ग्वालियर, न.सं.। जिला पंचायत मुरैना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं जाने माने कहानीकार व उपन्यासकार तरुण भटनागर का नया उपन्यास 'बेदावाÓ इन दिनों चर्चा में है। 'लौटती नहीं जो हँसी और 'राजा, जंगल और काला चाँद के बाद यह उनका तीसरा उपन्यास है। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास में इसे प्रेमकथा बताया गया है, पर सिर्फ एक प्रेमकथा होने से इतर इस उपन्यास की कई ध्वनियाँ हैं, कई रंग हैं। यह इस उपन्यास की एक ऐसी विशेषता है जिससे यह दूसरे उपन्यासों से अलग और एक सशक्त मुकाम हासिल करता है।
हमारे समाज में साम्प्रदायिकता जिस तरह से पैर पसारती रही है और नफरतों के अपने इरादों को पालती-पोसती रही है उसके खिलाफ प्रेम और इंसानियत के फलसफे को बहुत मजबूती से यह उपन्यास रखता है। इसमें आधुनिक भारत के नगर, मोहल्लों, स्पेन की दुनिया, जंगलों के इलाके और गुरबत में जीने को मजबूर लोगों के जिंदगी की तमाम कहानियां हैं, जो तमाम अलग-अलग परिवेश की दुनिया से होकर गुजरती हैं। उपन्यास में दृश्य और आख्यान इस तरह आते हैं कि सारा नजारा साक्षात दिखता है। दृश्य और जगहों के साथ-साथ इसके पात्रों में भी एक अलग किस्म का वैविध्य है। उपन्यासकार तरुण भटनागर की विशेषता है कि वे पात्र की दुनिया को इस तरह हू-ब-हू लिखते हैं कि उसके एक्शन, बातें और उसकी पूरी बनक जीवित हो उठती है।
उपन्यास का पात्र सुधीर दृष्टिहीन है। वह एक खूबसूरत लड़की जिसका नाम अपर्णा है उससे मोहब्बत करता है। दिक्कत यह है कि अपर्णा खूबसूरत है और उसे चाहने वाला दृष्टिहीन, याने वह उसे नहीं देख सकता है और नहीं जान सकता है कि वह कैसी दिखती है, कितनी खूबसूरत है। इसी बिंदु से यह उपन्यास शुरू होता है, उपन्यास की कहानी बेहद रोचक है और इस उपन्यास के मार्फत एक लम्बे वक्त के बाद किस्सागोई को, बतकही को इस तरह औपन्यासिक फलक पर आता हुआ देखा जा रहा है। उपन्यासकार श्री भटनागर प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ ही फुर्सत के समय में लेखन के लिए भी समय देते हैं। यह उनका तीसरा उपन्यास है, जो काफी लोकप्रिय माना जा रहा है।