गूजरी की एक झलक ने तन्ना को बना दिया सुर सम्राट तानसेन

मधुकर चतुर्वेदी

Update: 2020-12-28 07:28 GMT

ग्वालियर। एक वर्ष बाद ग्वालियर में पुनः शीतऋतु प्रफुल्लित हुई है। पुनः प्रणय की पपीहरी मृगनयनी और राजा मानसिंह के प्रकोष्ठ धु्रपद के मधुर आलाप से गुंजायमान हो उठे हैं। हजीरा में प्रवेश करते ही मस्तिष्क की चेतना तन्तु वीणा के तारों की तरह झनझना उठी हैं। ध्रुपद के उन्नायक राजा मानसिंह के घर में ध्रुपद की मधुरता और मादकता, तन्मयता के साथ संगीत केे श्रोताओं को रसाबोर कर रही है।

समय कितना भी कठिन क्यों न हो, न केवल ग्वालियर अपितु पूरा देश तानसेन संगीत समारोह से निकलने वाले धु्रपद के सुरों के बीच अपने को कलात्मक बनने का अनुभव कर रहा है। इसमें ग्वालियर को गर्व होना स्वाभाविक है क्योंकि तानसेन की ऐसी प्रबल कीर्ति, ऐसी महत्ता और ऐसा व्यापक प्रभाव प्रदान करने का श्रेय ग्वालियर और यहां के संगीत मर्मज्ञ राजा मानसिंह तोमर को है। यह वही ग्वालियर है, जिसके गूजरी महल के झरोखे में 'तन्ना' के मन में मृगनयनी को देखने की एक झलक विद्युत की तरह उभरी और फिर कभी विलुप्त न हुई। इसी गूजरी महल में राजा मानसिंह और मृगनयनी के प्रथम मिलन की स्मृतियों ने तन्ना को सुर सम्राट तानसेन बना दिया। आज भी गूूजरी महल के पश्चिम में विंध्याचल की सुरम्य पहाड़ियों के बीच में 'तन्ना' के राग 'भीमपलासी' के सुरों को रसिक श्रोता अनुभव करते हैं। जब-जब मृगनयनी के अधरों पर मृदु रेखाएं खिंची, तब-तब 'तन्ना' के मन में राग तोड़ी के स्वर सागर के ज्वार की तरह उठे और समाप्त हो गए। संभवतः इसलिए आज भी संगीतज्ञों का प्रिय राग 'गुजरी तोड़ी' गूजरी कन्या के सौंदर्य की अद्भुद छटा को 'तानसेन' की तोड़ी के रूप में स्मरण करता है। तन्ना के रागों में प्रकृति गूजरी महल से शुरू हुई और बेहट होती हुई ब्रज वृंदावन पहुंची और उसे तानसेन बना गयी। बेहट में जहां विशाल वट वृक्ष के नीचे चबूतरे पर महादेव ने तरूण तन्ना को 'ध्रुपद' का आलाप प्रदान किया वहीं, ब्रज के वृंदावन में स्वामी 'श्री हरिदास' ने युवा तानसेन को ध्रुपद का 'प्रबंध' प्रसाद स्वरूप प्रदान कर उसे सुरों का सम्राट बना दिया। शीत रितु के चरम में वट, पीपल, आम, महुआ, पलास की कोपलों की सुगंधी के बीच हजीरा में आज के लब्ध प्रतिष्ठित संगीतकार ग्वालियर के तन्ना और भारतीय इतिहास के सुर सम्राट 'तानसेन' को उन्हीं के बनाए स्वरों में पुर्नजीवित कर रहे हैं।

ग्वालियर के श्रोताओं का भी कैसा सौभाग्य है कि अपने तन्ना के बनाए मधुर रागों को सुन उन्मुक्त हो रहे हैं। न केवल ग्वालियर बल्कि विश्वभर के भारतीय संगीत के प्रेमी श्रोता 'हजीरा' से निकले रागों के आरोह-अवरोह को सुनने लिए ईश्वर से वरदान मांग रहे होंगे कि....'बिधना यह जिय जानि के शेषहिं दिये न कान। घरा मेरू सब डोलते तानसेन की तान'..........

हम कितने भाग्यशाली हैं कि तानसेन हमारे हैं, उनके राग हमारे हैं, उनके आलाप और तानपूरे भी हमारे हैं। वास्तम में भारतीय संगीत के इतिहास में तानसेन सम्राट ही हैं। जब तक मृदंग की थाप, ध्रुपद के आलाप, बोल, गमक और तान हैं, तब तक झिलमिल की अमराई कभी सूनी नहीं होगी।

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