ग्वालियर। श्री विवेक शेजवलकर एक ऐसा नाम है, जो हो जाना आसान नहीं है। सहज-सरल, मृदभाषी, सभी के लिए तत्पर, निष्ठावान ये सभी गुण एक साथ किसी में नहीं पाए जाते, किंतु भारतीय राजनीति में श्री शेजवलकर एक ऐसा नाम है जो कलुषित होती राजनीति में एक सुखद आश्वस्ति हैं। अपने पिता से मिले संस्कार व राजनीतिक विरासत को विवेक शेजवलकर ने बखूबी निभाया। वे दो बार महापौर, ग्वालियर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और अब सांसद की आसंदी तक पहुंच चुके हैं। यहां सबसे अहम बात यह है कि उनके पिता और वे स्वयं इतने बड़े पदों पर रहे, फिर भी उनमें अहम नाममात्र को नहीं है। यदि किसी चुनाव की आचार संहिता लगती है तो वे पहले राजनेता हैं, जो सरकारी वाहन वहीं पर त्यागकर अपने निजी वाहन से निकल पड़ते हैं। इतना ही नहीं सुबह जब नाती-नातिन को स्कूल छोडऩे की बारी आई तो अपनी स्कूटी पर उन्हें बैठाकर ले जाते हैं।
श्री शेजवलकर की यह सादगी उनकी अपनी मस्ती है, शैली है। यह आडम्बर की राजनीति नहीं है। नई सड़क पर 'कृष्ण कृपा(श्री शेजवलकर का निवास) एक ऐसा केन्द्र है, जहां इनके पिता स्व. नारायण कृष्ण शेजवलकर ने जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित संगठन के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे जैसे व्यक्तित्व आकर न सिर्फ सांगठनिक चर्चा करते रहे हैं, बल्कि भोजन और विश्राम यहीं होता था। आपातकाल में मीसाबंदियों के घर की चिंता का काम भी इसी घर से किया जाता रहा। फिर भी श्री शेजवलकर इतने सहज दिल हैं कि उनके मन में किसी पद व प्रतिष्ठा की कभी इच्छा नहीं रही और न ही संगठन का कभी दुरुपयोग किया। संगठन ने उन्हें जो भी दायित्व दिया है, उसे उन्होंने सहज ही चरितार्थ किया। कृष्ण कृपा आज भी लोगों के लिए सेवा का पथ है।
दो बार महापौर रहने के समय उन्होंने सरकारी बंगले पर कार्यालय तक संचालित नहीं किया और न ही सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। चाहे सत्ता में हों या न हों आमजन के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहे और वे हमेशा उपलब्ध हैं। यदि कोई उनके दरवाजे पर आ जाता है तो तत्काल उसकी समस्या का निदान करने संबंधित अधिकारियों को फोन लगाते हैं। वहीं गंभीर बीमारी से पीडि़तों को समुचित इलाज के लिए प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री से आर्थिक मदद भी खूब कराते हैं। आज राजनीति के इस मुकाम पर राजनेता क्या करते हैं, लिखने की आवश्यकता नहीं पर श्री शेजवलकर की राजनीति शुचिता की राजनीति है, विवेक की राजनीति है। इसके अलावा एक नहीं बल्कि कई ऐसे कई उदाहरण हैं जो सिर्फ शेजवलकर की ईमानदारी और निष्ठा को दर्शाते रहे हैं। श्रीमती नीलिमा शेजवलकर उनकी पत्नी और उनका बेटा प्रांशु शेजवलकर की ओर से कभी यह बात सामने नहीं आई कि उक्त ने परिवार के मुखिया के नाम पर कभी किसी से उच्च स्वर में बात की हो या किसी की सिफारिश की हो, यह इस परिवार के संस्कार ही हैं जो उन्हें बड़ा बनाते हैं और कभी किसी गलत कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करते।
सादगी की मिसाल शेजवलकर परिवार की चर्चा चुनावों में भी हमेशा होती रहती है। श्री शेजवलकर ने पूरी शालीनता के साथ चुनाव लड़ा। इसी तरह कोरोना वायरस के दौरान लॉकडाउन की बात की जाए तो शुरुआती दिनों में श्री शेजवलकर ने घर से बाहर न निकलते हुए परिवार के साथ ही समय बिताया। इस दौरान उन्होंने वाशिंग मशीन में कपड़े धोए और नाती-नातिन के साथ घर का पोछा लगाने और नाश्ता बनाने का काम भी किया। यह सब इसीलिए कि वे ऐसे स्वभाव के स्वामी हैं जो घर में बच्चों के साथ बच्चा हो जाता है और राजनीतिक मंच पर राजनीतिज्ञ। वे डेढ़ वर्ष से सांसद हैं। इस दौरान लोकसभा में उन्होंने कई अहम मुद्दे उठाकर आमजन की बात रखी। जब संसद में तीन तलाक, राम मंदिर, धारा 370, नागरिकता संशोधन कानून पेश किया गया तो वे उसके साक्षी बनकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसीलिए उनकी तुलना कई बार गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर से की जाती है। वे अक्सर गोवा में अपने स्कूटर पर निकल पड़ते थे और यातायात व्यवस्थित करने लगते थे। ठीक उसी तरह पद पर रहते हुए श्री शेजवलकर भी अपने स्कूटर पर शहर में देखे गए।