीडी में पिछले पन्द्रह दिनों से चिकन पॉक्स के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।

गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के मेडिसिन रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय पाल का कहना है कि ओपीडी में गलसुआ और चिकन पॉक्स के मरीजों में वृद्धि हो रही है और सबसे ज्यादा मरीज 16 से 40 वर्ष तक के सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि मप्स या गलसुआ से प्रभावित व्यक्ति को बुखार होता है, मुंह पूरा नहीं खुल पाता। गले और कान के आस पास दर्द होता है। कुछ भी निगलने में परेशानी होती है। इसी तरह व चिकन पॉक्स की बीमारी में भी व्यक्ति को बुखार आता है। उसके शरीर पर दाने निकल आते हैं। इन दोनों बीमारियों में ही प्रभावित व्यक्ति को स्वस्थ्य लोगों से अलग रखना चाहिए। उनकी साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए चिकित्सक के पास ले जाकर उनका इलाज कराना चाहिए।

शासकीय अस्पतालों में नहीं है वैक्सीन

चिकित्सकों का कहना है कि गलसुआ और चिकन पॉक्स बीमारी जानलेवा नहीं है, इसलिए उक्त दोनों बीमारियों की वैक्सीन वैक्सीनेशन कार्यक्रम में नहीं जोड़ा गया है। जबकि निजी अस्पतालों में चिकनपॉक्स व गलसुआ की वैक्सीन आसानी से मिलते हैं लेकिन इस वैक्सीन के लिए मोटी रकम देनी पड़ती है।

बच्चों में गलसुआ ज्यादा

गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के बाल एवं शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. रवि अम्बे ने बताया कि चिकन पॉक्स के मामले बच्चों में बहुत कम देखने को मिल रहे हैं। लेकिन गलसुआ से बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि गलसुआ से पीडि़त बच्चों का समय पर उपचार शुरू न होने से उन्हें भर्ती करने तक की जरूरत पड़ती है।

समय पर कराएं इलाज, झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़े

डॉ. अजय पाल का कहना है कि चिकन पॉक्स संक्रामक बीमारी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसे माता कहते हैं। अगर समय पर उपचार शुरू हो तो मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। इसलिए चिकित्सक को दिखाएं और झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़े।

ये हैं बचाव और उपचार

- अगर किसी बच्चे को यह बीमारी हो जाती है तो उसे स्कूल व कहीं बाहर न जाने दें।

- मरीज को अलग रखना जरूरी है।

- मरीज की नाक व मुंह से निकले वाले स्त्राव को जमीन में दबा देना चाहिए।

- जूस, नारियल, पानी का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें।

- मरीज को छींकने और खांसते समय नाक व मुंह पर कपड़ा रखना चाहिए।

यह हैं लक्षण

- तेज बुखार आना।

- त्वचा पर गुलाबी रंग के दाने विकसित होना।

- ये दाने मुंह, सिर, गर्दन, पेट, पीठ छाती पर दिखाई देते हैं।

- शरीर में दाने बड़े या फिर छोटे आकार के होते हैं।

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