3 दशक में नहीं हो सकी काउंटर मैग्नेट सिटी में बसाहट, कब साकार होगा साडा की बसाहट का सपना ?

SADA में खंबे पर बिना पहुंचे ही जंग खा गए ट्रांसफार्मर

Update: 2021-08-20 09:50 GMT

ग्वालियर/वेब डेस्क। शहर की बढ़ती आबादी को देखकर एनसीआर से जोडऩे और दिल्ली के नोएडा की तर्ज पर नए शहर को बसाने का एक सपना करीब तीन दशक पहले भाजपा के के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री स्वर्गीय शीतला सहाय ने एक सपना देखा था। जिसे पूरा करने के लिए प्रदेश सरकार ने विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण साडा का गठन किया गया था। जनसंख्या दबाव को कम करने नए शहर की बसाहट को लेकर उस समय जो सपना देखा गया था आज तीन दशक बाद भी वह सपना कागजों में दफन होता नजर आ रहा है। एनसीआर से जोडऩे और उसके चौमुखी विकास को लेकर जिस साडा प्राधिकरण का गठन किया गया था वह अपने उद्देश्यों की कसौटी पर आज तक खरा नहीं उतर सका। वैसे विशेष क्षेत्र प्राधिकरण के नाम पर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर नए शहर को बसाने के लिए अभी तक करोड़ों रुपए खर्च कर जो काम हुए लेकिन वह धरातल पर आज भी नजर नहीं आ रहे हैं।

इस इलाके में तीन दशक बाद भी आबादी के नाम पर उखड़ी सड़कें और जमीन पर लगे बिजली के खंबे जरूर नजर आते हैं। लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी इस क्षेत्र में बसाहट आज भी नहीं हो सकी। तीन दशक की साडा की इस लंबी यात्रा के दौरान कई घोटाले भी उजागर हुए इस दौरान प्राधिकरण में कई अध्यक्ष आए और सभी साडा के विकास का दावा करते रहे लेकिन साडा क्षेत्र में आज तक विकास नहीं हो सका और नए शहर की बसाहट की जो कल्पना देखी थी वह आज वीरान नजर आ रही है। साडा ग्वालियर पश्चिम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के तहत एक विकास परियोजना है। इसे 1992 में दिल्ली की आबादी को आकर्षित करने के लिए शुरू किया गया था। सरकार द्वारा चयनित 5 काउंटर मैग्नेट शहरों में से ग्वालियर पहला था। साडा की बसाहट को लेकर कागजों पर घोड़े तो बहुत दौड़ाए गए लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं हो सका। आज साडा अपनी पहचान खो चुका है, इतना ही नहीं इस प्राधिकरण के कर्मचारियों को वेतन के लाले भी पढ़ रहे हैं। प्राधिकरण के कर्मचारियों की भारी-भरकम फौज भी अब सरकार पर बोझ बनने लगी है।

 छह हजार प्लॉट बेचे

साडा ने तिघरा क्षेत्र में दो आवासीय सेक्टर में अब तक लगभग छह हजार प्लॉट बेचे हैं। इन सेक्टरों में पानी की लाइन बिछाने का काम पूरा हो चुका है, लेकिन पेयजल सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। जबकि साडा में 15 साल पहले राष्ट्रीय स्तर की 28 शैक्षणिक संस्थाओं ने भी यहां अपने लिए जमीन आरक्षित कराई थी। इनमें एमआर एग्रोटेक दिल्ली, गोपी बाई फाउंडेशन कोटा, गीता एजुकेशन सोसाइटी दिल्ली, बाल भारती चाइल्ड एजुकेशन सोसाइटी, अपेक्स एजुकेशन सोसाइटी दिल्ली, आदि शामिल हैं। लेकिन विकास की धीमी चाल के चक्कर में किसी ने अपना रूख इधर नही किया।


क्या-क्या हुआ हैं साडा की आवासीय योजना में

 बरा योजना : 30 जून 2014 को आदेश होने के बाद 31 मार्च 2016 तक काम पूरा होना था। इसकी तत्कालीन लागत 8 करोड़ 5 लाख रुपए आंकी गई थी। 250 फ्री होल्ड प्लॉट विकसित होने थे। 1 करोड़ 50 लाख रुपए से अधिक खर्च होने के बाद भी यह योजना अभी भी अधूरी है।

 नीलकमल योजना : 10 करोड़ 16 लाख रुपए की लागत से 600 फ्री होल्ड प्लॉट विकसित होना थे। योजना पर अभी तक 6 करोड़ 75 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। बसाहट नहीं हो सकी है।

 एमआईजी : 236 आवास तैयार करने के लिए 16 नवंबर 2011 को आदेश होने के बाद 31 दिसंबर 2015 को काम पूरा होना था। आवास बनाने में 45 करोड़ 17 लाख रुपए से अधिक लागत आई है। आवास तैयार हैं, लेकिन रहने वाला कोई नहीं है।

 एलआईजी : 128 भवन बनाने के लिए 28 अगस्त 2012 को आदेश हुआ। लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद आवास आवंटित हो चुके हैं, यहां भी रहने कोई नहीं आया।

 EWS : 320 आवासों के निर्माण को 22 दिसंबर 2014 को आदेश हुआ। लगभग 13 करोड़ 84 लाख रुपए खर्च हुए हैं। सभी आवास खाली हैं। यहां भी सही से काम नहीं हो सका।

 - 200 हैक्टेयर जमीन को शैक्षणिक संस्थाओं के लिए विकसित करने की योजना थी। इसके लिए भूमि अधिग्रहण में लगभग 2 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था।

 - क्षेत्र में मनोरंजन और सामान्य विकास पर 10-10 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। मल्टीपरपज कांप्लेक्स के निर्माण पर करीब 60 लाख रुपए खर्च हुए हैं।

 - आईटीबीपी के लिए 100 एकड़ जमीन आवंटित करने का प्रस्ताव बना था। इसको लेकर अभी तक निरीक्षण से आगे बात नहीं बढ़ सकी है। आईटीबीपी मुख्यालय से जवाब नहीं आया है।

 - सेना की ही एक अन्य यूनिट के लिए पूर्व में जमीन आवंटित हो चुकी है, लेकिन यह योजना भी आगे नहीं बढ़ सकी है।

 - प्लॉट और निर्मित आवासों की रजिस्ट्री के लिए 4 बार आवंटियों को नोटिस जारी हो चुके हैं।

 - अभी तक सिर्फ दो लोगों ने रजिस्ट्री कराई है।

खंबे पर बिना पहुंचे ही जंग खा गए ट्रांसफार्मर

साडा क्षेत्र में जो भी अधिकारी आया है उसने सिर्फ बजट में सपने दिखाए। हालत यह है कि यहां पर खंबो पर ट्रांसफार्मर लगना थे, लेकिन ट्रांसफाम्र बिना खंबे पर पहुंचे ही जंग खा रहे है। वहीं सीवर लाइनों के चेंबर मिट्टी और पत्थरों से भरे हुए है। पेयजल सप्लाई के लिए तिघरा क्षेत्र में नगर निगम के वाटर फिल्टर प्लांट के आगे साडा का वाटर फिल्टर प्लांट है। इस प्लांट से बीते छह महीने से पानी की एक बूंद भी टंकी में नहीं आई है।

इनका कहना है

वेतन को लेकर कोई समस्या नहीं है, सभी को वेतन मिला रहा है। हमारे यहां 8 कर्मचारी है। साडा के विकास के लिए हमारे पास कोई फंड नहीं है।

केके कुशवाह, प्रभारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी, साडा

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