कभी लावारिस शवों का दाह संस्कार कराता था श्री सनातन धर्म मण्डल, पदाधिकारियों को नहीं पता
- वर्ष 1944 में हुई थी भगवान चक्रधर प्रतिमा की स्थापना
ग्वालियर, अरुण शर्मा। आज से 87 वर्ष पहले श्री सनातन धर्म मण्डल द्वारा समाज सेवा और मानवता के कार्यों को ध्यान में रखते हुए लावारिस शवों का दाह संस्कार कराने का बीडा उठाया गया था इसके लिए बिरला परिवार सहित शहर के व्यापारियों द्वारा चंदा दिया जाता था। लेकिन लंबे समय तक चले इस पुण्य कार्य को बाद के पदाधिकारियों ने बिसरा दिया। इसके अलावा वाचनालय, व्यायाम शाला, यज्ञ शाला सहित अन्य कार्य भी मण्डल द्वारा कराए जाते थे जो शनै:शनै समाप्त हो चुके हैं। जब इसके बारे में मौजूदा पदाधिकारियों से जानकारी चाही गई तो किसी को यह नहीं पता की उक्त कार्य मण्डल किया करता था।
उल्लेखनीय है कि धार्मिक एवं समाज सेवा के कार्यों के लिए वर्ष 1927 में श्री सनातन धर्म मण्डल की स्थापना की गई थी। मोहिनी एकादशी बैशाख शुक्ल संवत 2001 तद्नुसार 03 मई 1944 को दोपहर 02:01 बजे शुभ मुहुर्त में भगवान चक्रधर प्रतिमा की स्थापना की गई थी। भगवान चक्रधर की प्रतिमा बिरला द्वारा नई दिल्ली में स्थापित करवाने के लिए बनवाई गई थी जिसे बाद में यहां स्थापित किया गया।
एक वर्ष में हुआ 125 शवों का दाह संस्कार:-
वर्ष 1936 में स्थानीय अस्पताल, पुलिस स्टेशनों और म्युनिसिपल द्वारा हिन्दुओं के अनाथ मुर्दों का अंत्येष्टि कार्य बहुत ही घृणास्पद ढंग से होता था। यह कार्य सफाई कर्मचारियों द्वारा अपवित्र ढंग से किया जाता था। साथ में यह भी देखने को आता था कि बहुत से शव बिना अग्नि संस्कार के ही अंधे गड्ढों में फेंक दिए जाते थे या मिट्टी में दबा दिए जाते हैं। शवों की यह दुर्दशा धर्म प्रेमियों को बहुत ही खटकती थी। इस दोष को मिटाने के उद्देश्य से बाबू रामजीदास आदि की प्रेरणा से हिन्दुओं के अनाथ शवों के अंतिम संस्कार का कार्य श्री सनातन धर्म मण्डल के पदाधिकारियों ने अपने हाथ में लिया, जिसके संचालक पंडित वसुदेवनन्दन भारद्वाज और पंडित मदनमोहनलाल राजदा नियुक्त हुए। वर्ष 1936 के आरंभ से लेकर 1937 के अंत तक 125 शवों का दाह संस्कार करवाया गया जिसका खर्च 1051 रुपए हुआ। इस दौरान मंदिर में कुल आमदनी 1027 रुपए हुई जिसमें अस्पताल से 04 रुपए, पुलिस से मिलने वाले 08 रुपए शामिल हैं। इसी के साथ श्री जयाजीराव कॉटन मिल्स से 08 रुपए, डॉ. भगवत सहाय से 08 रुपए, बाबू रामजीदास से 08 रुपए, डॉ. खिरवडकर 04 रुपए और डॉ रमेशचन्द्र मरकान से 01 रुपए का दान मिलता था। इस कार्य के लिए 31 लोगों का स्टॉफ रखा गया था। अधिकांश शव अस्पताल के होते थे जिसमें एक शव पर 08 रुपए खर्च होते थे और अस्पताल से मिलते 04 रुपए थे। इसमें आमदनी से ज्यादा खर्चे थे। इसी कारण मण्डल ने लावारिस शवों के दाह संस्कार का बीडा उठाया जिसे वर्षों पूर्व से मण्डल के पदाधिकारियों ने बिसरा दिया। यानि की किसी भी पदाधिकारी को यह याद भी नहीं कि शवों के अंत्येष्टि का कार्य मण्डल किया करता था।
आखिर कहां गई दान की शव वाहिका:-
लगभग दस वर्ष पूर्व मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. गिर्राज किशोर गोयल के प्रयासों से भगवानदास गोयल काले द्वारा एक एम्बूलेंस मण्डल को दान की गई थी। लेकिन उस एम्बूलेंस को शव वाहिका में बदलने के लिए एक लाख रुपए का खर्च मण्डल वहन नहीं कर सका। जिससे वह वाहन कहां गया यह किसी को स्पष्ट नहीं पता।
मंडल के सहायता कार्य:-
- मेलों, उत्सवों और मुख्य त्यौहारों पर लोगों को पानी पिलाना, भीड़ को सुव्यवस्थित करना, खोए हुए बच्चों का पता लगाकर उन्हें घरवालों के पास पहुंचाना, गरीब और असहाय लोगोंं को दवा आदि की व्यवस्था करना शामिल रहा।
- मंडल के अधिवेशनों में साइकिल व जूतों की सुरक्षा करना।
- समाज-सुधार कार्यक्रमों में चंदा एकत्रित करने में सहायता करना।
- महाराज हाईस्कूल धौलपुर, संस्कृत ब्रह्म विद्यालय मुरैना एवं रीवा हाई स्कूल के छात्रों को उनकी परीक्षा के समय मण्डल में ठहराने का प्रबंध करना। बारातों को भी मंडल में ठहराना। धार्मिक कार्यों के लिए स्थान भी उपलब्ध कराया गया।
इनका कहना है:-
'पुराने समय में दाह संस्कार का कार्य किया जाता था इसकी जानकारी मुझे नहीं है। ना ही मैंने इसे कहीं पढ़ा है। हां वर्तमान में समय-समय पर मण्डल द्वारा सेवा के कार्य किए जाते हैं। रही बात एंबूलेंस की तो उसको संचालित करने की व्यवस्था नहीं बनने के कारण इसे वापस कर दिया गया।'
कैलाश मित्तल, अध्यक्ष, श्री सनातन धर्म मण्डल
'आप जो शवों के दाह संस्कार की बात कर रहे हैं इस बारे में मुझे नहीं पता है। मण्डल द्वारा समय-समय पर सेवा भाव के कार्य किए जाते रहे हैं।'
महेश नीखरा, प्रधानमंत्री
'मुझे मण्डल के पुराने कार्य और एंबूलेंस के बारे में कोई जानकारी नहीं है।'
ओमप्रकाश अग्रवाल, पूर्व प्रधानमंत्री