Manoj Kumar Death: एक्टर मनोज कुमार का निधन, 87 की उम्र में दुनिया से कहा अलविदा

Update: 2025-04-04 02:09 GMT
एक्टर मनोज कुमार का निधन, 87 की उम्र में दुनिया से कहा अलविदा
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Manoj Kumar Death : दिल्ली। भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार का निधन हो गया है, जिसने फिल्म जगत और प्रशंसकों को गहरा दुख पहुंचाया है। 'भारत कुमार' के नाम से मशहूर इस 87 वर्षीय कलाकार ने 4 अप्रैल 2025 को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। परिवार की तरफ से हेल्थ इश्यू पर अब तक कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वृद्धावस्था से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से उउनका निधन हुआ है।

अपनी देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले मनोज कुमार ने हिंदी सिनेमा में अपार योगदान दिया, जिसके लिए उन्हें पद्म श्री (1992) और दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2015) से सम्मानित किया गया था। उनके निधन को भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति माना जा रहा है।

भारत कुमार के नाम से थे मशहूर

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी के रूप में हुआ था। उन्होंने अपनी कला और देशभक्ति की भावना के बल पर हिंदी सिनेमा में एक अनोखी पहचान बनाई। उनकी फिल्मों में राष्ट्रवाद की झलक स्पष्ट रूप से दिखती थी, जिसके कारण उन्हें 'भारत कुमार' का सम्मानजनक खिताब मिला। मनोज कुमार ने न केवल अभिनय में महारथ हासिल की, बल्कि निर्देशन, पटकथा लेखन और गीत लेखन जैसे क्षेत्रों में भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। उनकी फिल्में- 'शहीद', 'उपकार', 'पूरब और पश्चिम', 'रोटी कपड़ा और मकान', और 'क्रांति' न केवल व्यावसायिक सफलता हासिल कीं, बल्कि दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ गईं।

1960 के दशक से शुरू हुआ करियर 

मनोज कुमार का करियर 1960 के दशक से शुरू हुआ, और उन्होंने 'हरियाली और रास्ता', 'वो कौन थी', 'हिमालय की गोद में', 'दो बदन', 'पत्थर के सनम', और 'नील कमल' जैसी विविधतापूर्ण फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। एक निर्देशक के रूप में उन्होंने 'उपकार' और 'रोटी कपड़ा और मकान' जैसी फिल्मों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाया, जो उस दौर में क्रांतिकारी मानी गईं। उनकी फिल्मों में देशभक्ति, परिवार मूल्यों, और सामाजिक न्याय की थीम ने उन्हें एक सच्चे कथाकार के रूप में स्थापित किया।

विभाजन के बाद आये थे भारत 

मनोज कुमार का जन्म पंजाब के अबोटाबाद (अब पाकिस्तान में) में हुआ था और विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उन्होंने मुश्किल हालातों में अपने करियर की शुरुआत की और अपनी मेहनत से शीर्ष पर पहुंचे। उनकी पत्नी शशि गोस्वामी और उनके बेटे कुणाल गोस्वामी भी फिल्म उद्योग से जुड़े रहे हैं। मनोज कुमार की विरासत उनकी फिल्मों में जीवित रहेगी, जो आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और सांस्कृतिक मूल्यों की सीख देती रहेंगी।

मनोज कुमार की फिल्मों ने 1960 और 1970 के दशक में देशभक्ति और सामाजिक जागरूकता की लहर पैदा की। 'उपकार' में उनके किरदार ने किसानों की समस्याओं को उजागर किया, जबकि 'रोटी कपड़ा और मकान' ने गरीबी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाया। उनकी फिल्म 'शहीद' ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को श्रद्धांजलि दी, जो आज भी प्रासंगिक है। उनकी निर्देशक शैली और डायलॉग राइटिंग ने कई युवा फिल्मकारों को प्रेरित किया।

पद्म श्री और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित 

मनोज कुमार के सिनेमा जगत में योगदान को 1992 में पद्म श्री और 2015 में भारत सरकार के सर्वोच्च सिनेमाई सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। ये पुरस्कार उनके चार दशकों से अधिक के करियर और भारतीय सिनेमा में उनके अनुकरणीय योगदान को दर्शाते हैं। उनकी फिल्मों ने न केवल मनोरंजन प्रदान किया, बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।

बॉलीवुड की प्रतिक्रिया

मनोज कुमार के निधन की खबर से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है। कई सितारों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया, "मनोज कुमार जी का जाना भारतीय सिनेमा के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी देशभक्ति फिल्में हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी।" इसी तरह, अनुपम खेर और अक्षय कुमार ने भी उनके योगदान को याद करते हुए संवेदना व्यक्त की। फिल्म उद्योग के कई दिग्गज उनके अंतिम दर्शन के लिए अस्पताल पहुंचे, जहां उनके पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई दी गई। 

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