ग्वालियर, न.सं.। जिले के घाटीगांव ब्लॉक में पिछले दिनों हुई ओलावृष्टि से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। वहीं बादलों की गडगड़़ाहट अभी भी सुनाई दे रही है और इस गडगड़़ाहट से किसानों का पसीना छूट रहा है, क्योंकि अगर बरसात हुई तो जो बची हुई फसल है वह भी चौपट हो जाएगी। इसलिए किसानों की नजरें आसमान पर टिकी हुई हैं।
दरअसल तीन दिन पूर्व घाटीगांव ब्लॉक के ग्राम रानी घाटी, बराहना, बडक़ागांव, सेकरा, पाटई, सभराई, बन्हरी में ओलावृष्टि हुई थी। यह ओले 15 मिनिट तक पड़े थे और इनका आकार बेर व चने का था। जिससे किसानों के खेतों में खड़ी गेहूं, सरसों और चना की फसल को नुकसान हुआ है। जिन सात गांवों में ओलावृष्टि हुई थी, उसमें करीब ढ़ाई हजार हेकटेयर रकवा कृषि भूमि है। इसमें करीब आठ सौ हेक्टेयर रकवा में गेहूं की खेती होती है। जबकि अन्य बची हुई भूमि पर चना, सरसों व दालों की खेती होती है।
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान गेहूं की फसल का हुआ है। क्योंकि गेहूं की कटाई नहीं हुई थी। जबकि चना, सरसों व दालों की कटाई जल्दी हो जाती है, इसलिए 70 प्रतिशत किसानों ने कटाई कर ली थी। लेकिन कुछ किसानों की खेती खेत पर ही थ्रेसिंग के लिए रखी हुई थी, जिसे भी नुकसान हुआ है। हालांकि स्पष्ट आंकड़े राजस्व अधिकारियों के सर्वे के बाद ही सामने आएंगे कि कितने गांवों में कितने प्रतिशत किसानों की फसल का नुकसान हुआ है।
धूप निकले तो उठ सकती है फसल
कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. राज सिंह कुशवाह का कहना है कि ओलावृष्टि से गेहूं की फसल को 50 से 80 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है। क्योंकि गेहूं की अधिकांश फसल लेट चुकी है। लेकिन जिन खेतों में पीले गेहूं पड़ गए थे, जिनमें दाना कठोर हो गया था, वह थोडा कम गिरे हैं। ऐसे में अगर मौसम साफ हो और धूप निकले तो वह गेहूं खड़े भी हो सकते हैं।
फसल की करते रहे अल्टा-पलटी
डॉ. कुशवाह सात गांवों में अधिकांश किसानों ने सरसों व चने की फसल की कटाई पूरी कर ली थी। लेकिन कुछ किसानों ने फसल को कटाई करने के बाद थ्रेसिंग के लिए खेत में एकत्रित कर रखी हुई थी, जो ओलावृष्टि में पानी में भीग गई है। इसलिए उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि एकत्रित करके रखी हुई फसल की अल्टा-पल्टी करना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दाना फूल जाएगा और नुकसान होगा।